एक मुस्लिम क्रांतिकारी महिला अमनबाई (अमनबी)


स्टोरी हाइलाइट्स

एक मुस्लिम क्रांतिकारी महिला अमनबाई (अमनबी)
स्वतंत्रता संग्राम के मुस्लिम नेताओं में मुहम्मद अली और शौकत अली का नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। इनकी माताजी का नाम अमानी बानो बेगम था जो अमनबाई या अमनबी के नाम से भी जानी जाती रही। 1920-21 के खिलाफत आंदोलन तथा प्रथम असहयोग आंदोलन के समय पंजाब की महिलाओं में पार्वती देवी के पश्चात् दूसरा नाम जो उभरकर सामने आया वह अमनबाई का ही था| अपने दोनों बेटों की गिरफ्तारी के बाद उन्होंने बुरका उतार फेंका और महिलाओं का संगठन किया। स्त्री-पुरुषों को साझी सभाओं में भी भाषण देते हुए वे स्पष्ट कहती थीं कि अंग्रेजों को प्रार्थनापत्र या मांग आदि की याचिका देने में उनका विश्वास नहीं है। 


लाहौर की एक जन-सभा में उन्होंने साफ शब्दों में कहा- भारतीयों ने पिछले १५० वर्षों में दो भयंकर भूलें कि-पहली उन्होंने अंग्रेजों को भारत में पैर जमाने दिये और दूसरी 1856 की क्रांति में भारतीयों ने ही अंग्रेजों का साथ देकर, उस क्रांति को असफल किया।' वे इसी प्रकार के भाषणों द्वारा लोगों को देश की स्वतंत्रता की लड़ाई के लिए उत्साहित और प्रेरित करती थीं। 

इस असहयोग आंदोलन में हिस्सा लेने से पहले भी वे मुस्लिम महिलाओं को शिक्षित कर उनमें जागृति लाने के काम में लगी थीं इसी आधार पर महिला-मताधिकार की मांग को लेकर जो महिला प्रतिनिधि मंडल भारत मंत्री तथा वायसराय से मिलने गया था, उसमें शामिल होने के लिए इन्हें विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था। 

उनके विचार बहुत ही सुलझे और निष्पक्ष होते थे | वे साफतौर पर कहा करती थी कि नीची जातियों के गरीब लोगों में एकता कभी भंग नहीं हुई। यह केवल शहरों में ही दिखाई देती हैं। शहरी हिंदू और मुसलमान अपने-अपने अज्ञान और अहं के कारण तथा राजनेताओं के हाथ के मोहरे बनकर अलगाववादी नारे लगाते और ऐसे क्रियाकलाप करते रहते हैं। आए दिन शांति भंग होने का यह एक मुख्य कारण है। उनके ये विचार आज भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने अपने इन्हीं विचारों की साफगोई और आचरण के आधार पर हिंदू मुस्लिम दोनों को करीब लाने का प्रयास किया उनके बीच भेद-भाव खत्म करने की दृष्टि से सभाओं में मुस्लिम भाइयों के हाथों हिंदू बंधुओं को पानी पिलवाया। एक-दूसरे में विश्वास जगाने और साथ देने के लिए परस्पर शादी-विवाह आदि के साथ सम्मिलित दावतों के आयोजन भी किये। हिंदू-मुस्लिम एकता और स्वदेशी का प्रचार करने के लिए वे गाँवों में भी गयीं। गाँवों की जन-सभाओं में उन्होंने प्रत्येक गाँव में ग्राम पंचायतों की फिर से स्थापना हो, इस बात पर बहुत जोर दिया इसी आंदोलन के बीच उन्होंने सन् 1922 में शिमला की फैशनेबुल महिलाओं को स्वदेशी अर्थात् खादी पहनने के लिए राजी किया। 

यह उनके व्यक्तित्व की कथनी और करनी का प्रत्यक्ष प्रमाण था। इसी अवधि में जब वे पटना और भागलपुर के दौरे पर थीं, उन्होंने भागलपुर के  राजनीतिक बंदियों से मिलने की इच्छा प्रकट की, जिसकी उन्हें इजाजत नहीं दी गई। बंदियों को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने इसके विरोध में अपने सगे-संबंधियों तक से मुलाकात करने से इंकार कर दिया। इस दौरे में उन्होंने खिलाफत आंदोलन के लिए दरभंगा से साठ हजार और मुंगेर से बीस हजार रुपये एकत्र किये। मार्च 1922 में अब गाँधी जी बंदी बना लिए गए थे, उस समय जेल जाते हुए गाँधी जी ने अमनबाई के लिए विशेष संदेश छोड़ा था कि वे स्वयं जेल न जाकर, अपना जो काम कर रही हैं, करती रहें और राजनैतिक बंदियों के लिए दुआ करें। अमनबी या अमनबाई का मुख्य रूप से कार्य क्षेत्र रावलपिंडी, गुजराँवाला तथा कसूर ही थे; किंतु वे बाहर भी दौरे करती रहती थीं। उन्होंने 1922 के शुरू में मध्य प्रदेश के इंदौर तथा भोपाल का दौरा किया। 

उस समय उनका स्टेशन पर जो स्वागत हुआ, उसका उल्लेख करते हुए, ३१ जनवरी को अंग्रेज एजेंट ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि अली भाइयों की माँ भोपाल होते हुए इंदौर जाते वक्त गाँधी टोपी पहने और खिलाफत का बिल्ला लगाये हुए थी। पाँच-छह सौ लोगों ने उनका इस्तकबाल किया। जनता में बढ़ती उनकी लोकप्रियता अंग्रेजों के लिए पर्याप्त चिंता का विषय बन गई थी उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेजने की बात कई बार अंग्रेजों के मन में आई, लेकिन अपनी कूटनीति के तहत मुसलमानों को अधिक नाराज न करने तथा मुस्लिम समाज में उनके प्रभाव को देखते हुए अंग्रेजों ने उन्हें कभी बंदी नहीं बनाया। हाँ! वे उनके दौरों पर पावंदी अवश्य लगा देते थे। जैसे पटना और भागलपुर जाने से पहले वे सीमा प्रांत में जाना चाहती थीं लेकिन उन्हें सीमा पर ही रोक लिया गया और बंदी बना कर उनके क्षेत्र में छोड़ दिया गया | इस तरह यह क्रम 1926, जब तक वे जिंदा रहीं बराबर चलता रहा। और वे अंतिम समय तक अपना काम करती रहीं।