अंत राम कहि आवत नाहीं- दिनेश मालवीय


स्टोरी हाइलाइट्स

A few days ago, a video was found on WhatsApp, in which a person was caught and immediately died while playing harmonium during kirtan.

अंत राम कहि आवत नाहीं -दिनेश मालवीय कुछ दिन पहले व्हाट्सएप पर एक विडिओ देखने को मिला, जिसमें कीर्तन के दौरान हारमोनियम बजाते हुए ही एक व्यक्ति लुड़क गया और उसकी तत्काल मृत्यु हो गयी. मुझे याद आया कि मेरे एक परिचित के पिता की भी कुछ इसी तरह मृत्यु हुयी थी. वह रोज़ाना मंदिर जाते थे. एक दिन सुबह वह मंदिर गये. भगवान् की प्रतिमा के सामने साष्टांग दंडवत किया और उनके प्राण पखेरू उड़ गये. जब बहुत देर तक वह नहीं उठे, तब लोगों ने उन्हें उठाने की कोशिश की, तो पाया कि वह परलोक गमन कर चुके थे. अक्सर देखा गया है कि मौत आसान नहीं होती. ज्यादातर लोग किसी बीमारी से ग्रसित होकर या बुढ़ापे की तकलीफें झेलते हुए मरते हैं. ज्यादातर परिवारों में बूढ़ों को असहनीय दुःख और अपमान झेलने पड़ते हैं. वे बेचारे परेशान होकर मौत माँगते रहते हैं, लेकिन मौत नहीं आती. उनके परिवार वाले तक उनकी मौत की कामना करने लगते हैं. कभी-कभी तो उनकी इतनी दयनीय स्थिति होती है कि कोई भी संवेदनशील व्यक्ति उनकी हालत देखकर अपने आँसू नहीं रोक सकता. लेकिन मरते समय भी उनके मुख से भगवान् का नाम नहीं निकलता. कई बार लोग मरणासन्न व्यक्ति के सिरहाने बैठकर उससे भगवान् का नाम लेने के लिए प्रेरित करते हैं, फिर भी वह ऐसा नहीं कर पाता. हमारे शास्त्रों में सदियों से यह सीख दी गयी है कि व्यक्ति को कम उम्र से ही मन को ईश्वर का नाम लेने, जप करने और भक्ति करने का थोड़ा-थोड़ा अभ्यास करना चाहिए. व्यक्ति जीवन भर जो करता है, वही जीवन के अंतिम क्षणों में सहज रूप से करता है. लेकिन किसी युवा को भक्ति-पूजा आदि में लगा देखकर अक्सर लोग कमेन्ट करते हैं कि,” यह करने की तुम्हारी उम्र नहीं है”. अधिकतर लोगों का मानना होता है कि जवानी में तो ज़िन्दगी के मज़े ले लो, भक्ति-वक्ति बुढ़ापे में कर लेंगे. लेकिन यह बहुत अव्यवहारिक धारणा है, जो कभी सच नहीं होती. रामचरितमानस में बाली वध के समय यह चौपाई आती है, कि “कोटि कोटि मुनि जतन कराहीं अंत राम कहि आवत नाहीं”. अर्थात मुनि लोग के करोड़ों जतन करने के बाद भी मरते हुए व्यक्ति के मुख से भगवान् का नाम नहीं निकलता. भगवान् श्रीराम बाली से कहते हैं कि अगर वह चाहे तो उसे वे जीवनदान दे सकते हैं.इस पर बाली कहता है कि अनेक जतन करने पर भी जिन राम का नाम मुंह पर नहीं आता, वह राम खुद मेरे सामने खड़े हैं. मुझे उनके हाथों से मुक्ति मिल रही है. कोई मूर्ख ही ऎसी स्थिति को छोड़कर जीवन की कामना करेगा. आम इंसान के जीवन के अंतिम क्षणों में ईश्वर का ध्यान नहीं आना स्वाभाविक भी है, क्योंकि आपने जीवन भर जिस चीज पर ध्यान केन्द्रित किया होता है, उसी चीज का भाव जीवन के अंतिम क्षणों में भी रहेगा. किसी व्यक्ति के जीवन का जो केन्द्र होता है, उसी पर उसके अंतिम क्षण के भाव निर्भर करते हैं. पीड़ारहित मौत की कामना करने वालों को जीवन में भक्ति-ध्यान आदि साधना का अभ्यास जीवन के प्रारंभिक समय से ही शुरू कर देना चाहिए. मृत्यु के समय सबसे बड़ी पीड़ा तो अपने शरीर के छूटने की होती है, क्योंकि वह खुद को शरीर ही मानता चला आया होता है. ध्यान-भजन और अन्य आध्यात्मिक साधनाओं से व्यक्ति में शरीर भाव कम होता है और उसमें शरीर की आसक्ति बहुत कम हो जाती है. अधिक उन्नत साधकों के भीतर तो जीते-जी शरीर भाव समाप्त हो जाता है. वह हमेशा मौत का स्वागत करने को तैयार रहता है. वह मौत को जीवन का स्वाभाविक अंत अवश्यंभावी मानकर पहले से ही मरने के लिए मन को तैयार करता रहता है. सच पूछिए तो जीवन एक कला है तो प्रसन्नता से मरना उससे भी बड़ी कला है. सारी पूजा-पाठ, ध्यान, योगी, आराधना, प्रार्थना आदि हर रोज़ कुछ देर मरने जैसा ही है. इस प्रक्रिया में व्यक्ति कुछ देर के लिए खो जाता है. यानी मन में विचारों का क्रम क्षण भर के लिए ठहर जाता है. यह क्षणिक मृत्यु की श्रेणी में आता है. पूरी निष्ठा से किसी आध्यात्मिक साधना को करने वाले व्यक्ति को मृत्यु के समय कम से कम पीड़ा होती है. उस व्यक्ति का शरीर से ही नहीं, सभी सांसारिक संबंधों और धन-सम्पत्ति से आत्मभाव समाप्त हो जाता है. वह सब कुछ सहर्ष त्यागने को हमेशा तैयार रहता है. इसीलिए हर व्यक्ति को युवा अवस्था से ही जीवन के गहरे सत्यों को समझने के प्रयास करते रहना चाहिए. इसमें हमारे शास्त्र बहुत मददगार साबित हो सकते हैं. प्राचीन शास्त्रों की भाषा कुछ कठिन ज़रूर होती है, लेकिन कोशिश करके और किसी जानकार व्यक्ति से मार्गदर्शन प्राप्त कर उसे समझा जा सकता है. ऐसा करने से मरते समय भाव ईश्वर में या किसी अच्छे भाव में केन्द्रित होगा. भगवतगीता के अनुसार व्यक्ति का मरते समय जो भाव होता है, उसीके अनुसार उसे अगला जन्म मिलता है. इस प्रकार आध्यात्मिक साधना हमारे इस जीवन के साथ ही आगे होने वाले जन्म में भी सहायक होती है.