असली सुख क्या हैं ? और हम उसे कैसे पाएं ?


स्टोरी हाइलाइट्स

  असली सुख क्या हैं ? और हम उसे कैसे पाएं ? अतुल विनोद : -   आज हम मनुष्य अपने स्वरूप से इतना दूर हो गये हैं की हमें अपने आप का ज्ञान नहीं l हम बहुत आर्टिफीसियल हो गये हैं l बुद्धि के स्तर पर आज मानव बहुत विकसित हो गया हैं lलेकिन मानवता खो गयी है हम अपनी सच्ची सम्पति खोते जा रहे हैं !   आज हमारी कोई दिशा नहीं हैं हम  बिना सोचे समझे जैसा देखते हैं वैसा ही बनते जा रहे हैं ये बहुत बड़ा भटकाव हैं जो हमारी सफलता में रूकावट हैं l   ना हमें रास्ता पता हैं ना मंज़िल l   परमात्मा ने हमें अनंत शक्तिया दी हैं किन्तु हम यहां की नाशवान चीज़ो को ही सबकुछ समझ बैठे हैं।   हम आज भौतिक जगत के गुलाम हो चुके हैं इस गुलामी ने कब हमारी आत्मा को ढक लिया हमें खुद ही पता नहीं चला l हम अपने ही बनाये पिंजरे में कैद हो गये हैं l   जब हम भौतिक जगत में रहने वाले सभी प्राणियों के प्रति प्रेम का भाव रखते हैं और अपनी तरह उन्हें भी समझते हैं। किसी को छोटा बड़ा, ऊँचा नीचाँ ना मानकर सभी को मानवता की नज़र से देखते हैं तब हमें   उन सब में अपनी परछाई नज़र आती हैं। इसी को सेल्फ रेफ़्लेक्सन कहते हैं।   प्रकृति को देखिये उसने कभी हमसे कुछ नहीं लिया वो हमेशा देना ही जानती हैं l पिछले कितने समय से हमारे स्वार्थ के लिए हमने प्रकृति को नुकसान पहुंचाया हैं ! अपनी सुविधाओं के लिए पर्यावरण को प्रदूषित किया !   प्रकृति की शुद्धता को बरकरार रखने में कोई सहयोग नहीं दिया इसलिए आज हम कोराना जैसी महामारी से जूझ रहे हैं l अब इस पर हमें विचार करने की आवश्यकता हैं हमें बनाने वाली सृष्टि ही हैं हमें उसमे सहयोग करना चाहिएl   आज हमें समझना होगा हमारी मंज़िल क्या होनी चाहिए ?   क्या बाहर की चीज़े बड़ा घर, कार हीरे, जवाहरात हमें खुशी नहीं दे सकते हैं? यहां तक कि हमारे रिश्ते नाते मित्र कोई भी हमें सच्ची खुशी नहीं दे सकता, क्योंकि खुशी बाहर की चीज़ नहीं हैं वो एक खजाना है, जो हमारे ही भीतर है।   जो किसी को कुछ भी देने की भावना रखता हैं वो भी उस वक्त परमात्मा का रूप होता हैं। प्रेम, दया, करुणा, भीतर की सुंदरता हैं जिन्हें बाहर प्रस्तुत करना परमात्मा के कार्य में सहयोग करना है यही सच्चा धर्म है, सच्ची खुशी हैं l   अपनी आत्मा की अथाह गहराई में जाकर अपनी  शक्तियों को पहचानने से  ही सच्ची खुशी मिल सकती हैं !   परिवर्तन प्रकृति का नियम है। जो भी बना है वो एक दिन नष्ट होगा और बदलेगा। कुछ भी हमेशा एक जैसा नहीं रह सकता,इसलिए हमें बाहरी चीज़ो के लिए इतना आशक्त नहीं होना चाहिए l   कठिन से कठिन परिस्थितियों का समाधान भी हमें अपने भीतर जाकर ही मिल सकता हैं l   अपनी आत्मा को पहचानकर ही इंसान सच्चे सुख को प्राप्त कर सकता हैं !   शुभमस्तु   Atul Vinod