दमोह उपचुनाव : कमलनाथ रणनीति की जीत नहीं, जातिवादी राजनीति की हुई है हार
गणेश पाण्डेय
भोपाल. दमोह उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी राहुल लोधी की हार हार से कांग्रेसी अपने प्रदेश अध्यक्ष कमल नाथ की रणनीति को श्रेय दे रहे हैं. जबकि हकीकत यह है कि यहां के मतदाताओं ने जातिवादी जहर घोलने वाले नेताओं को सबक सिखाया है. दमोह में पहली बार मतदाताओं ने जातिगत ध्रुवीकरण ( लोधी विरुद्ध अन्य) को दृष्टिगत रखते हुए वोट किया. यही वजह रही कि राहुल लोधी 17000 मतों के अंतर से हारे. यह बात अलग है कि राहुल लोधी की हार के लिए जयंत मलैया और उनके परिवार को टारगेट किया जा रहा है.
दमोह के क्षेत्रीय सांसद जॉन केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल लोधी समाज से आते हैं. पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती भी इसी समाज का प्रतिनिधित्व करती है. राहुल लोधी भी कांग्रेस की टिकट से दमोह से निर्वाचित हुए थे किंतु बगावत कर भाजपा का दामन थाम लिया. उनके दलबदल से दमोह के मतदाताओं में भारी नाराजगी थी जो वोट में कन्वर्ट हुई. उपचुनाव में यहां के मतदाताओं को लगने लगा था कि यदि राहुल लोधी चुनाव जीत जाते हैं तो जातिवादी राजनीति को बल मिलेगा. दमोह में कभी भी जातिवाद राजनीति चरम पर नहीं रही. यही वजह रही कि यहां से स्वर्गीय रत्नेश सालोमन जैसे अल्पसंख्यक नेता भी चुनाव जीतते रहे हैं.
दमोह उपचुनाव के दौरान नजदीकी से राजनीतिक वातावरण का आकलन करने वाले वरिष्ठ पत्रकार संदीप पुराणिक बताते हैं कि भाजपा ने अपने प्रत्याशी का चयन ही गलत किया था. राहुल लोधी की जगह और किसी को प्रत्याशी बनाती तो बीजेपी की जीत लगभग तय होती. पुराणिक बताते हैं कि गुमटी वाले से लेकर चाय वाले और शहर के मतदाताओं से लेकर ग्रामीण जनों में राहुल लोधी का जबरदस्त विरोध था. जैसा वातावरण था, वैसे ही नतीजे भी आए. चुनाव नतीजे आने के बाद किसी एक परिवार को टारगेट करना. भा जा पा के भविष्य के लिए अच्छे संकेत नहीं है.
सिंधिया के सामने बोनी नजर आई कमलनाथ कांग्रेस
बीजेपी प्रत्याशी राहुल लोधी की दमोह में एंटी इनकंबेंसी की वजह से कांग्रेस को सफलता मिली. इस सफलता से कांग्रेस के नेता भले ही अपनी पीठ थपथपा रहे है. प्रदेश अध्यक्ष कमल नाथ की चुनावी प्रबंधन को श्रेय दे रहे हो किंतु राजनीतिक हकीकत कुछ और ही बयां कर रहे हैं.
लोधी के व्यक्तिगत नाराजगी ही कांग्रेस की जीत का श्रेय है. कांग्रेस के एक सीनियर लीडर ने प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ की चुनावी प्रबंधन पर सवाल किया कि फिर हम (कांग्रेस ) पूर्व में हुए 28 उपचुनाव में क्यों हारे. यह उपचुनाव भी तो राहुल लोधी जैसे दलबदल करने की वजह से हुआ था. इससे तो यह भी संकेत मिलते हैं कि कमलनाथ कांग्रेस, पूर्व कांग्रेस नेता और वर्तमान बीजेपी सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के सामने बौनी नजर आई. शायद यही वजह रही कि तमाम विरोध के बावजूद भी स्वास्थ्य मंत्री डॉ प्रभु चौधरी जैसे उपचुनाव भारी मतों से जीते.
पटेल का 'पूतना' कहना भी महंगा पड़ा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार में अपने भाषण में डीएनए कराने की बात क्या कही कि बीजेपी के पक्ष में बना राजनीतिक वातावरण का समीकरण ही पलट गया. कमोबेश यही स्थिति दमोह के उपचुनाव में भी रही. यहां केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल के चुनावी भाषण में 'पूतना' की बात कह कर दमोह के बड़े नेताओं एवं जनता को खासा नाराज कर दिया. हालांकि पटेल ने पूतना किसे कहा, इसे लेकर सबके अपने-अपने तर्क है. यह बात अलग है कि पटेल ने भी राहुल लोधी की हार के लिए मलैया परिवार को ही टारगेट किया है.
उमा और प्रहलाद के बीच में फंस गए थे लोधी
एक लंबे अरसे से न केवल बुंदेलखंड बल्कि मप्र में ही पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती लोधी समाज का सबसे बड़ी नेता मानी जाती रही है. सुश्री भारती ने अपने इसी वर्ष से के चलते ही भाजपा से बगावत कर भारतीय जनशक्ति पार्टी का गठन किया था. इसके बाद से ही पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती और प्रहलाद पटेल के बीच वर्चस्व की जंग शुरू हुई, जो आज भी जारी है. लोधी समाज के वर्चस्व की जंग में राहुल लोधी मोहरे की तरह पिट गए. राहुल लोधी और उनके भाई विधायक मलहरा प्रद्युमन लोधी उमा भारती के समर्थक माने जाते हैं. भाजपा में आने के बाद राहुल लोधी की राजनीतिक निष्ठा केंद्रीय मंत्री पटेल से जुड़ गई. उमा भारती और पहलाद पटेल के बीच से और मात के खेल में राहुल गांधी दमोह उप चुनाव हार गए.