स्वामी विवेकानंद के अनुसार राजा, वैश्य, आदि विभिन्न श्रेणियों की उत्पत्ति का रहस्य


स्टोरी हाइलाइट्स

स्वामी विवेकानंद के अनुसार राजा, वैश्य, आदि विभिन्न श्रेणियों की उत्पत्ति का रहस्य
असुरों को भोजन का अभाव होते ही वे लोग दल बाँधकर पहाड़ से या समुद्र के किनारे से आकर गाँव-नगरों को लूटने आने लगे थे। वे कभी कभी धन-धान्य के लोभ से देवताओं पर आक्रमण करने लगे। यदि बहुत से देवता एकत्रित न हो सकते थे, तो उनकी असुरों के हाथ से मत्य हो जाती थी। और देवताओं की बुद्धि प्रबल होकर कई तरह के अस्त्र-शस्त्र तैयार करने लगी। 

ब्रह्मास्त्र, गरुड़ अस्त्र, वैष्णवास्त्र, शैवात्र - ये सब देवताओं के अस्त्र थे। असुरों के अस्त्र तो साधारण थे, पर उनके शरीर में बल बहुत था। बारम्बार असुरों ने देवताओं को हरा दिया, पर असुर सभ्य होना नही जानते थे। वे खेतीबाड़ी नहीं कर सकते थे और न बुद्धि का ही प्रयोग कर सकते थे। 

विजयी असुर यदि विकास देवताओं के 'स्वर्ग' में राज्य करना चाहते थे तो वे देवताओं के बुद्धि-कौशल से थोड़े ही दिनों में देवताओं के दास होकर पड़े रहते थे। अन्यथा असुर लूट कर वहाँ से हट कर अपने स्थान को चले जाते। देवतागण जब एकत्रित होकर, असुरों को भगाते थे, तब - या तो उन्हें समुद्र में भगाते थे, नहीं तो पहाड़ में, अन्यथा जंगल में भगा देते थे। 

क्रमश: दोनों ओर ही दल बढ़ने लगे। लाखों लाखों देवता एकत्र होने लगे और लाखों लाखों असुर इकट्ठे होने लगे। अब महासंघर्ष, मेल मिलाप, जीत-हार होने लगी। इस तरह हर प्रकार के मनुष्यों के मिलने-जुलने से वर्तमान समाज, वर्तमान समस्त प्रथाओं की सृष्टि होने लगी। नानाविध नूतन भावों की सृष्टि होने लगी, नाना प्रकार की विद्याओं की आलोचना आरम्भ हुई।

 एक दल के लोग, हाथ से या बुद्धि द्वारा भोगोपयोगी वस्तुएँ तैयार करने लगे, दूसरा दल उन सब चीजों की रक्षा करने लगा। सब मिलकर आपस में उन सब चीजों का विनिमय करने लगे और बीच में से एक उस्ताद दल इस स्थान की चीजों को उस स्थान पर ले जाने के वेतनस्वरूप, सब चीजों का अधिकांश स्वयं हड़प करने लगा। 

एक जन खेती करता, एक जन पहरा देता, एक जन ढुलाई करके ले जाता और एक जन खरीदता। जिन लोगों ने खेतीबाड़ी की उन्हें कुछ नहीं मिला, जिन लोगों ने पहरा दिया उन लोगों ने जुर्म करके पहले ही कुछ भाग ले लिया, अधिकांश ढुलाई करने वाले व्यवसायी लोग ले गए। 

पहरेदारों का नाम हआ राजा, ढुलाई करने वालो का नाम हुआ सौदागर। इन दो दलों ने काम तो किया नहीं- कामचोर होकर भी ऊपर ऊपर की मलाई मारने लगे। जो वस्तुओं की तैयारी करने लगा, वह पेट पर हाथ मारता हुआ 'हाय भगवान्' पुकारने लगा।