गैस त्रासदी झेला भोपाल कोरोना से कैसे हो रहा बेहाल -दिनेश मालवीय


स्टोरी हाइलाइट्स

गैस त्रासदी झेला भोपाल कोरोना से कैसे हो रहा बेहाल -वैसे तो कोरोना ने पूरी दुनिया को हलकान कर रखा है, लेकिन कुछ जगहों पर हालत बहुत डराने वाले हैं......

गैस त्रासदी झेला भोपाल कोरोना से कैसे हो रहा बेहाल -दिनेश मालवीय वैसे तो कोरोना ने पूरी दुनिया को हलकान कर रखा है, लेकिन कुछ जगहों पर हालत बहुत डराने वाले हैं. इन जगहों में भोपाल भी शामिल हो गया है. एक भोपालवासी ने बहुत मार्मिक बात कही, जिससे हर व्यक्ति की असहायता और पीड़ा व्यक्त होती है. उसने कहा कि, ”भाई, जब यूनियन कार्बाइड से गैस निकली थी, तो कम से कम यह रास्ता तो था कि शहर से दूर भाग जाया जाए. जो लोग भागने सफल हो गये वे बच भी गये. लेकिन कोरोना महामारी में तो भागने की भी गुंजाइश नहीं रह गयी.” उस भोपालवासी की बात बहुत सटीक थी. आखिर कोई भागकर कहाँ जाएगा? जहाँ जाएगा, वहीँ कोरोना राक्षस मुंह खोले हर किसीको निगलने के लिए खडा है. गैस त्रासदी के वक्त तो लोग शहर से कुछ दूर जाकर रिश्तेदारों के घर ठहर गये थे. लेकिन कोरोना के चलते तो रिश्तेदार आपको अपने पास फटकने भी नहीं देगा. आपका कोई कितना भी ख़ास क्यों न हो वह अपनी और अपने परिवार की जान जोखिम में नहीं डालेगा. आप भी नहीं डालेंगे. ऐसी ही स्थिति के लिए बहुत समय से यह कहा जा रहा है कि आप सब कुछ होते हुए भी अकेले ही हैं. अकेले आये थे, अकेले ही जाएँगे. हँस अकेला जाई. यह महामारी जिस तरह से फ़ैल रही है, उसके चलते सारी चिकित्सा सुविधाएँ चरमरा चुकी हैं. अस्पतालों में बिस्तरों और ज़रूरी दवाओं सहित अन्य सुविधाओं की बेहद कमी आ गयी है. जिस इंजेक्शन से इस महामारी से जीवन बचने की आशा होती है, वह भी बाज़ार से नदारद है. कुछ प्राइवेट अस्पताल और मेडिकल स्टोर्स भी बहुत बेशर्मी के साथ मनमानी करने पर तुले हैं. जिसके पास पर्याप्त पैसा है, वह भी पूरी तरह असहाय हो गया है. ऐसी स्थति में पैसा भी कुछ काम नहीं आ पा रहा है. प्रदेश और देश के अन्य स्थानों के विषय में तो कुछ भी प्रामाणिक रूप से नहीं कहा जा सकता, क्योंकि हम उसके प्रत्यक्ष गवाह नहीं हैं, लेकिन भोपाल में तो सब कुछ हमारे सामने ही हो रहा है. यह सही है कि कोरोना को फैलने से रोकने में जनता की भी सरकार के बराबर ही जिम्मेदारी है, लेकिन सरकार और प्रशासन को भी अपनी भूमिका न केवल ठीक से निभाना चाहिए, बल्कि निभाते हए दिखना भी चाहिए. बेशक, जो लोग महामारी रोकने के लिए निर्धारित सावधानियां नहीं बरत रहे, उन पर सख्त से सख्त कार्यवाही की जाए, लेकिन ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि उनके साथ जानवरों जैसा व्यवहार किया जाए. कुछ लोगों को ऐसा लग रहा है कि जैसे किसी गैस चैम्बर में फँस गये हैं. ऐसी स्थिति से बाहर आने के लिए प्रशासन को और अधिक गंभीर और प्रभावी होने की ज़रूरत है. साथ ही हर नागरिक को यह समझना होगा कि सावधानियों का पालन नहीं करके वह खुद को ही नहीं, बल्कि अपने परिवार और समाज के दूसरे लोगों की जान को भी खतरे में डाल रहा है. आपदा के समय ही किसी समाज का सही चरित्र सामने आता है. अस्पताल संचालकों और चिकित्सा सेवा से जुड़े सभी लोगों को यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि आज उनके ज्ञान और चरित्र की सबसे बड़ी परीक्षा है. उन्हें अपने व्यवसाय के प्रति पूरी ईमानदारी बरतते हुए जितना हो सके सेवा भाव से काम करना चाहिए. व्यापारियों को भी इस समय सामान को अधिक मूल्य पर बेचने के लोभ से होगा. मौत उनको और उनके परिवार के किसी सदस्य की भी हो सकती है. मौत से ऊपर तो कोई भी नहीं है. जीवन ही नहीं रहेगा तो पैसे का क्या करोगे? आज पूरे समाज को सारे भेदभाव भूलकर एक साथ खड़े होकर इस महामारी पर विजय प्राप्त करने की ज़रूरत है.