वासना तथा जीव का बेवरा : आत्माएं पृथ्वी पर क्यूँ आती हैं ?


स्टोरी हाइलाइट्स

"वासना जीव का बेवरा एता, ज्यों सूरज  दृष्टे रात।जीव का अंग सुपन का, वासना अंग साख्यात ।। "महामति प्राणनाथ जी के उपरोक्त पद में वासना शब्द का प्रयोग किया गया.

वासना तथा जीव का बेवरा: आत्माएं पृथ्वी पर क्यूँ आती हैं ?   वासना तथा जीव का बेवरा: "वासना जीव का बेवरा एता, ज्यों सूरज  दृष्टे रात। जीव का अंग सुपन का, वासना अंग साख्यात ।। " महामति प्राणनाथ जी के उपरोक्त पद में वासना शब्द का प्रयोग किया गया है। वासना का अर्थ - इच्छा, कामना अथवा चाह होता है। इस नश्वर संसार के दुख को देखने की चाह ही ब्रह्म आत्माओं के अपने निज घर परमधाम से यहां आने का कारण है। इस भावना के कारण ही उनकी सूरत (आत्मा) को ब्रह्म वासना नाम दिया गया। यह वासना (आत्मा) ही दृष्टा ही इस प्रकार ब्रह्म आत्माओं का सूक्ष्म शरीर ही वासना है। इन ब्रह्म आत्माओं का अपना शरीर तो पूर्ण ब्रह्म परमात्मा के परमधाम में चिन्मय अविनाशी (शुद्ध साकार) स्वरूप में है। ये भी पढ़ें..आत्मा क्या है ? आत्मा कैसी है ? आत्मा है भी या नहीं ? -ATUL VINOD उक्त पद में दूसरा शब्द जीव है। जीव का तात्पर्य जीवात्मा से है, क्योंकि जीव तो सभी है- कीड़े, मकोड़े, गाय, बैल, पशु, पक्षी, देवता तथा मानव। इन सभी जीवों में केवल मानव को ही जीवात्मा कहा गया है क्योंकि मानव जीव के साथ ही आत्मा जुड़ी होती है। मानव जीव को ही सबसे उत्तम जीव माना गया है। महामति प्राणनाथ जी ने वासना तथा जीव की तुलना की है। इन्होंने वासना को सूर्य के समान माना है तथा जीव को रात्रि के अंधकार के समान माना है। सूर्य में और रात्रि में कोई तुलना नहीं हो सकती है। जीव नश्वर संसार के अंदर स्वप्न में बना हुआ है। इसका मूल शून्य निराकार है तथा इसका शरीर स्वप्न का शरीर है। इसका घर नींद है, यह नींद के बाहर नहीं जा सकता है। यह मात्र कल्पना है। ये भी पढ़ें..क्या पूर्णब्रह्म परमात्मा से स्वप्न का जीव मिल सकता है? आध्यात्मिक प्रश्न उत्तरभाग- 5 वासना का अपना दिव्य शरीर होता है, वह कभी मिटता नहीं है, अखंड हैं, अविनाशी है और पूर्णब्रह्म परमात्मा के परमधाम में इसका निवास है। यह पूर्णब्रह्म परमात्मा की अंगना है। यह सूर्य के समान प्रकाशवान है। यह इस शरीर को लेकर रात्रि के अंधकार के अंदर बने जीव के साथ किस प्रकार मिल सकती है? ये भी पढ़ें..क्या पूर्णब्रह्म परमात्मा इस नश्वर संसार में हैं ? आध्यात्मिक प्रश्न उत्तर भाग- 3 वासना ब्रह्म आत्माओं का सूक्ष्म रूप (निराकार) है और सूक्ष्म रूप के द्वारा ही यह परमात्मा के परमधाम से इस नश्वर संसार में उत्तम मानव जीव के ऊपर बैठकर यह दुख का नाटक देखती हैं। पूर्णब्रह्म परमात्मा की यह कितनी बड़ी कृपा है कि, जो कुछ भी नहीं है अर्थात् जो जीव मात्र कल्पना है जिसका घर सुंन (नींद) निराकार है उसके ऊपर परमधाम की ब्रह्म आत्माएं जुड़ जाती हैं तथा उनको पूर्ण ब्रह्म परमात्मा का ज्ञान मिल जाता है। स्वप्न का जीव किसी भी स्थिति में सपने के टूटने पर कभी भी नींद के बाहर नहीं आ सकता है। वह नींद के अंदर ही गल जाता है। यह परमात्मा की कितनी बड़ी कृपा है कि वह इन नश्वर स्वप्न के जीवों को अखंड परम धाम का ज्ञान देकर इस नींद के बाहर निकाल देते हैं। उनको अखंड शरीर प्रदान करते हैं तथा अक्षर धाम के अंदर इनको अखंड मुक्ति प्रदान करते हैं। ये भी पढ़ें.. योग के उद्देश्य ? आत्मा को परमात्मा में मिला देना,आनन्द की प्राप्ति; दुःख से मुक्ति ही मोक्ष.. अक्षरधाम में जन्म मृत्यु नहीं है कोई भी वस्तु वहां पुरानी नहीं होती है तथा वहां पेड़ का एक पत्ता भी नहीं गिरता है। वह अखंड तथा अविनाशी स्थान है, वहां न कोई घटता है, न कोई बढ़ता है। वहां कुछ भी परिवर्तन नहीं होता है। इन जीवों का मुक्ति स्थल अक्षरधाम ही है। बजरंग लाल शर्मा