क्या हमे जीवन में आध्यात्मिक होना ज़रूरी है?
-अतुल विनोद
हम सिर्फ एक शरीर नहीं है शरीर आपके अस्तित्व का एक छोटा सा हिस्सा है ? हमारी आत्मा ३ तलों से घिरी हुयी है भौतिक तल यानी भौतिक शरीर और आध्यात्मिक तल यानि सूक्ष्म और कारण शरीर |
अस्तित्व का बड़ा हिस्सा अभौतिक है जो दिखता नहीं है. जिसे हम सूक्ष्म और कारण शरीर कहते हैं.
इस अभौतिक शरीर के २ भाग हैं| सूक्ष्म शरीर में 19 तत्व आत्म-शरीर, कर्म-शरीर, भाव-शरीर, कारण-शरीर, ब्रह्म-शरीर, तुरीय-शरीर, प्राण-शरीर, मन-शरीर, जैसे अनेक स्तर/अवस्था/रूप/लेयर शामिल हैं। कारण शरीर में भौतिक शरीर के १७ रासायनिक तत्वों के भाव और सूक्ष्म शरीर के 19 तत्वों के भाव मिलाकर ३५ भाव होते हैं| ये ३५ भाव ही कारण शरीर या मूल बीज शरीर कहलाते हैं| कारण शरीर को भाव शरीर भी कहते हैं|
सूक्ष्म व् कारण शरीर हमारे अस्तित्व का आध्यात्मिक हिस्सा कहलाते हैं। आध्यात्मिक होने का अर्थ है हमारे आध्यात्मिक अस्तित्व का प्रत्यक्ष बोध/ज्ञान। यानी हमारे आध्यात्मिक अस्तित्व के अंतर्गत जिन भी शरीरों का वर्णन है उनका प्रत्यक्ष दर्शन।
आत्मा है किसी ने कहा आपने माना लेकिन कभी जाना नहीं? देखा नहीं ? महसूस नहीं किया?
आध्यात्मिक अवस्था को लेकर अनेक बातें कही गई हैं| कोई कह दे कि हमारे आध्यात्मिक अस्तित्व में सात प्रकार के शरीर हैं तो हम उसे मानने को बाध्य हो जाते हैं हैं। कोई कह दे कि हमारे आध्यात्मिक अस्तित्व में १९ शरीर है तब भी हम उसे मानेंगे।
जो जैसा कहेगा हम मानने को मजबूर हो जाते हैं, क्योंकि हमें उनका प्रत्यक्ष बोध नहीं होता, उनका अनुभव नहीं होता| अध्यात्म का सहज मकसद/लक्ष्य यही है कि हमारे आध्यात्मिक अस्तित्व का/हमारी आत्मा, मन, प्राण, चित्त, चेतना आदि का हमें अनुभव हो जाना। सिर्फ जानकारी बटोरना अध्यात्म नहीं| जानकारी सच भी हो सकती है नही भी, जो पढा,सुना,नेट पर देखा वह है भी या नहीं है? अनुभव करना ही जानना है। जानना ही अध्यात्म है।