असंतोष पर कांग्रेस की नजर और भाजपा बेफिकर: राघवेंद्र सिंह


स्टोरी हाइलाइट्स

असंतोष पर कांग्रेस की नजर और भाजपा बेफिकर: राघवेंद्र सिंह 1983 की "वो सात दिन" फ़िल्म का गाना....अनाड़ी का खेलना और खेल का सत्यानाश... इसे गाया है ....

असंतोष पर कांग्रेस की नजर और भाजपा बेफिकर न काहू से बैर राघवेंद्र सिंह 1983 की "वो सात दिन" फ़िल्म का गाना....अनाड़ी का खेलना और खेल का सत्यानाश... इसे गाया है आशा भोसले और लिखा है आनंद बख्शी और संगीत दिया है लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने। इसके हीरो हैं अनिल कपूर और हीरोइन हैं पद्मिनी कोल्हापुरे। चाहे कांग्रेस हो या भाजपा इसी गाने की पंक्ति के इर्द गिर्द धूमती दिख रही है। दरअसल राजनीति और अदाकारी के रिश्ते बेहद गहरे और गाढ़े होते हैं। एक्टिंग के मामले में ज्यादातर नेताओं के सामने अभिनेता पानी भरते नजर आते हैं। प्रदेश की राजनीति को समझने-समझाने में वो सात दिन फ़िल्म के गाने की लाइन मदद कर सके। इस अनाड़ीपन में कभी कमलनाथ की सरकार गिर जाती है तो कभी भाजपा जैसी मजबूत संगठन वाली पार्टी भी अपनो के निशाने पर आ जाती है। भाजपा को सबसे ज्यादा विधायक जिताने विंध्य से जब सत्ता में अनदेखी के बाद संगठन के विस्तार में उपेक्षा का विष पीना पड़ता है तो लगता है खेल की कमान अनाड़ियों के हाथ है। इसमें कुछ जिम्मेदारों को बुरा भी लग सकता है इसलिए उनसे माफी के साथ... सूबे के सियासी सीन की शुरुआत संजीदा से संजीदा बातों के लिए साफगोई के लिए मशहूर कांग्रेस के दिग्गज नेता अजीज कुरेशी दो टूक दो बातों से कर रहा हूं। कांग्रेस के मामले में वे कहते हैं यदि हमारे काबिल नेता कमलनाथ विधायकों से मिलते रहते तो आज सरकार कांग्रेस की होती। साथ ही जोड़ते हैं कि आज तो क्या हर दौर में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कमान ऐसे नेता के हवाले करनी चाहिए 24/7 याने चौबीसों घण्टे कार्यकर्ताओं और जनता के लिए काम करे, उनके सुखदुख में काम आए। प्रदेश में मंत्री से लेकर सांसद और राज्यपाल रहे श्री कुरेशी कहते हैं कमलनाथ की योग्यता पर कोई शक नही है वरना वे पीसीसी चीफ के साथ सीएम कैसे रह पाते। केंद्र में लम्बे समय मंत्री रह कर शानदार काम किया है। लेकिन अब जरूरत है की कमलनाथ विधानसभा में विपक्ष के नेता रहें ताकि मौका आने पर फिर सीएम बन सके। जहां तक प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का सवाल है ये जिम्मेदारी पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को सौंप देनी चाहिए। साथ ही वे जोड़ते हैं कि प्रदेश के हित में भाजपा को कमान ज्योतिरादित्य सिंधिया के नाम कर देनी चाहिए। जहां तक मध्य प्रदेश भाजपा का सवाल है, यहां भी अनाड़ी का खेलना खूब चल रहा है। कार्यसमिति के गठन के साथ जिलाध्यक्ष और उनकी कार्यकारिणी को लेकर भारी विवाद है।हांडी के चावल के रूप में जबलपुर जिले का ही मामला लें तो एक राष्ट्रीय नेता के साले साहब दीपांकर बनर्जी का नाम इस बार प्रदेश भाजपा कार्यसमिति से नदारद है। बनर्जी परिवार जनसंघ से लेकर भाजपा तक सक्रिय रहा है। दीपंकर की माता जी जयश्री बनर्जी और चाचा विभाष बनर्जी प्रदेश सरकार में मंत्री भी रहे हैं। इसके विपरीत एक बड़े नेता की सासू मां श्रीमती कांति रावत मिश्रा का नाम कार्यसमिति में शामिल है। उन्हें महिला मोर्चा की पूर्व जिला अध्यक्ष बताया गया है जबकि वे भाजपा में महिला मोर्चा की प्रदेश मंत्री रही हैं। सवाल सासू मां और साले साहब का नही है, यह तो पार्टी के लिए मुसीबत बनने वाले अनाड़ीपनों की मिसाल है। जिनकी परतें आगे खुलती जाएंगी। जिलाध्यक्ष और उनकी कार्यकारिणी को लेकर भी भाजपा के जिम्मेदार नेताओ में असहमतियां विवादों की हद तक चली गयी हैं। इसमें जाति, वर्ण, क्षेत्र और व्यक्तिगत पसंद-नापसंद का अधिक महत्वपूर्ण हो जाना बड़ी वजह बन गया है। खास बात यह है की इसे समझने के लिए प्रदेश के नेताओ से लेकर प्रभारी और दो सह-प्रभारियों के पास भी समय नही है। यह प्रभारी अपने ही राज्यों में स्वयं के लिए ज़्यादा संघर्ष कर रहे हैं। विंध्य क्षेत्र की उपेक्षा जगजाहिर है। यहां विधायक नारायण त्रिपाठी असंतोष को हवा देते हुए प्रथक विंध्य राज्य की मांग का झंडा उठाये हुए हैं। यह तब है जब संगठन और सरकार की तरफ से चेतावनी भरी समझाइश दी जा चुकी है। इसका मतलब पार्टी में अनुशासन कमजोर हो रहा है और नेताओ की धमक घट रही है। दमोह चुमाव में 18 हजार से भाजपा की करारी हार पर भितरघात करने के दोषी नेताओं पर कोई कार्रवाई नही होना नेतृत्व की हैसियत और उसके बालकपन को ही दर्शाता है। आने वाले समय में संगठन के साथ सरकार के विस्तार निगम मंडलों में नियुक्तियों में शायद असंतुष्टों तरजीह दी जाए। इस सबके बीच कांग्रेस का नेतृत्व और राज्य के अनुभवी नेताओं में दिग्विजय सिंह व कमलनाथ की टीम भाजपा के असंतुष्टों पर नज़र रखने के साथ उन से संपर्क भी बनाये हुए हैं। यह रणनीति भाजपा सरकर को संकट में डालने के साथ 2023 के आम में भाजपा नेताओ को तोड़कर बड़े झटके देने की भी हो सकती है। हालांकि पूरे मामले में भाजपा आलाकमान अभी भले है प्रदेश के लेकर गम्भीर नज़र नही आ रहा हो लेकिन यह सही है की जोड़-तोड़ के मामले में भाजपा के दिग्गज नेताओं का कोई मुकाबला नही है। ताजा हालात में तो भाजपा बेफिकर ज़्यादा दिखाई दे रही है। कांग्रेस और भाजपा दोनों में ही वफादारों की हालात पर एक शेर बाद फिट बैठता है- ख्वाहिशों के बोझ में बशर तू क्या कर रहा है, इतना तो जीना भी नही जितना तू मर रहा है।