सनातन संस्कृति के १३ सूत्र


स्टोरी हाइलाइट्स

सनातन संस्कृति इतर सभी संस्कृतियों से श्रेष्ठ है तथा अनादि और अनन्त भी है। दूसरी संस्कृतियाँ सनातन संस्कृति के अंश लेकर ही जीवित हैं।

सनातन संस्कृति के १३ सूत्र
शंकराचार्य स्वामी श्री अभिनव सच्चिदानन्द तीर्थ जी श्री द्वारका शारदा पीठाधीश्वर
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जटाभारोदारं चलदुरगहारं मृगधरम्।

महादेव देवों मयि सदयभावं पशुपतिं चिदालम्बं साम्बं शिवमतिविडम्बं हृदि भजे॥

अनन्तसंसार समुद्रतार नौकायिताभ्यां स्थिर भक्ति काभ्याम्।

वैराग्यसाम्राज्यदपूजनाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम्॥

सनातन संस्कृति इतर सभी संस्कृतियों से श्रेष्ठ है तथा अनादि और अनन्त भी है। दूसरी संस्कृतियाँ सनातन संस्कृति के अंश लेकर ही जीवित हैं। संस्कृति जन्मस्थान होनेके कारण भारतवर्ष का माहात्म्य विश्वमें प्रख्यात है। ऐसी आदरणीय आर्य भारतीय संस्कृति की रक्षा करना प्रत्येक व्यक्तिका कर्तव्य है। विशेषतः आज तो उसकी प्रशंसा करनेकी अपेक्षा रक्षा करनेकी आवश्यकता ही अधिक है। अत: उस सनातन भारतीय संस्कृति की रक्षा करनेके लिये तथा आत्मकल्याणके लिये निम्नलिखित सिद्धान्तोंपर ध्यान देना और उनका यथावत् अनुसरण करना प्रत्येक भारतीय के लिये अवश्य कर्तव्य और श्रेयस्कर है
१. स्वधर्मपर महान् प्रेम रखो और यथाशक्ति धर्म का पालन करो। राम का यथावत् पालन करने से सुख, स्वर्ग एवं मोक्ष प्राप्त होते हैं। यह बात निश्चय करके मानो।

२. तुम्हारे धर्म का नाम 'सनातन धर्म' है। यह धर्म किसी मानव का गाया हुआ मत अथवा पंथ नहीं। यह तो सनातन प्रभुका सनातन धर्म है।

३. जगत्कर्ता परमेश्वरने सूर्य, चन्द्रमा, मेघ, जल, पवन, पृथ्वी, वृक्ष, औषधि, अन्न, पशु, पक्षी, मनुष्य आदिको बनाया था साथ-साथ इन सबका धर्म भी बनाया। धर्मके बिना किसीका अस्तित्व ही टिक नहीं सकता।

४. धैर्य, क्षमा, सत्यभाषण, अहिंसा, सर्वप्रकारसे पवित्रता तथा स्वच्छता मन तथा इन्द्रियोंका नियन्त्रण, भिन्न-भिन्न विद्याओं और कलाओंका शिक्षण, विवेकपूर्वक कार्यसम्पादन, क्रोध न करना, अस्तेय (चोरी न करना), मादक वस्तुओंका त्याग, ईश्वर-भक्ति,संस्कृति-रक्षा संस्कृति-रक्षा परलोकविषयमें ध्यान, माता-पिता, गुरु तथा वृद्धोंका आज्ञापालन, जन्म-भूमिकी सेवा, परस्त्रीमात्र में मातृ बुद्धि ये सब सामान्य धर्म हैं।

विशेष धर्ममें स्त्रियोंका धर्म, पुरुषोंका धर्म, पिता का धर्म, पुत्र धर्म, राजाका धर्म, प्रजाका धर्म, गुरु का धर्म, शिष्यका धर्म, वर्ण धर्म, आश्रम धर्म, युगधर्म, देश धर्म तथा अन्य भिन्न-भिन्न आपद्धर्म आदि हैं।

५. धर्म को जानने के लिये धर्मशास्त्रों का अध्ययन करो अथवा सदाचारी विद्वान् ब्राह्मण द्वारा धर्म-वार्ता श्रवण करो। चार वेद, दस उपनिषद्, छः दर्शन अठारह स्मृतियाँ, अठारह पुराण, रामायण तथा महाभारत इत्यादि हमारे प्रामाणिक तथा उपादेय ग्रन्थ हैं।

६. गणेश, शिव, विष्णु, सूर्य और जगदम्बा-ये पाँच हमारे पूजनीय देवता हैं और परब्रह्म परमात्मा सर्वोपरि इष्ट देवता हैं। ये सब देवता इन परब्रह्म परमात्मा का ही लीला रूप हैं एवं इन परमात्मा के भी अनेक अवतार होते हैं।

७. जिस कुलमें परम्परासे जिस देवताको इष्टदेव के रूप में माना जाता है, उस कुलमें उसी देवता की विशेष आराधना होनी चाहिये; परंतु अन्य किसी भी देवता की निन्दा नहीं करनी चाहिये। प्रत्युत दूसरे संप्रदाय के भक्तों के साथ प्रेमका ही व्यवहार करना चाहिये।

८. संसारके सब कार्य की ओर रखकर सर्वप्रथम भगवान का भजन करना आवश्यक है। यदि तुमने विश्वमें समस्त कार्य किये, किंतु भगवान का भजन नहीं किया, तो मानव-शरीर पाकर क्या लाभ प्राप्त किया? कुछ भी नहीं।

९. आलस्य छोड़कर आगे बढ़नेका कार्य करो। अपनी कमाई में से अच्छे पात्रों को दान करो।

१०. अपने जीवनको पवित्र एवं सुखी बनाने के लिये मादक वस्तुओं तथा अन्य दुर्व्यसनों से बचे रहो। बीड़ी, सिगरेट, भांग, गाँजा, अफीम, शराब आदि धर्म, धन तथा आरोग्य आदिका नाश करनेवाले हैं; अत: उनका त्याग करनेसे ही तुम भगवान के भक्त बन सकोगे।

११. दूसरों की हानि न करो; परंतु तुम्हारे देश, धर्म, जाति तथा मान को यदि कोई हानि पहुँचाता हो तो उसको किसी भी धर्मसंगत उपाय  से मना करो|

१२. सदा देव-दर्शन, शास्त्रश्रवण, भगवान, पितृ तर्पण, अतिथि-सत्कार, सत्संग तथा स्व वर्णाश्रम उचित संध्या आदि सत्कर्म किया करो।