वास्तुशास्त्र और स्वास्थ्य में गहरा सम्बन्ध -दिनेश मालवीय


स्टोरी हाइलाइट्स

वास्तुशास्त्र और स्वास्थ्य में गहरा सम्बन्ध घर बनाने में इन बातों का रखें ध्यान: नहीं होंगे परेशान -दिनेश मालवीय आज के समय में वास्तुशास्त्र में लोगों का विश्वास बढ़ता जा रहा है. अधिकतर लोग घर बनाने या खरीदने से पहले वास्तुशास्त्र के मापदंडों पर उसे परखना चाहते हैं. ऐसा करना स्वाभाविक भी है, क्योंकि अधिकतर लोग जीवन में एक बार घर बनाते या खरीदते हैं. वे चाहते हैं कि उनका घर उनके और परिवार के लिए हर प्रकार से शुभ और मंगलकारी हो. वास्तुशास्त्र लोकप्रियता के चलते इस शास्त्र के  ज्ञाता भी बहुत बढ़ गये हैं. वास्तुशास्त्र में घर के निर्माण से सम्बंधित नियम बताये गये हैं. इनका पालन करने से लाभ होता है. वास्तु का स्वास्थ्य से सीधा सम्बन्ध बताया गया है.वैसे तो घर बनाने से पहले ही किसी वास्तुशास्त्री से भूमि का परीक्षण करवा लेना चाहिए, जिससे वास्तुदोष के कारण रोग-शोक उत्पन्न न हों. लेकिन यदि आप ख़ुद भी परीक्षण करना चाहें, तो इसके लिए भी वास्तुशास्त्र में मार्गदर्शन दिया गया है. भूमि की जाँच- यह परीक्षण करना बहुत उपयुक्त है कि आप जिस भूमि पर अपने सपनों का आशियाना बनाने जा रहे हैं, उसमें कोई दोष तो नहीं है. इसके लिए बताया गया है कि भूमि पर एक हाथ लंबा, एक हाथ चौड़ा और एक हाथ गहरा गड्ढा खोदना चाहिए. इसके बाद खोदी गयी मिट्टी को वापस उसी गड्ढे में डालना चाहिए. अगर यह गड्ढा भरने के बाद मिट्टी बच जाए, तो वह भूमि सबसे अच्छी भूमि मानी जाती है. अगर गड्ढे के बराबर मिट्टी निकलती है तो उस भूमि को मध्यम और गड्ढा भरने के लिए मिट्टी कम पड़ने पर भूमि को ख़राब माना जाता है. एक और तरीका यह बताया गया है कि ऊपर बताये गये तरीके से गड्ढा खोदकर उसमें पानी भर दें. इसके बाद उत्तर दिशा की ओर सौ कदम चलें और फिर लौटकर देखें. अगर गड्ढे में पानी उतना ही है, तो भूमि बहुत अच्छी है. यदि पानी कम या आधा रहे तो मध्यम और यदि बहुत कम पानी रह जाए तो वह भूमि खराब मानी जाती है. इसके अलावा जो जमीन ऊसर हो, जहाँ चूहों और सांप के बिल हों, जमीन ऊबड़-खाबड़, गड्ढों वाली या टीलों वाली हो तो वहाँ घर नहीं बनाना चाहिए. जिस भूमि में गड्ढा खोदने पर कोयला, भस्म, हड्डी, भूसा आदि निकले तो वहाँ भी घर न बनाना ही उचित है. भूमि की सतह- घर के लिए भूमि की सतह के सम्बन्ध बताया गया है कि  पूर्व, उत्तर और ईशान दिशा में नीची भूमि हर तरह से लाभप्रद होती है. आग्नेय, दक्षिण, नैश्रत्य, पश्चिम, वायव्य और मध्य में नीची भूमि पर घर बनाने से इसमें रहने वालों को रोगों का सामना करना पड़ता है. इसके अलावा दक्षिण और आग्नेय के बीच नीची और उत्तर तथा वायव्य के बीच ऊंची भूमि रोग उत्पन्न करने वाली होती है. निर्माण कार्य का शुभारम्भ - घर के निर्माण का श्रीगणेश करने के सम्बन्ध में भी वास्तुशास्त्र में दिशानिर्देश दिए गये हैं. वैशाख, श्रावण, कार्तिक, माघशीर्ष और फाल्गुन महीने में निर्माण कार्य का शुभारम्भ बहुत श्रेष्ठ माना गया है. इससे घर में रहने वालों को आरोग्य और धन-समृद्धि प्राप्त होती है. नींव खोदते समय अगर भूमि के अन्दर से पत्थर या ईंट निकले तो इससे आयु में वृद्धि होती है. यदि राख, कोयला, भूसी, हड्डी, कपास, लोहा आदि निकलें तो रोग और दुःख प्राप्त होते हैं. घर का आकर- वास्तुशास्त्र के अनुसार, आयताकार मकान सबसे अच्छा होता है. इसकी लम्बाई, चौड़ाई से दो गुना से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. कछुए के आकार का घर पीड़ादायक होता है. कुम्भ यानी घड़े के अकार वाले घर में रहने से कुष्ठरोग का खतरा रहता है. तीन या छह होनों वाला घर आयु को कम करता है. पाँच कोनों वाला घर संतान को कष्ट देता है. आठ कोनों वाला घर रोग उत्पन्न करता है. घर को एक ही दिशा में आगे नहीं बढ़ाना चाहिए. यदि ऐसा करना ज़रूरी हो तो सभी दिशाओं में इसे समान रूप से बढाया जाना चाहिए. यदि घर वायव्य दिशा में बढाया जाए तो वात रोग होते हैं. दक्षिण दिशा में बढाने पर मृत्यु का भय होता है. उत्तर दिशा में बढाने पर रोग बढ़ते हैं. निर्माण सामग्री- नए घर के निर्माण में ईंट, लोहा, पत्थर, मिट्टी और लकड़ी का उपयोग उपयुक्त माना गया है. एक मकान में उपयोग की गयी लकड़ी का दूसरे मकान में उपयोग करने से गृहस्वामी का नाश होता है. मंदिर, महल और मठ में पत्थर लगाना शुभ होता है. पीपल, कदम्ब, नीम, बहेड़ा, आम, पाकर, गूलर, रीता, वट, इमली, बबूल और सेमल के पेड़ की लकड़ी का घर बनाने में उपयोग नहीं करने की सलाह दी गयी है. घर की आग्नेय दिशा में वट, पीपल, सेमल, पाकर और गूलर का पेड़ हो तो पीड़ा या मृत्यु होती है. दक्षिण में पाकर का पेड़ हो तो रोग उत्पन्न होते हैं. उत्तर में गूलर होने से आँखों की बीमारी हती हैं. बेर, केला, अनार, पीपल और नीबू के पेड़ जिस घर में होते हैं, उसमें वृद्धि नहीं होती. घर के पास काँटेवाले, दूधवाले और फलवाले वृक्ष हानिप्रद माने गये हैं. घर के पास पाकर, गूलर, आम, नीम, बहेड़ा, पीपल, कपित्थ, बेर, निर्गुण्डी, इमली, कदम्ब, बेल और खजूर के पेड़ अशुभ माने जाते हैं. मुख्य द्वार- जिस दिशा में मुख्य द्वार बनाना हो, उस की ओर मकान की लम्बाई के बराबर नौ भागों में बाँटकर पाँच भाग दाए और तीन भाग बाएं छोड़कर शेष भाग में द्वार बनाना चाहिए. साथ ही, घर में कुआँ या भूमिगत टंकी पूर्व, पश्चिम, उत्तर या ईशान दिशा में होनी चाहिए. घर में कमरे- घर में कमरों के सम्बन्ध में बताया गया है कि यदि एक कमरा पश्चिम में और एक कमरा उत्तर में हो तो वह गृहस्वामी के लिए मृत्युदायक होता है. पूर्व और उत्तर दिशा में कमरा हो तो उम्र कम होती है. पूर्व, पश्चिम और उत्तर में कमरा हो, लेकिन दक्षिण मे न हो तो सब प्रकार के रोग होते हैं. इसके अतिरिक्त घर की, रसोई, शौचालय आदि के के विषय में भी वास्तुशास्त्र में उपयोगी सलाह दी गयी हैं. रसोई आग्नेय कोण में होनी चाहिए. शौचालय नैश्रत्य, वायव्य या दक्षिण दिशा में होना उचित है.