28 जनवरी 1528 चंदेरी में बाबर का विध्वंस............. महारानी के साथ 1500 क्षत्राणियों का जौहर


स्टोरी हाइलाइट्स

28 जनवरी 1528 चंदेरी में बाबर का विध्वंस.महारानी के साथ 1500 क्षत्राणियों का जौहर demolition-of-babur-in-chanderi-28-january-1528-jauhar-of-1500-kshatriyans-with-the-queen

28 जनवरी 1528 चंदेरी में बाबर का विध्वंस..........................महारानी के साथ 1500 क्षत्राणियों का जौहर ---रमेश शर्मा भारतीय इतिहास के कुछ पन्ने रक्त से रंजित हैं। घटनाओं का ऐसा विवरण है जो रोंगटे खड़े करता है। ऐसा ही विवरण चंदेरी के विध्वंस का विवरण है जो बाबर ने किया था, उसने केवल विध्वंस ही नहीं किया था बल्कि बंदियों के शीश काटकर ऊँचा पहाड़ बनाया जिस पर अपना झंडा फहराया। उसने निर्दोष स्त्री पुरूषों को पकड़ कर गुलाम बनाया कुछ बेचने के लिये खुरासान भेजा और इसी विध्वंस के बीच महरानी मणिमाला सहित 1500 क्षत्राणियों के जौहर किया। यह युद्ध वर्ष 1528 जनवरी के अंतिम सप्ताह में हुआ। गद्दार द्वारा चंदेरी दरबाजा खोलने की तिथि 28 और 29 जनवरी की रात है। इसलिये कुछ इतिहासकारों ने विध्वंस की तिथि 28 जनवरी मानी और कुछ ने 29 जनवरी 1528। चंदेरी मध्यप्रदेश के ग्वालियर संभाग और अशोकनगर जिले के अंतर्गत एक ऐतिहासिक नगर है। उन दिनों चंदेरी पर प्रतिहार वंशीय शासक मेदनीराय का शासन था। तब चंदेरी अंतराष्ट्रीय रेशम के व्यापार का बड़ा केन्द्र था। मेदिनी राय न केवल चितौड़ के शासक राणा साँगा की कमान में बाबर से युद्ध करने के लिये खानवा के मैदान में अपनी सेना लेकर गये थे बल्कि राणा साँगा उन्हे अपना पुत्र भी मानते थे। खानवा में राणा की पराजय के बाद बाबर ने उन सभी राजपूत राजाओं के दमन का सिलसिला शुरू किया जो राणा साँगा की कमान में बाबर से युद्ध करने खानवा पहुँचे थे। इनमें मेदिनीराय का नाम प्रमुख था। युद्ध के बाद मेदिनी राय चंदेरी लौट आये और राणा जी के स्वस्थ होने की प्रतीक्षा करने लगे। चंदेरी अभियान के लिये बाबर 9 दिसम्बर 1527 को सीकरी से रवाना हुआ। इसकी खबर मेदिनी राय को लग लग गयी थी, उन्होंने सहायता के लिये मालवा के अन्य राजाओं को संदेश भेजे और आवश्यक सामग्री एकत्र कर स्वयं को किले में सुरक्षित कर लिया। चंदेरी का यह किला पहाड़ी पर बना है। यह देश के अति सुरक्षित किलों में से एक माना जाता है। बाबर और उसकी फौज रास्ते भर लूट, हत्या, बलात्कार करती| 20 जनवरी 1528 को चंदेरी पहुँची। बाबर ने रामनगर तालाब के पास अपना कैंप लगाया और दो संदेश वाहक शेख गुरेन और अरयास पठान को राजा मेदिनी राय के पास भेजा। संदेश वाहकों ने तीन संदेश दिये एक मुगलों की आधीनता स्वीकार करो और मुगलों के सूबेदार बनों दूसरा चंदेरी का किला खाली करदो इसके बदले कोई दूसरा किला ले लो और तीसरा अपनी दोनों बेटियों की शादी मुगल शहजादों से कर दो। अंत में स्वाभिमानी मेदनी राय ने शर्तों को अस्वीकार कर दिया। मेदिनी राय को लगता था कि बाबर की फौज पहाड़ी न चढ़ पायेगी। लेकिन बाबर के पास तोपखाना और बारूद था। उसने एक रात में पहाड़ी को काटकर रास्ता बना लिया था और किले के दरबाजे तक आ गया था। दूसरी तरफ राजपूतों के पास न बारूद था न तोपखाना। उनके पास तीर कमान, तलवार, भाला या आग के गोलों के अतिरिक्त कुछ नहीं। वह 26 जनवरी 1528 की तिथि थी जब समर्पण के लिये बाबर का अंतिम संदेश राजा मेदिनीराय को मिला। संदेश पाकर राजा ने रणभेरी बजाने का आदेश दिया। 27 जनवरी को किले का द्वार खोलकर युद्ध हुआ पर तोपखाने के सामने राजपूत सेना टिक न सकी। राजा घायल हो गये उन्हे अचेत अवस्था में किले के भीतर लाकर द्वार बंद कर दिया गया। 28 जनवरी को बाबर का तोपखाना किले दीवार पर गरजने लगा| महारानी मणिमाला को भविष्य का अंदाजा हो गया और वे किले के भीतर विराजे महाशिव के मंदिर में चली गई। उनके साथ राज परिवार और अन्य क्षत्राणियां थी जिनकी संख्या 1500 से अधिक लिखी है। सभी सती स्त्रियों ने पहले शिव पूजन किया फिर स्वयं को अग्नि को समर्पित कर दिया। जिस समय ये देवियाँ जौहर कर रहीं थी तभी किसी विश्वासघाती ने किले का दरबाजा खोल दिया। मुगलों की फौज भीतर आ गयी। किले के भीतर यूँ भी मातम जैसा माहौल था। जिसके हाथ में जो आया उससे मुकाबला करने लगा। पर यह युद्ध नाम मात्र का रहा। रात भर मारकाट हुई| यह मारकाट एक तरफा थी। हमलावरों ने किले के भीतर किसी पुरूष को जीवित न छोड़ा। स्त्रियों को बंदी बना लिया गया। सबेरे सारी लाशे एकत्र की गयीं। उन्हे के शीश काटे गये उनका ढेर लगाया गया और उस पर मुगलों का ध्वज फहराया गया। बाबर यहाँ पन्द्रह दिन रहा। आसपास जहाँ तक बन पड़ा लूटपाट की गयी। लाशों के ढेर लगे। मकानों को ध्वस्त किया गया| यातनायें देकर छुपा धन वसूला गया। और अय्यूब खान को चंदेरी का सूबेदार बना कर लौट गया| (इस युद्ध और जौहर का वर्णन "प्रतिहार राजपूतों का इतिहास" लेखक देवी सिंह पुस्तक में विस्तार से है। जबकि युद्ध वर्णन ग्वालियर और गुना जिले के गजट में भी है। चंदेरी में जौहर स्थल भी बना है वहां महिलाएं पूजन करने भी जातीं हैं)