गोल्ड मेडलिस्ट सलमा कुरैशी ने संस्कृत में की पीएचडी, इसी विषय में बनना चाहती हैं प्रोफेसर
गोल्ड मेडलिस्ट सलमा कुरैशी ने संस्कृत में की पीएचडी, इसी विषय में बनना चाहती हैं प्रोफेसर
आज हमारा देश पश्चिमी सभ्यता की तरफ बड़ी तेजी से बाद रहा है| आज का समय इतना तजि से निकल रहा है के महीनो और सलून का पता ही नहीं चलता है| भारत देश एजुकेशन के मामले में इतना समृद्ध होने के बाद भी बहुत से स्टूडेंट आज दुसरे देश जा रहें हैं| देश में अंग्रेजी भाषा की तरफ सब भाग रहें हैं. अंग्रेजी में पढाई करना एक तरह से स्टेटस का मामला हो गया है. जिसको देखो वो अपने बच्चे कॉम्पीटिशन के कारण बड़े से बड़े स्कूल में भेज रहे हैं. जबकि अपने देश की प्राचीनतम भाषा संस्कृत है| उसकी तरफ किसी का ध्यान नहीं जा रहा है| जबकि आज संस्कृत ने पुरे विश्व में अपनी एक अलग ही छाप छोड़ के रखी है| बहुत कम ऐसे बच्चे होते हैं जो कुछ अलग करना चाहते है उन्ही में से एक है सलमा कुरैशी|

सलमा कहती हैं -”मेरी दिलचस्पी संस्कृत में देखते हुए घर के लोगों ने कभी इस विषय को लेकर कोई एतराज नहीं किया। उन्होंने हमेशा मेरा साथ दिया। हालांकि हिंदू धर्म के अधिकांश स्कल्पचर संस्कृत में होने की वजह से इसे इसी धर्म से जोड़ा जाता है। लेकिन मेरा मानना है कि भाषा का संबंध किसी धर्म से नहीं होता। किसी भी स्टूडेंट को उसकी रुचि के अनुसार भाषा चुनने का हक है”।
सलमा को इस बात का अफसोस है कि आज के एजुकेशन सिस्टम में पुराने जमाने की तरह टीचर्स को वो इज्जत नहीं दी जाती, जिसकी वे हकदार हैं। उनका कहना है कि संस्कृत को एक अनिवार्य भाषा के तौर पर स्कूलों में लागू करना चाहिए। संस्कृत वैसे भी अपने देश की प्राचीनतम भाषा रही है| इसका ज्ञान सभी को होना बहुत जरुरी है|