परिवार को अहमियत देने वाली स्त्री में आ जाती है दिव्यता, महाभारत की एक कथा में दो सुंदर सन्देश.. दिनेश मालवीय


स्टोरी हाइलाइट्स

जैसा कि हम पहले भी कहते आये हैं, महाभारत भारत ही नहीं दुनिया का सबसे बड़ा और महान महाकाव्य है.................................

परिवार को अहमियत देने वाली स्त्री में आ जाती है दिव्यता, महाभारत की एक कथा में दो सुंदर सन्देश.. दिनेश मालवीय जैसा कि हम पहले भी कहते आये हैं, महाभारत भारत ही नहीं दुनिया का सबसे बड़ा और महान महाकाव्य है. इसमें जीवन के व्यावहारिक और पारमार्थिक संदेशों को कथाओं और रूपकों के माध्यम से बहुत स्पष्ट और सटीक रूप से समझाया गया है. आज हम महाभारत के वन पर्व की एक ऐसी कथा आपको बताने जा रहे हैं, जिसमें जीवन के दो बहुमूल्य संदेश दिए गये हैं. पहला संदेश यह है कि, जो स्त्री अपने पति और परिवार को सबसे ज्यादा अहमियत देती है, उसमें दिव्यता आ जाती है. दूसरा संदेश यह है कि ब्राह्मण भी किसी निम्न मानी जाने वाली जाति के व्यक्ति से ज्ञान प्राप्त कर सकता है. यह कथा पाण्डवों के वनवास काल में ऋषि मारकंडेय ने युधिष्ठिर को उपदेश देते हुए सुनायी थी. कथा इस तरह है कि, कौशिक नाम का एक प्रसिद्ध ब्राह्मण था. वह वेदों का अध्ययन, तप और धर्म में निष्ठा रखने वाला व्यक्ति था. एक दिन वह किसी पेड़ के नीचे बैठकर वेद पाठ कर रहा था. उस समय पेड़ के ऊपर एक बगुली ने उसके ऊपर बीट कर दी. इस पर कौशिक बहुत गुस्सा हो गया. उसने उस पक्षी कि ओर देखकर उसके अनिष्ट की इच्छा की. बगुली उसकी आँखों के तेज से जलकर धरती पर गिर गयी. बगुली को अचेत देखकर कौशिक का मन दया से भर उठा. उसे अपने कृत्य पर बहुत पछतावा हुआ. इस तरह पश्चाताप करता हुआ, कौशिक गाँव में भिक्षा माँगने गया. एक घर के सामने जाकर उसने भिक्षा के लिए आवाज़ लगाई. घर की स्त्री ने भीतर से जवाब दिया कि, ठहरो, अभी लाती हूँ. इस बीच उसके पति ने कहा कि बहुत भूख लग रही है. पति को भूख से व्याकुल देखकर वह स्त्री उसे भोजन कराने में व्यस्त हो गयी. उसके लिए अपना पति और परिवार सबसे अहम् था. इस बीच ब्राह्मण घर के बाहर ही खड़ा रहा.   जब वह भिक्षा लेकर बाहर आयी तो कौशिक को खड़े देख उसे बहुत पछतावा हुआ. उसने उससे माफी माँगी. लेकिन कौशिक ने उससे कहा कि, तुम्हारा यह व्यवहार उचित नहीं है. वह क्रोध करते हुए बोले कि, ओ, घंडी स्त्री! तू ब्राह्मणों के प्रभाव को नहीं जानती. वे चाहें तो अपने क्रोध से इस पृथ्वी को जलाकर भस्म कर सकते हैं. इस पर उस स्त्री ने कहा कि, महाशय क्रोध नहीं करें. आप क्रोध करके मेरा क्या बिगाड़ लेंगे? मैं ब्राह्मणों का अपमान नहीं करती, लेकिन आपका क्रोध करना मैं उचित नहीं मानती. मैं अपने पति और परिवार की सेवा को सबसे बड़ा धर्म मानती हूँ. आपको अपने तप का बहुत अभिमान है. लेकिन मैं कोई बगुली नहीं हूँ, जिसे आपने अपने क्रोध से जलाकर मार डाला. कोशिक को बहुत आश्चर्य हुआ कि, उस स्त्री को बगुली वाली घटना का कैसे पता चल गया. उसने ब्राह्मण को बहुत उपदेश दते हुए कहा कि जो जितेन्द्रिय, धर्मपरायण, स्वाध्याय करने वाला और पवित्र है, उसे देवता लोग ब्राह्मण मानते हैं. उसने ब्राह्मण के और भी गुण बताये. वह बोली कि, मेरी समझ में आपको अभी यथार्थ ज्ञान नहीं है. यदि आपको सच्चा ज्ञान प्राप्त करना है तो मिथिला में रहने वाले एक कसाई के पास जाओ. कौशिक ने सोचा कि, जो स्त्री इतनी दिव्य है कि, उसे बगुले की घटना का अपने आप ज्ञान हो गया, उसकी बात मानना ही उचित है. कौशिक मिथिला में उस कसाई के पास गया. वह अपनी  दुकान पर मांस बेच रहा था. कौशिक तो आया देख, कसाई उठ खड़ा हुआ और उसे प्रणाम कर कहा कि, मुझे पता है कि, आप उस धर्मनिष्ठ देवी के कहने से यहाँ पधारे  हैं. ब्राह्मण कौशिक को बहुत आश्चर्य हुआ कि, कसाई को यह बात कैसे पता चल गयी. कसाई उसे अपने घर ले गया और आदर-सत्कार कर बताया कि मैं मांस बेचता अवश्य हूँ,क्योंकि यह मेरे कर्म है, लेकिन इसे खाता नहीं हूँ. मैं अपना काम कर्तव्य समझकर करता हूँ. उसने अपनी जीवनचर्या बताते हुए कहा कि, मैं हमेशा सच बोलता हूँ. किसी की निंदा नहीं करता  और अपनी शक्ति के अनुसार दान करता हूँ. हे ब्राह्मण! मैं इस बात को जानता हूँ कि, मनुष्य को अपने द्वारा किये गये अच्छे और बुरे कर्मों का फल स्वयं भोगना पड़ता  है. कसाई ने कहा कि, हमेशा अच्छे लोगों के साथ उठिए-बैठिये और कोई निन्दित कार्य नहीं कीजिए. यदि ऐसा कोई कार्य हो भी जाए, तो पश्चाताप कर उसे फिर से नहीं करने का निश्चय कीजिए. कौशिक समझ गया कि, कसाई को यथार्थ ज्ञान हो चुका है. उसने उससे धर्म संबंधी और भी प्रश्न किये,जिनके कसाई ने बहुत सटीक और सही उत्तर दिये. उसने कहा कि, जो व्यक्ति ब्राह्मण होकर भी पतन के गर्त में गिराने वाले पाप कर्मों में फंसा हुआ है और बुरे काम करने वाला पाखंडी है, वह शूद्र के समान है. इसके विपरीत जो शूद्र होकर भी धर्म के पालन में हमेशा तत्पर रहता है, उसे मैं ब्राह्मण मानता हूँ. मनुष्य सदाचार से ही ब्राह्मण होता है. इसके बाद कसाई ने कौशिक को माता-पिता की सेवा का फल बताया. उसने कौशिक से कहा कि, आप अपने माता-पिता कि आज्ञा लिए बिना घर छोड़कर वेदाध्ययन और तपस्या करने लगे, जो बहुत बड़ा अधर्म है. उनकी सेवा करना ही आपका परम कर्तव्य है. आपके घर छोड़कर आने से उन्हें अपार कष्ट हो रहे हैं. रोरे-रोते वे अंधे हो गये हैं. आप कृपया अपने घर वापस जाइए और माता-पिता की पूरी निष्ठा से सेवा कीजिए. ऐसा नहीं करने पर आपको किसी भी सद्कर्म का फल नहीं मिलेगा. कसाई ज्ञान को उपलब्ध था, लिहाजा उसकी हर बात में बहुत प्रभाव था. कौशिक ने हाथ जोड़कर कसाई को प्रणाम किया और अपने घर लौट गया. उसने अपने माता-पिता की पूरी निष्ठा से सेवा ही. इस प्रकार उसने अपना इहलोक और परलोक दोनों सुधार लिया.