संकट में कांग्रेस : अवतार की दरकार  … अतुल विनोद पाठक 


स्टोरी हाइलाइट्स

Country times and circumstances change with time. The country's largest political party is a challenge and opportunity in front of the Congress.

संकट में कांग्रेस : अवतार की दरकार  … अतुल विनोद पाठक  समय के साथ देश काल और परिस्थितियां बदलती रहती हैं|  देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस के सामने चुनौती भी है और अवसर भी| मोदी शाह के नेतृत्व की चुनौती के बीच राजनीति की नई इबारत रखने की इससे उम्दा गुंजाइश भी नहीं हो सकती| इस देश में कांग्रेस हमेशा स्वीकार्य रही है|  बीजेपी के मजबूत होने के बावजूद भी कांग्रेस के सामने अब भी खुद को नए सिरे से खड़ा करने का अवसर मौजूद है| कांग्रेस के नेतृत्व को लगता है कि देर सबेर वह इसी कलेवर के जरिए फिर से देश की सियासत के शिखर पर होगी| हालांकि कांग्रेस के आलाकमान की सबसे बड़ी भूल भी हो सकती है|  क्योंकि हर दौर एक सा नहीं होता| गांधी परिवार यदि यह सोचता है कि वह अपने बूते फिर से पार्टी की जड़ें मजबूत कर लेगा तो यह उसका सबसे बड़ा भ्रम भी साबित हो सकता है| यह सवाल हमेशा से  उठ रहा है कि क्या गांधी  परिवार के साए के बगैर कांग्रेस सस्टेन कर सकती है? निश्चित ही|  जब बीजेपी जैसा राजनीतिक दल जिसकी कांग्रेस जैसी कोई ऐतिहासिक बुनियाद नहीं हो वह ऐसा कर सकता है तो कांग्रेस क्यों नहीं| अटल आडवाणी की पार्टी बीजेपी ने इन दोनों चेहरों के बगैर  जिस तरह से देश की सियासत पर कब्जा जमाया है वैसा कांग्रेस भी कर सकती है| इस देश में नेता और नेतृत्व की कमी नहीं है|  फिर हम यह कैसे सोच सकते हैं कि गांधी परिवार के  अलावा इस देश में ऐसा कोई नेता नहीं है जो इस पार्टी का नेतृत्व संभाल सके? किसी पार्टी में नेता तब पैदा होते हैं जब उन्हें अवसर मिले|  इस देश के हर भारतीय के खून में फर्श से अर्श तक की यात्रा करने का माद्दा है| फिर कांग्रेस में ऐसे नेताओं की कमी नहीं है,  जो दूसरी या तीसरी पंक्ति से उठकर पहली पंक्ति में आकर पार्टी को एक सशक्त और सक्षम नेतृत्व दे सकें| यह वह दौर है जब कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व  ज्यादातर मोर्चों पर   विफलता हो रहा है|  जिस दौर में कांग्रेस के ही अन्य नेता अपने नेतृत्व के सामने असहज महसूस कर रहे हैं|  उस दौर में गांधी परिवार यदि खुद को पीछे करके अन्य लोगों को पार्टी चलाने का मौका  देते हैं तो  यह बड़ी बात होगी| ऐसा न करके गांधी परिवार कांग्रेस को मिले प्राइवेट लिमिटेड पार्टी के ठप्पे को स्थाई करने के अलावा कुछ नहीं कर पाएगा| यह गांधी परिवार को तय करना है कि वह कांग्रेस को क्षेत्रीय दल में कन्वर्ट करना चाहती है या भारतीय जनता पार्टी का मजबूत विकल्प बनाना चाहती है| देश का मतदाता हमेशा एक अच्छे विकल्प की तलाश करता है| विकल्प ना हो तो वह सबसे बेहतर का चुनाव करता है| मतदाता के सामने मजबूरी होती है कि वह ऐसी पार्टी को वोट दें जो  चुनाव मैदान में उतरी अन्य पार्टियों से बेहतर हो| कांग्रेस खुद को बेहतर कैसे साबित कर सकती है?  अपनी नीतियों को नए सिरे से निर्धारित करके,  अपने संगठन को पुनर्गठित करके,  किसी सक्षम  नेता को पार्टी की कमान देकर जो गांधी परिवार से हट कर हो| कांग्रेस के क्षेत्रीय नेता आज मजबूती से पार्टी की जड़ों को पकड़े हुए हैं| सच मानिए तो क्षेत्रीय नेताओं की बदौलत ही कांग्रेस आज अपना वजूद कायम रख पा रही है| मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने क्षेत्रीय नेताओं के बूते ही सत्ता हासिल की थी|  छत्तीसगढ़, राजस्थान, पंजाब  में भी क्षेत्रीय नेताओं ने ही कांग्रेस की साख को बचाए रखा| कांग्रेस में ऐसे कई नेता उभर कर सामने आए जो पार्टी के साथ देश का नेतृत्व भी संभाल सकते थे लेकिन वह गांधी परिवार के कारण ही पीछे रह गए| जिस कांग्रेस को देश की जनता ने ज्यादातर समय सत्ता के सिंहासन पर बैठा रखा,  उस जनता के प्रतिनिधि को उस पार्टी के शीर्ष पद पर बैठने का पूरा अधिकार है| कांग्रेस को वजूद में रखने के लिए जनता ने हमेशा गांधी परिवार को ही नहीं देखा| जनता ने इस पार्टी की साख इतिहास और इसमें शामिल क्षेत्रीय और राष्ट्रीय नेताओं का चेहरा भी देखा| कांग्रेस की पहचान गांधी परिवार के साथ अनेक ऐसे नेता रहे जिन्होंने जनता के दिलों में अपनी जगह बनाई थी| लोकतंत्र की खूबसूरती इसी बात में है कि उसमें कोई भी आम नागरिक अपनी काबिलियत क्षमता और प्रभावशाली नेतृत्व के दम पर शीर्ष पद पर पहुंच सकता है| यह विडंबना है कि लोकतंत्र की इस बुनियादी समझ को इस देश की सबसे बड़ी पार्टी कहीं जाने वाली कांग्रेस ने ही अंगीकार नहीं किया| यदि हमारा लोकतंत्र किसी आम नागरिक को देश का प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति बनने का अवसर देता है तो वही लोकतंत्र कांग्रेस पार्टी को भी अपने शीर्ष पद पर  किसी भी आम  योग्य कार्यकर्ता को बैठने का  मौका भी देता है| आज कांग्रेस में वैचारिक शुन्यता है|  आम नागरिक राष्ट्रीय मुद्दों पर कांग्रेस की समझ और प्रतिक्रिया  से खुद को जोड़ने में असहज महसूस करने लगा है| जवाब जन भावनाओं को समझने में नाकाम रहें| वीक,अनोर्गनाइज्ड,अनस्टेबल,मूडी,  हो जाएँ| एकाधिपति,अधिनायक,तानाशाह हो जाएं|   आप यह मानने से इंकार कर दें कि आपके अलावा  कोई और आपकी तरह नेतृत्वकर्ता नहीं बन सकता तब आप अपने आप को भारी अंधकार में ले जाते हैं| ठीक है कि आप खुद को अंधकार में रखना चाहते हैं लेकिन उस पार्टी को आप रसातल में नहीं ले जा सकते जो इस देश के  नागरिकों के अरमानों, कार्यकर्ताओं की मेहनत और परिश्रम,  अन्य नेताओं के समर्पण,  बुद्धिजीवियों के वैचारिक सहयोग,  मतदाताओं के लगातार मिलने वाले बेशकीमती वोटों से टिकी हो| किसी भी मुख्य राष्ट्रीय दल का  नीचे गिरना उस देश के लोकतंत्र के लिए घातक माना जाता है|  देश में हमेशा सत्ताधारी दल के विपरीत एक ऐसा दल मजबूती से खड़ा होना चाहिए जो उसका विकल्प बन सके| राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर सरकार भटके तो सही  रास्ते पर ला सके| मजबूत विपक्ष तभी निर्मित होता है जब उसके अंदर सक्षम समर्थ विचारशील और स्पष्ट नेतृत्व हो|  दूसरी और तीसरी कतार में ऐसे नेताओं की फौज हो जिनके अंदर उस पार्टी का नेतृत्व करने की क्षमता हो| नेतृत्व का गैर जवाबदेहिता और अस्थिर नजरिया हमेशा पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को कमजोर करता है| जैसे किसी राष्ट्र की शक्ति उसकी सामूहिक चेतना में है उसी तरह से किसी पार्टी की ताकत उसके नेताओं और कार्यकर्ताओं की सामूहिक सोच-समझ और आत्मबल में है| यदि कार्यकर्ताओं और समर्थकों का मनोबल कमजोर होता है तो विभिन्न स्तरों पर पार्टी का नेतृत्व करने वाले नेताओं का  आत्मबल पर भी इसका असर पड़ता है| यह बात सुखद है कि आज कांग्रेस में कई ऐसे नेता है जो पार्टी के नेतृत्व के वैचारिक रुझान से उलट राष्ट्रीय मसलों पर अपनी पॉलिटिकल समझ से प्रतिक्रिया देने लगे हैं| कुछ ऐसा ही ज्योतिरादित्य सिंधिया ने किया था|  बीजेपी में आने से पहले कुछ मुद्दों पर उन्होंने जन भावनाओं के अनुरूप राष्ट्रीय मुद्दों पर पार्टी के  स्टैंड के खिलाफ  जाकर बयान दिए थे| पार्टी में ऐसे नेताओं की कमी नहीं है जो क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर पार्टी के आलाकमान के रुख, रवैया और स्टैंड पर यकीन नहीं रखते|   हालांकि वे  चुप रह जाते हैं क्योंकि मुखर  और स्पष्टवादी होने का खामियाजा पार्टी के कई  नेता पहले भुगत चुके हैं| कांग्रेस में संकट का दौर है,  स्थाई अध्यक्ष की दरकार है|  संगठन में सशक्त नेताओं की भारी कमी है|  सेवादल की  भूमिका नगण्य हो चुकी है|  गांधी परिवार के सारे तुरुप के पत्ते चले जा चुके हैं|  अब और कोई करिश्माई चेहरा इस कुनबे में छुपा नहीं है| कई राज्यों में पार्टी दूसरे तीसरे और चौथे नंबर पर पहुंच गई है|  गांधी परिवार की अपनी एक अलग दुनिया है,ख़ुदपसंदी और चुप्पी  में डूबा ये परिवार अपनी इस विरासत को हाथ से जाने नहीं देना चाहता| लेकिन उसे ये दिखाई नहीं देता कि समय के साथ महलों और किलों की कोई उपयोगिता नहीं रह जाती यदि उन्हें वक्त के  अनुसार परिवर्तित ना किया जाए| आज नेतृत्व को साहसिक. निर्णायक और समझदारी भरा  निर्णय लेना है| अहमद पटेल के जाने से आलाकमान  से एक मजबूत हाथ छिन गया है|  कपिल सिब्बल जैसे  अनेक नेता  पार्टी के  इन हालात से असहज हो रहे हैं|  पार्टी नेतृत्व  सिंहासन खाली करने के साथ अपने प्रांतीय नेताओं को और अधिक अधिकार देने के विकल्प पर भी विचार कर सकता है|  पार्टी से प्रतिभाशाली युवाओं को जोड़ने की जरूरत है साथ ही अलग-अलग क्षेत्रों के ऐसे बुद्धिजीवियों  को पार्टी मिलाने की जरूरत है जो कांग्रेस के वैचारिक धरातल को मजबूत करें| इनके सेलेक्शन में पुरानी विचारधारा, रुझान और सोच आड़े नहीं आनी चाहिए क्यूकी ये ने दौर का भारत है|  घिसे पिटे नेताओं और सोच को दरकिनार  कर पार्टी को हर स्तर के मुद्दे पर अपनी स्पष्ट राय बनानी होगी|  इसके लिए वो  सोशल मीडिया पर जनमत संग्रह और वर्कशॉप जैसे उपायों को भी अपना सकती है|