मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के तेवर बदल रहे हैं, वे फ़िर से फॉर्म में हैं, वे तेज़तर्रार दिख रहे हैं तो पहले से ज़्यादा मुखर भी, कार्यशैली में भी बदलाव नज़र आ रहा है। CM की अचानक बढ़ी सक्रियता को समझने का प्रयास करते हैं।
बदलो और बदल दो। फॉर्म में आ जाओ और दे दो संदेश।।
आत्मविश्वास से भरो और आत्मनिर्भर बनाओ प्रदेश।।
न कोई मित्र न शत्रु अपनी धुन में रहो, रोडमैप पर चलो।
इधर उधर मत देखो, न डरो न सहो, अब नदी के प्रवाह की दिशा में बहो।
जो होगा देखा जाएगा:
ऐसा लगता है प्रदेश के मुख्यमंत्री इसी तर्ज पर राजनीति में नई इबारत लिखने के मूड में हैं। तो क्या सूबे के मुखिया शिवराज सिंह चौहान अचानक बदल गए हैं?
कुछ कहते हैं उनके आत्मविश्वास का लेवल बढ़ गया है काम करने का तरीका बदल गया है? क्या हार के बाद के 15 महीने और बीच बीच में लगने वाली अटकलों ने बदला मुख्यमंत्री को? क्या शिवराज सिंह चौहान फिर अपने पुराने अंदाज और फॉर्म में हैं?
उन्हें नजदीकी से जानने वाले कहते हैं शिवराज की “चाल” बदली है “चरित्र और चेहरा” नहीं वे अंदर से बिल्कुल नहीं बदलते। फिर भी क्या “मामाजी” अब पहले जैसे नहीं रहे? लेकिन पहले कैसे थे जो अब बदल गए और क्या बदला?
हालांकि शिवराज सिंह मध्य प्रदेश के एक अजेय योद्धा के रूप में राजनीति के क्षितिज पर चमकने वाले राजनेता कहे जाते हैं। लेकिन कई बार अटकलों और सियासी उधेड़बुन में उन्हें कमतर आंका जाता है।
शिवराज सिंह चौहान कई बार कॉन्फिडेंट दिखाई देते हैं तो कई बार उनकी चाल धीमी भी पड़ जाती है। मुख्यमंत्री बनने के बाद शिवराज सिंह चौहान सजग और सक्रिय रहने की पूरी कोशिश करते दिखाई दिए, बीच में उनकी बॉडी लैंग्वेज कुछ कमजोर भी नजर आई।
हार के बाद कांग्रेस की सरकार बनी, 15 महीने के वनवास में शिवराज ने अपनों को बेगाना होता देखा। कोरोना कार्यकाल में मंत्रियों और अफसरों की ढिलाई देखी तो सत्ता से हटाए जाने की अटकलें भी देखी। आदिवासी सम्मेलन और बीजेपी प्रदेश कार्यसमिति की बैठक के बाद वे अचानक “और” सक्रिय हुए।
सरकार को लेकर जनता की वास्तविक राय, संगठन की अलग चाल या केंद्र की हिदायत, शिवराज पुराने अंदाज़ में फिर चल दिये। उतार-चढ़ाव की राजनीति से बेफ़िक्र शिवराज अब मध्य प्रदेश के विकास पर फोकस करते दिख रहे हैं। विरोधी तो यही कहते हैं कि वे विकास से ज्यादा “प्रचार प्रसार” पर ज्यादा ध्यान देते रहे हैं और अब वही कर रहे हैं|
शिवराज की विकास के वायदों, सतत सम्पर्क, समीक्षा मीटिंग्स, 121 और दौरे की राजनीति का सिलसिला फ़िर शुरू हो चुका है। वे मंत्रियों को ताकीद कर रहे हैं तो चूक पर अफसरों को नापने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। हालांकि शिवराज का यह चेहरा लोगों ने पहले भी देखा है। लेकिन इस बार कुछ चीजें बदल गई है।
जानकारों का कहना है कि शिवराज सिंह चौहान अकेले ही सियासत के मैदान में चौके छक्के लगा रहे हैं। अपने खास सिपहसालारों में अनेक लोगों को शामिल करने वाले शिवराज अब चुनिंदा लोगों के साथ ही, इस नई पारी में आगे बढ़ने का जतन कर रहे हैं।
क्या अब राज्य से लेकर केंद्र तक शिवराज "ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर के" सिद्धांत पर चलते हुए दिखाई दे रहे हैं? हालांकि अपने विरोधियों पर कुछ ना करते हुए भी वे भारी पड़ते दिखाई देते हैं। कुछ इसे किस्मत कहते हैं कुछ चाणक्य नीति।
शिवराज सिंह चौहान अब ढेरों अफसरों को अपनी गुड बुक में रखना पसंद नहीं करते। उनके पुराने अपने अब उनके आगे पीछे दिखाई नहीं देते।
प्रशासन पर अपनी ढीली पकड़ के तमगों से छुटकारा पाने के लिए सख्त कदम उठा कर शिवराज सिंह चौहान कभी-कभी जल्दबाजी में भी नजर आते हैं। वे कभी कभी शांत भी बैठ जाते हैं। "सब कुछ हालात पर छोड़कर"।
हालांकि यह बदलाव नया नहीं है। यह वक्त की तकाज़ा भी है और जरूरत भी। क्योंकि समय बहुत निकल चुका है चुनौतियां बहुत हैं।
सूबे में विकास कार्यों और सरकारी योजनाओं के हाल किसी से छिपे नहीं हैं, सत्ता परिवर्तन और कोरोना के चलते की रफ्तार थम सी गयी। कोरोना की लहर कमजोर हुयी तो लोगों ने इनका हिसाब पूछना शुरू किया| वोट मांगते वक्त कोरोना काल की दुहाई नहीं चल सकती न ही पुरानी योजनाओं का राग|
शिवराज सिंह चौहान अब आत्मनिर्भर मध्य प्रदेश के रोडमैप 2023 को पूरा करने में तेजी दिखाने की कोशिश में हैं। यदि वे ऐसा नहीं करते तो उन पर कई तरह की तोहमतें लगाई जाएंगी।
2023 में होने वाले चुनावों में जीत के लिए शिवराज सिंह चौहान को जीतोड़ मेहनत करनी है। यदि Chauhan ऐसा नहीं कर पाएंगे तो उनके राजनीतिक भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लग जाएगा।
2018 में कांग्रेस से पराजय झेलने के बाद 2023 में बीजेपी हाईकमान कोई कोताही नहीं बरतना चाहता। इसलिए बीजेपी के संगठन महामंत्री से लेकर तमाम पदाधिकारी मध्यप्रदेश पर न सिर्फ नज़र बनाये हुए हैं, बल्कि यहां के हालातों की समीक्षा और 121 बैठकें भी कर रहे हैं।
लगता यह है कि शिवराज सिंह चौहान को केंद्र की हरी झंडी मिल चुकी है और उन्हें फ्री हैंड दिया जा चुका है। इसीलिए शिवराज सिंह चौहान फुल फॉर्म में बैटिंग करते हुए दिखाई दे रहे हैं।
बीजेपी अंतर्विरोध और अंतर कलह को बढ़ावा देकर अपना नुकसान नहीं करना चाहती| मध्यप्रदेश बीजेपी के लिए एक महत्वपूर्ण प्रदेश है जिसे जीतना “संघ और संगठन” दोनों की दृष्टि से ज़रूरी है।
चौहान के विरोधी अभी शांत है क्योंकि उनके दाव अभी चल नहीं पाए हैं। सार्वजनिक तौर पर शिवराज सिंह चौहान ने अपने विरोधियों को संकेत भी दिए हैं।
हालांकि शिवराज सिंह चौहान ऐसा करते नहीं है लेकिन कार्यसमिति की बैठक में उन्होंने जिस तरह से मीडिया की अटकलों पर विराम लगाने की कोशिश की है। वह कुछ अलग ही है। शिवराज सिंह चौहान ने न सिर्फ अटकलों को खारिज करने की कोशिश की, बल्कि खुद ही सार्वजनिक मंच से अपने विरोधियों को निशाने पर लेने में संकोच नहीं किया।
आखिर अंदर खाने में क्या चल रहा है यह जानने में सबकी रुचि है! लेकिन बाहर जो दिखाई देता है उसमें शिवराज सिंह चौहान “फिलहाल” मध्य प्रदेश की सियासत के “नायक” की तरह फिर से मैदान में आगे बढ़ते दिखाई देते हैं।
यह 1 साल बहुत महत्वपूर्ण है, आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश का नारा देना आसान है, लेकिन इसे लागू करना काफी कठिन है।
बीजेपी की सत्ता में फिर से आना यानी मार्च 2020 से दिसंबर 2021 तक काफी कुछ है जो सबक दे सकता है?
- कोरोना काल से निकली वो खबरें जो दिल दहला गयी,
- बच्चों के अस्पताल में लापरवाही की आग,
- विकास कार्यों में ढिलाई,
- अफसरों की आराम तलबी और नाफ़रमानी, महंगाई,
- किसानों की समस्याएं,
- बिजली का संकट,
- अधूरे विकास कार्य,
- माफियाओं की कारगुजारियां,
- मंत्रियों की मनमर्जी और ढिलाई,
- सिंधिया खेमे के मंत्रियों का अपना राग,
- केंद्र की योजनाओं के अमल में कमियां और लापरवाही,
- सरकार की आय में कमी, बढ़ता कर्ज,
- कई पुरानी लोकप्रिय योजनाओं का ठप्प पड़ना -आत्मनिर्भर मध्य प्रदेश के रोड मैप में तय की गई समय सीमा के अनुसार प्रगति ना होना,
सबसे अहम है आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश का नारा इसके लिए अनेक प्राथमिकताएं तय की गई है।
भौतिक अधोसंरचना का विकास, सुशासन, स्वास्थ्य एवं शिक्षा, अर्थव्यवस्था एवं रोजगार ये वो 4 सेक्टर हैं जिन पर सरकार को अपनी गाड़ी सरपट दौड़ानी है।
सुशासन के लिए लोक सेवाओं के प्रदाय, ई गवर्नेंस, इमरजेंसी टेक्नोलॉजी, पारदर्शिता, जवाबदेही, सार्वजनिक भागीदारी, सरकारी खरीद जैसी प्रक्रियाओं में और ज्यादा तेजी लाना, साथ ही इन्हें त्रुटिपूर्ण बनाना बड़ी चुनौती है।
स्वास्थ्य एवं शिक्षा के क्षेत्र पर लगातार काम करना है। कोरोना वायरस अभी भी बरकरार है। ऐसे में स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा तकनीकी शिक्षा पर सरकार का फोकस जारी रहना जरूरी है।
कृषि क्षेत्र ने देश की विकास दर में महत्वपूर्ण भूमिका निभाकर देश की जीडीपी को 2019 की स्थिति में ला दिया है। ऐसे में मध्यप्रदेश को कृषि के क्षेत्र में और आगे बढ़ाना ज़रूरी है, सिर्फ कुछ “कृषि कर्मण” अवार्ड हासिल करने से काम नहीं चलने वाला इससे आगे सोचना होगा।
उद्योग और कौशल विकास, प्राकृतिक संसाधनों का समुचित उपयोग, व्यापार और वाणिज्य में गति लाना सरकार के लिए महत्वपूर्ण कार्य हैं। सबसे बड़ी चुनौती मध्यप्रदेश की आय बढ़ाना, विकास कार्यों का दबाव बढ़ा है तो आमदनी अठन्नी है, इसे रुपैया में कैसे तब्दील किया जाए इस बारे में सरकार को तेजी से काम करना होगा। इन कार्यों की मॉनिटरिंग के लिए सरकार को और ज्यादा सजग होना पड़ेगा।
मुख्यमंत्री समझ चुके हैं कि किसी और के भरोसे बैठना ठीक नहीं है। अधिकारियों की बैठक में वे यह कह चुके हैं कि क्या हर कार्य मुख्यमंत्री ही देखेगा?
निश्चित रूप से उनकी अपेक्षा है कि अधिकारी सरकारी योजनाओं की मॉनिटरिंग से लेकर उनके क्रियान्वयन तक में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं, सड़कों पर उतरे, जमीन पर जाकर हालात का जायजा लें लेकिन ऐसा होता नहीं है। मंत्रियों से भी मुख्यमंत्री की काफी अपेक्षाएं हैं। हालांकि उन्हें लगता है कि सारी जिम्मेदारी उन्हें अपने हाथ में लेनी पड़ेगी। क्योंकि मंत्रियों के अपने क्षेत्र, जिम्मेदारियां, अपने मिशन और विजन और निष्ठाएं हैं।
सारा दारोमदार शिवराज सिंह चौहान पर दिखता है। संगठन के कार्य अलग हैं। यदि सरकार असफल होती है तो सारी जिम्मेदारी शिवराज सिंह चौहान के सर-माथे आएगी। सफलता के तो हज़ार भागीदार होते हैं।
शिवराज की प्राथमिकताएं:
- प्रशासनिक पकड़ मजबूत करना,
- पार्टी और संगठन से बेहतर तालमेल और अपनी स्वीकार्यता बढ़ाना,
- मंत्रियों की सरकार के मिशन और विजन के अनुरूप परफॉर्मेंस,
- घोषणाओं को अमल में लाना,
- केंद्र की योजनाओं के क्रियान्वयन में तेजी और पारदर्शिता रखना,
- पेट्रोल डीजल की कीमतों में और ज्यादा कमी,
- महंगाई पर लगाम,
- सड़कों की मरम्मत और निर्माण,
- माफियाओं पर लगाम,
- अस्थिर करने वाली अटकलों पर लगाम रखना,
- विरोधियों को साधना,
शिवराज सिंह चौहान के लिए यह राह आसान नहीं है, लेकिन जिस तरह से उन्होंने तमाम अटकलों को दरकिनार करते हुए आदिवासी सम्मेलन के जरिए केंद्र सरकार को खुश किया है, अपने नेतृत्व का कई मौकों पर लोहा मनवाया है, अपनी कार्यशैली और कार्यकुशलता का परिचय दिया है, सियासत की चुनौतियां का सामना किया है ऐसा लगता है इसी कौशल के सहारे वह अपना भविष्य खुद तय करेंगे।
यह देखना दिलचस्प होगा कि उनके राजनीतिक विरोधी क्या अपने मकसद में कामयाब हो पाते हैं? क्या आने वाला विधानसभा चुनाव शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा?