"आद्याशक्ति" और दस महाविद्याओं का रहस्य... त्रिपुर शक्ति का वैज्ञानिक स्वरुप


स्टोरी हाइलाइट्स

उस महाशक्ति "त्रिपुरा" भगवती का ही यह प्रमाण है कि जगत् के समस्त पदार्थ तीन  रूपों में ही विभक्त हैं ।उत्पादक, पालक, दस महाविद्याओं का रहस्य

"आद्याशक्ति" और दस महाविद्याओं का रहस्य... त्रिपुर शक्ति का वैज्ञानिक स्वरुप

उपासना के बहुत भेद शास्त्रों में वर्णित हैं|

जिस प्रकार शक्तिमान् रूप में शिव विष्णु आदि उपास्य = भेद हैं, उसी प्रकार आगमशास्त्र में भी शक्ति के अनेक उपास्य भेद बताये गये हैं । उन अनन्त-रूपों का दस रूपों में वर्गीकरण किया गया  है, जिससे दस महाविद्याय आगम शास्त्र में विख्यात हैं ।

जिस समय दुनिया का  दृश्यपदार्थ अस्तित्व में नहीं था, उस महाप्रलय  से आरम्भ प्रपञ्च की पूर्णता पर्यन्त दस अवस्थायें मानी गयीं हैं ।

उन अवस्थाओं में कार्य करने वाली चित्-शक्ति को १० विभागों में विभक्त किया गया।

काली तारा महाविद्या षोडशी भुवनेश्वरी।

भैरवी छिन्नमस्ता च विद्या धूमावती तथा।

बगला सिद्ध विद्या च मातंगी कमलात्मिका

एता दशमहाविद्याः सिद्धविद्या प्रकीर्तिताः॥

1. काली 2. तारा 3. त्रिपुरसुंदरी 4. भुवनेश्वरी 5. त्रिपुर भैरवी 6. धूमावती 7. छिन्नमस्ता 8. बगला 9. मातंगी 10. कमला

  [caption id="attachment_30241" align="alignnone" width="1188"]INDIAN WOMEN DEVI INDIAN WOMEN DEVI[/caption]

जब महाप्रलय में जगत् का प्रादुर्भाव करने की इच्छा भगवान् या भगवती को होती है उस प्राथमिक अवस्था को "आद्याशक्ति" कहा जाता है ।

उस अवस्था में कुछ नहीं है ऐसा नहीं कहा जा सकता ; क्यो?

नहीं होता तो प्रपञ्च में सब कुछ कहां से आता असत्' से सत् नहीं हो सकता यह आर्य दर्शनों का डिण्डिम-घोष है।

नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः। उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभिः ॥ ( श्रीमद्भगवद्गीता )

इससे यह सिद्ध होता है कि महाप्रलय दशा में भी सब कुछ है, किन्तु सुषुप्ति दशा में है। अतः सम्पूर्ण स्थूल- ब्रह्माण्ड की सुषुप्ति का नाम हो "महाप्रलय" कहलाता है। उस अवस्था में जीव भी रहते हैं किन्तु सुषुप्ति दशा में ।

यह एक प्रकार की मृत्यु-अवस्था है। इसीलिये आद्याशक्ति के समस्त उपकरण शव (मृत) रूप माने गये हैं|

काली शवों के मुण्डों की ही माला पहने हुए हैं। कानों में कुण्डल शवों के मुण्ड ही है और काली (करधनी) शवों के हाथों की बनी है।

  

आद्या-शक्ति का स्वरूप भी गहरा कृष्ण वर्ण है ; जो प्रकाश के सर्वथा अभाव की सूचना देता है । इस प्राकार  महाविद्याओं के स्वरूप पूर्ण वैज्ञानिक हैं ।

फिर जब, सम्पूर्ण प्रपञ्च बन जाता है, तब उसकी अधिष्ठात्री महाशक्ति का नाम षोडषी होता है। उस समय वह सोलह कलाओं से परिपूर्ण मानी गई। वह पूर्ण जगत् की अघिष्ठात्री है और रजोगुण-प्रधान होने से आगम शास्त्र उसका रूप रक्तवर्ण का मानता है।

इन सोलहों को तीन वर्गों में बाँटा गया है -स्थूल, सूक्ष्म और कारण । इनका उत्पादन, पालन आदि करने वाली महाशक्ति इन्हीं तीनों पुरों में रहती है, जिससे वह "त्रिपुरा" कहलाती है।

 

उस महाशक्ति "त्रिपुरा" भगवती का ही यह प्रमाण है कि जगत् के समस्त पदार्थ तीन  रूपों में ही विभक्त हैं ।

उत्पादक, पालक और संहार त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश माने गये हैं ।

लोक मी तीन हैं- भूमि, अन्तरिक्ष और स्वर्ग ।

इनलोकों के नियामक देवता में तीन हैं-अग्नि, वायु और आदित्य ।

वेद भी तीन माने गये हैं ऋक् यजुः और साम।

हमारे जीवों के शरीर भी तीन हैं स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर ।

स्थूल शरीर तो प्रत्यक्ष ही है ।  यह स्थूल शरीर सर्वथा जड है। इसका परिचालन करनेवाला सूक्ष्म-शरीर है, जिसमें पाँच ज्ञानेन्द्रिय, पाँच करमेद्रिय, पाँच प्राण तथा मन और बुद्धि ये सत्रह तत्त्व माने जाते हैं ।

 

इसका निरूपण साख्य ने विस्तार से किया है। स्थूल शरीरों के न रह जाने पर भी सूक्ष्म शरीर बना रहता है ।

भिन्न भिन्न शरीरों और भिन्न भिन्न लोकों में यही सूक्ष्म शरीर जाता है और आता है किन्तु, महाप्रलय में यह भी नष्ट हो जाता है।

ऐसी स्थिति में तब प्रश्न उठता है कि ज्ञान और कर्म के संस्कार किसके आधार पर

रहते हैं। यदि संस्कार न रहें, तो आगे होनेवाली सृष्टि में प्राणियों के जन्म और कर्म का कौन नियामक होगा ?

अतः वेदान्त दर्शन सूक्ष्म शरीर का भी आधारभूत एक कारण शरीर मानता वह कारण शरीर महाप्रलय भी बना रहता है|

वह उसी दिन निवृत्त होता है, जिस दिन भगवती महाशक्ति की कृपा जीव को मोक्ष प्राप्त होता है।

आगम शास्त्र में तो कारणशरीर आगे भी शरीरों का वर्णन आता है। वह कहता कारण शरीर तक तो भाषा की सृष्टि है; किंतु इससे आगे का महाकारण शरीर या बेन्दव शरीर बिन्दुरूपा महा माया है ।

गुरुजन जब शिष्य को शिक्षा देते हैं, तब इसी शरीर को जागृत करते हैं इसी शरीर द्वारा उपासना की सिद्धि होती फिर, मुक्तिदशा में एक 'चिद्रूप कैवल्य शरीर' माना गया|

उस मुक्ति आगे भी उपासक जब उपास्य इष्टदेव की कृपा से अपने अपने इष्टदेव की नित्यलीला में प्रवेश करता तब एक देह प्राप्त होती इसी को जीवन की अन्तिम सफलता और यही उसका परम पुरुषार्थ है।

आगमशास्त्र अनुसार यह केवल भक्ति प्राप्य है। ज्ञान से प्राप्त होनेवाला मोक्ष उसके यहाँ परम पुरुषार्थ नहीं माना जाता।

उपयुक्त 'महाकारण शरीर', 'वेन्दव शरीर' और कैवल्य शरीर' - तीन अलौकिक शरीर हैं

किन्तु स्थूल, सूक्ष्म और कारण ये तीन शरीर आते जाते हैं|

जाग्रत् अवस्था का स्थूल शरीर' से सम्बन्ध है, स्वप्नावस्था का 'सूक्ष्मशरीर' और सुषुप्ति अवस्था का 'कारणशरीर' इन सभी शरीरों और अवस्थाओं से छुटकारा पाने का उपाय बतलाने वाले वेद भी तीन हैं।