कोरोना दिमागी रूप से भी कर रहा है बहुत बीमार- लेकिन याद रखिये “यह भी गुजर जाएगा” -दिनेश मालवीय


स्टोरी हाइलाइट्स

कोरोना दिमागी रूप से भी कर रहा है बहुत बीमार लेकिन याद रखिये “यह भी गुजर जाएगा” -दिनेश मालवीय दुनिया भर को अपनी चपेट में लिए कोरोना वायरस ने लाखों लोगों की जान ले ली है और लाखों को बीमार कर उनकी जान को जोखिम में डाल दिया है. यह तो बहुत चिंताजनक और खतरनाक बात है ही, लेकिन एक और खतरनाक चीज जो हो रही है वह यह है कि बड़ी संख्या में लोग दिमागी रूप से बीमार हो रहे हैं. अवसाद बढ़ रहा है. कई लोगों ने तो अवसाद के कारण ख़ुदकुशी तक कर ली है. मनुष्य ही नहीं किसी भी जीव को सबसे ज्यादा डर मौत से लगता है. कोरोना प्रकोप के कारण एक ऐसा माहौल बन गया है कि हर किसीको अपने जीवन को लेकर अनिश्चतता ने घेर लिया है. सामान्य रूप से हर साल मौसम बदलने पर सर्दी-जुकाम सहित अनेक प्रकार के शारीरिक विकार युगों-युगों से होते रहे हैं. इनके इलाज भी हो जाते हैं. लेकिन आज मामूली सर्दी-जुकाम से भी लोग भयंकर रूप से घबरा रहे हैं. ज़रा-सी खाँसी चलने या जुकाम हो जाने पर उसे यह डर लगने लगा है कि कहीं उसे कोरोना तो नहीं हो गया. हालाकि, कोरोना वायरस के व्यापक प्रकोप को देखते हुए इसके प्रति सजगता बहुत अच्छी बात है और ऐसे लक्षण प्रकट होने पर तुरंत डॉक्टर से सलाह भी ली जानी चाहिए. लेकिन इससे इतना ज्यादा डरने की ज़रूरत नहीं है कि हम डर के मारे दिमागी रूप से बीमार हो जाएँ और खौफ के साए में जीने लगें. अवसाद सहित दिमागी बीमारियाँ बढ़ने का एक और कारण लगातार lockdown भी है. मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है. वह बहुत समय तक अकेला या अपने घर में कैद नहीं रह सकता. घर में कोई कितने दिन तक बिना कुछ किये रह सकता है? कुछ लोगों ने कुछ करने के उपाय अवश्य ढूंढ लिए हैं, लेकिन स्थिति तो सामान्य जीवन जीने की नहीं हैं. साथ ही, काम-धंधे चौपट हो गये हैं. इसका सबसे ज्यादा बुरा असर मध्यम और निम्न वर्गों पर पड़ा है. उच्च वर्ग के लोगों के पास पर्याप्त सुविधाएँ और साधन मौजूद हैं और उन्हें खाने-पीने और जीवन की अन्य ज़रूरतों के लिए कोई कठिनाई नहीं उठानी पड़ रही. लेकिन मध्यम वर्ग और निम्न वर्ग पर तो जीवन का संकट खड़ा हो गया है. उनके पास घर में इतनी व्यवस्था नहीं होती कि वे बिना काम किये लगातार कई महीनों तक सुविधाजनक रूप से जी सकें. रोजाना दिहाड़ी पर काम करने वालों की मुसीबत तो बहुत ज्यादा है, हालाकि सरकार ने अपने हिसाब और उपलब्ध संसाधनों के मुताबिक़ उन्हें यथासंभव मदद पहुंचाने का सराहनीय काम किया है. निजी कम्पनियों में काम करने वालों पर जॉब छिन जाने का संकट आ खड़ा हुआ है. कोई भी कम्पनी कितने लम्बे समय तक बिना काम किये अपने कर्मचारियों को वेतन दे सकती है? जो कम्पनियां जॉब नहीं भी छीन रहीं, उनमें से अधिकतर वेतन में कटौती कर रही हैं. इस सूरते-हाल में लोगों में दिमागी बीमारियों का बढ़ना स्वाभाविक है. नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेज द्वारा स्थापित की गयी हेल्पलाइन में पिछले तीन महीने में तीन लाख से अधिक ऐसे लोगों के डिस्ट्रेस कॉल आ चुके हैं, जो कोरोना और इससे उत्पन्न स्थिति के कारण भारी मानसिक दबाव महसूस कर रहे हैं. इनमें से ज्यादातर कॉल्स उन लोगों की हैं जो कोरोना के कारण ख़ुद को बहुत असहाय और चिन्तित महसूस कर रहे  हैं. बहुत से लोग मौजूदा हालत के चलते अपने परिवार से दूर होने की कारण दिमागी रूप से बेहद परेशान हैं. वे अपने सगे-सम्बन्धियों की कुशलता को लेकर परेशान हैं. बड़ी संख्या में लोग चिंता के कारण अनिद्रा के शिकार हो रहे हैं. ऎसी स्थिति में प्रश्न यह उठता है कि ऐसा कौन-सा रामवाण उपाय है, जो हमें दिमागी रूप से बीमार होने से बचा सके? इसका कोई एक रामवाण उपाय नहीं हो सकता. हर व्यक्ति की मानसिकता, संस्कार, परिवेश, परवरिश और इनसे सम्बंधित अनेक चीजें एक जैसी नहीं होतीं, इसलिए सबका इलाज भी एक ही नहीं हो सकता. बहरहाल, कुछ बातें ऐसी हैं, जो सभी के लिए काफी हद तक सामान रूप से मददगार हो सकती हैं. इनमें एक बहुत प्रभावी उपाय है परस्पर सहयोग. परिवार में सभी लोग आपस में इस तरह एक-दूसरे के साथ व्यवहार करें कि कोई भी ख़ुद को अकेला महसूस नहीं करे. घर में जो भी कुछ उपलब्ध है उसका सभी लोग सामान रूप से उपयोग करें. साथ में बैठें-उठें, बात करें. पढने में रुचि रखने वाले लोग अच्छी चीजें पढ़ें. धार्मिक ग्रन्थ भी काफी मददगार साबित हो सकते हैं. टीवी पर कोरोना से सम्बंधित और अन्य नकारात्मक ख़बरें कम से कम देखें. ऐसे कार्यक्रम देखें जो मन पर सकारात्मक प्रभाव डालने वाले हों. रिश्तेदारों से फोन पर लगातार संपर्क में रहिये. बच्चों को कोरोना से बचाव के सम्बन्ध में समझाएं अवश्य, लेकिन उन्हें ऐसा महसूस नहीं होने दें कि कोई बहुत बड़ी विपत्ति आ पड़ी है. बाल मन पर इसका ऐसा गहरा असर हो सकता है कि बच्चों में अनेक मनोविकार उत्पन्न हो जाएँ, जो जीवनभर उनके साथ रह सकते हैं. महिलाएं भी बहुत सवेदनशील होती हैं. उन्हें आश्वस्त करते रहें कि यह समय भी निकल जाएगा. इस समय घर के बुजुर्गों को भी बहुत देखभाल और मनोवैज्ञानिक समझाइश की जरूरत है. वैसे तो कोरोना का प्रकोप कम नहीं हुआ है, लेकिन आर्थिक और सामान्य जीवन कुछ हद तक पटरी पर लौटने लगा है. इसके कुछ अच्छे परिणाम भी दिखने लगे हैं. लोग सावधानी बरतते हुए काम पर जाने लगे हैं. आर्थिक संकट भी पहले की तुलना में कुछ कम हो ही रहा है. कारखाने भी धीरे-धीरे शुरू हो रहे हैं और उनमें काम करने वाले लोग भी काम पर लौटने लगे हैं. फिर भी, एक रामवाण उपाय यह याद रखना है कि “यह समय भी गुजर जाएगा”.