भारतीय समाज- उत्तरदायित्व की भावना का विकास


स्टोरी हाइलाइट्स

By inculcating a sense of intense responsibility in the man of effort, where the rights are dominated in the society......

 उत्तरदायित्व की भावना का विकास (Development of nature of responsibility) पुरुषार्थ मनुष्य में तीव्र उत्तरदायित्व की भावना जाग्रत कर समाज में जहाँ अधिकारों का बोलबाला है. प्रत्येक व्यक्ति, वह किसी भी वर्ग समुदाय का स्त्री, पुरुष, युवा या वृद्ध हो. सभी अधिकारों की मांग करते हैं । कर्तव्य और उत्तरदायित्व के पुरुषार्थ से जी चुराते हैं। परिणामस्वरूप स्वयं के साथ-साथ परिवार और समाज के लिए समस्या बन जाते हैं। इसका बहुत अच्छा समाधान पुरुषार्थों में निहित है जहाँ कि अधिकारों की अपेक्षा कर्तव्यों पर ही अधिक बल है। पुरुषार्थ स्वयमेव इस तथ्य को प्रतिपादित करते हैं कि अच्छे कर्म का फल अच्छा ही होगा। व्यक्ति का कर्म ही धर्म है। पूर्ण निष्ठा के साथ व्यक्ति यदि सामान्य विशिष्ट धर्म में निहित अपेक्षाओं का पालन करता है तथा आपातकाल की स्थिति में धर्म का चुनाव निकटतम कर्तव्य से करता है तो सही अर्थों में वह अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह धर्म और कर्म के रूप में करता है। उसी प्रकार अर्थ के संचय में लिप्त न होकर यदि वह आवश्यकताओं के अनुरूप साधनों के एकत्रीकरण का पुरुषार्थ करता है तथा यौन संतुष्टि के लिए नहीं भावी पीढ़ी के निर्माण का उत्तरदायित्व पूरा करने के उद्देश्य से काम रूपी पुरुषार्थ से सम्बन्धित होकर मोक्ष प्राप्ति का अपने अनुकूल सम्यक मार्ग चुनता है तो वह सम्पूर्ण व्यक्तिगत और सामाजिक उत्तरदायित्व को पूरा करने का पुरुषार्थी होता है। जीवन पर्यन्त तक उत्तरदायित्व की भावना से जुड़ा रहकर कार्य के प्रति उत्साही रहता है। इसमें व्यक्ति और समाज दोनों का हित है कि व्यक्ति कार्य की संस्कृति को अधिकार और उपभोग की संस्कृति की तुलना में अधिक महत्व दे। पुरुषार्थ का भाव इसी में निहित है।