डा. अब्दुल कलाम : अंतिम छह घंटे


स्टोरी हाइलाइट्स

हम दोनों ने इस विषय पर बात की कि अगर हिंसा, प्रदुषण और मानव की बेतुकी और हानिकारक गतिविधियां आदि सब कुछ ऐसे ही चलता रहा तो मनुष्य को धरती को छोड़ना पड़ेगा|

डा. अब्दुल कलाम : अंतिम छह घंटे मैं किसलिए याद किया जाऊँगा… महान कलाम सर के जीवन के अंतिम दिन उनके साथ बिताएं घंटों की स्मृतियों के कारण… उनसे अंतिम बार बात करे हुए 8 घंटे हो चुके हैं और नींद मुझसे कोसों दूर है, यादों की बाढ़ सी आती जाती है, जब तब आंसुओं के सैलाब के साथ| उनके साथ मेरा अंतिम दिन – 27th July, को दोपहर 12 बजे शुरू हुआ, जब मैं उनके साथ गुवाहटी जाने के लिए हवाई जहाज में बैठा| ड़ा. कलाम की सीट थी, 1A पर और मैं बैठा था IC पर| उन्होंने गहरे रंग का ‘कलाम सूट’ पहना था और मैंने उनके सूट की प्रशंसा की,’बहुत अच्छा रंग है सर!’ तब मुझे कहाँ पता था कि इस रंग के सूट को उनके जीवित शरीर पर मैं अंतिम बार देख रहा था| बरसात के मध्य 2.5 घंटे लंबे फ्लाईट| मुझे ऊपर आकाश में उड़ते हवाई जहाज के झटके खाने से नफरत है जबकि वे ऐसी अवस्था में अविचलित बैठे रहते| जब भी वे मुझे झटके के कारण भयभीत देखते वे खिड़की ढक देते और मुझसे कहते,’ अब भय की कोई बात दिखाई नहीं देती!’ हवाई यात्रा के बाद 2.5 घंटे कार से यात्रा करके हम दोनों IIM शिलांग पहुंचे| पिछले पांच घंटों के सफर के दौरान हमने ढेर सारी बातें कीं, बहस की, जैसे कि हम पिछले छह सालों में हवाई यात्राओं या सड़क यातारों के दौरान करते रहे हैं| पिछली हर बातचीत की तरह इस बार की बातचीत भी विशेष थी| विशेषतया तीन ऐसे मुददे हैं जो उनसे इस अंतिम मुलाक़ात की स्मृतियों के सबसे यादगार मुददे रहेंगें| पहले तो डा. कलाम पंजाब में हाल में हुए आतंकवादी हमले से बेहद चिंतित थे| निर्दोषों की हत्याओं ने उन्हें अंदर तक व्यथित कर दिया था| IIM शिलांग में उनके लेक्चर का विषय ही था – पृथ्वी को रहने के लिए और बेहतर बनाया जाए| उन्होंने पंजाब में आतंकवादी घटना को अपने लेक्चर के विषय से जोड़ा और कहा,’ ऐसा प्रतीत होता है कि मानव रचित ताकतें धरती पर जीवन के लिए उतनी ही विनाशकारी हैं जैसे कि प्रदुषण|’ हम दोनों ने इस विषय पर बात की कि अगर हिंसा, प्रदुषण और मानव की बेतुकी और हानिकारक गतिविधियां आदि सब कुछ ऐसे ही चलता रहा तो मनुष्य को धरती को छोड़ना पड़ेगा| ‘तीस साल शायद…, अगर ऐसे ही सब कुछ चलता रहा|आप लोगों को इस सन्दर्भ में कुछ करना चाहिए … यह आप लोगों के भविष्य के संसार का मामला है|’ हमारी बातचीत का दूसरा मुद्दा राष्ट्रीय महत्त्व का था| ड़ा. कलाम, चिंतित थे कि लोकतंत्र की सबसे बड़ी संस्था, संसद की कार्यवाही बार बार ठप्प हो जाती है| उन्होंने कहा,’ मैंने अपने कार्यकाल में दो भिन्न सरकारों को देखा| उसके बाद मैं कई और सरकारों को देख चुका हूँ| हरेक सरकार के काल में संसद की गतिविधियां बाधित होती रही हैं| यह उचित नहीं है| मुझे वास्तव में कोई ऐसा रास्ता खोजना चाहिए जिससे संसद की कार्यवाही बिना बाधा के सुचारू रूप से विकास के मॉडल पर चलाई जा सके|’ उसी समय उन्होंने मुझसे एक प्रश्न तैयार करने के लिए कहा जिसे वे अपने लेक्चर के अंत में IIM शिलांग के विधार्थियों से पूछना चाहते थे एक सरप्राइज असाइनमेंट के तौर पर| वे चाहते थे कि युवा विधार्थी ऐसे मौलिक रास्ते सुझाएँ जिससे संसद की कार्यवाही को ज्यादा गतिमय और उत्पादक बनाया जा सके| लेकिन कुछ क्षण बाद उन्होंने कहा,’ लेकिन मैं कैसे उनसे समस्या का हल पूछ सकता हूँ जबकि मेरे पास ही इस विकराल समस्या का कोई हल नहीं है?’ अगले एक घंटे तक हमने इस मुददे पर कई संभावित विकल्पों पर विचार किया, हमने सोचा अकी हम इन विकल्पों को अपनी आने वाली पुस्तक – Advantage India, का हिस्सा बनायेंगें तीसरा मुद्दा उनके सरल और मानवीय स्वभाव की खूबसूरती से मेरे सामने उपजा| हम लोग 6-7 कारों के काफिले में थे| ड़ा. कलाम और मैं दूसरी कार में थे और हमसे आगे एक खुली जिप्सी में सैनिक सवार थे| जिप्सी में दोनों और दो दो जवान बैठे थे और एक लंबा – पतला जवान खड़ा होकर अपनी बन्दुक संभाले इधर उधर निगरानी में व्यस्त था| सड़क यात्रा के एक घंटे के सफर के बाद डा. कलाम ने कहा,’ सैनिक ऐसे क्यों खड़ा है? वह थक जायेगा| यह तो सजा है उसके लिए| क्या आप वायरलेस से सन्देश भेज सकते हैं कि वह बैठ जाए|’ मैंने उन्हें समझाने की कोशिश की कि सैनिक को बेहतर सुरक्षा व्यवस्था के लिए ऐसे ही खड़ा होकर चलने के निर्देश दिए गये होंगे| पर वे नहीं माने| हमने रेडियो सन्देश भेजने का प्रयास किया लेकिन ऐसा संभव नहीं हो पाया| यात्रा के अगले 1.5 में तीन बार डा. कलाम ने मुझे सैनिक को किसी तरह से सन्देश भेज कर उसे बैठ जाने के लिए कहा| उन्होंने कहा कि हाथ से सन्देश भेज कर देखो शायद उनमें से कोई देख ले| जब उन्हें लगा कि कुछ नहीं हो पायेगा तो उन्होंने मुझसे कहा,’ मैं सैनिक से मिलना चाहता हूँ उसे धन्यवाद देने के लिए|’ जब हम IIM शिलांग के परिसर में पहुंचे तो मैं सिक्योरिटी के लोगों के पास गया उस सैनिक के बारे में पूछताछ करने| मैं उस सैनिक को अंदर डा. कलाम के पास ले गया| डा कलाम ने उस सैनिक का अभिवादन किया और उससे हाथ मिला कर कहा,’ भाई आपका बहुत बहुत शुक्रिया| क्या आप थके हैं? आप कुछ खायेंगें? मुझे बड़ा खेद है कि मेरे कारण आपको इतनी देर तक खड़े रहना पड़ा|’ काली पोशाक में सजा हुआ युवा सैनिक उनके ऐसे मृदुल व्यवहार से आश्चर्यचकित था| उसके मुँह से शब्द नहीं निकल पा रहे थे| मुश्किल से उसने कहा,’ सर आपके लिए तो छह घंटे भी खड़े रहेंगें|’ इसके बाद डा. कलाम लेक्चर हॉल में चले गये| वे लेक्चर के लिए विलम्ब से नहीं पहुंचना चाहते थे| वे हमेशा कहते थे,’ विधार्थियों को कभी इंतजार नहीं कराना चाहिए|’ मैंने जल्दी से उनका माइक सेट किया, उनके लेक्चर के बारे में संक्षिप्त सा विवरण दिया और कम्प्यूटर के सामने मुस्तैदी से बैठ गया| मैंने जैसे ही उनका माइक कनेक्ट किया उन्होंने मुस्करा कर मुझसे कहा,’ फनी गाय, आर यू डूइंग वेळ?’ ‘फनी गाय’ जब भी डा. कलाम ऐसा कहते थे तब इसके कई अर्थ हो सकते थे और उनके स्वर के माध्यम से पता लगाया जा सकता था कि उनका क्या तात्पर्य था मुझे ऐसे संबोधित करने के लिए| इसका अर्थ कुछ भी सकता था, मसलन- तुमने अच्छा काम किया, या कि तुमने सब गडबड कर दिया, और तुम्हे उन्हें ढंग से सुनना चाहिए, या कि तुम बेहद भोले हो, या वे खुद मजाक के मूड में हों तो ऐसा कहते थे| पिछले छह सालों में मैं उनके ‘फनी गाय’ के सम्बोधन का सही अर्थ जानने में प्रवीण हो गया था| इस बार वे मुझसे मजाक करने के मूड में थे| उन्होंने कहा,’ फनी गाय! आर यू डूइंग वेळ?’ मैं उनकी तरफ मुस्करा दिया| यही वे अंतिम शब्द थे जो उन्होंने मुझसे मुखातिब होकर कहे| उनके पीछे बैठ कर मैं उनका भाषण सुन रहा था| दो मिनट के आसपास ही भाषण में एक वाक्य बोलकर उन्होंने एक लम्बी चुप्पी साध ली, मैंने उनकी ओर देखा और वे मंच पर गिर गये| हमने उन्हें उठाया| डाक्टर्स जब तक आटे हम्नसे सब कुछ किया जो हम कर सकते थे| मैं जीवन भर उनकी दो-तिहाई बंद आँखों के भाव नहीं भूल पाउँगा| मैंने एक हाथ में उनका सिर थामा और उन्हें रिवाइव करने के सब प्रयत्न किये जो मैं कर सकता था| उनकी मुट्ठियाँ कास गयीं और मेरे हाथों से लिपट गयीं| उनके चेहरे पर शान्ति थी उनकी बुद्धिमान आँखें स्थिर होकर भी बुद्धिमत्ता बरसा रही थीं| उन्होंने एक शब्द नहीं कहा| किसी दर्द का कोई चिह्न तक उनके चेहरे पर नहीं उभरा| पांच मिनटों के अंदर हम पस के अस्पताल में थे| अगले कुछ मिनटों में डाक्टर्स ने सूचित कर दिया कि भारत के ‘मिसाइल मैन’ के प्राण पखेरू उड़ चुके थे| मैंने उनके चरण स्पर्श किये…अंतिम बार| अलविदा मेरे बुजुर्ग मित्र! विशाल दार्शनिक गुरु! अब केवल विचारों में ही भेंट हो पायेगी और मिलना अगले जन्म में होगा| लौटते समय यादों का पिटारा खुल गया| बहुत बार वे मुझसे पूछते थे,’ तुम युवा हो, निर्णय करो कि तुम किस रूप में याद किये जाना पसंद करोगे?’ मैं किसी शानदार उत्तर के बारे में सोचा अकर्ता और एक बार ठाकर मैं जैसे को तैसा का सिद्धांत अपनाते हुए उन्ही से पूछ डाला,’पहले आप बताइये, आप अपने को किस रूप में याद किये जाना पसंद करेंगे? राष्ट्रपति, वैज्ञानिक, लेखक, मिसाइल मैन, India 2020, Target 3 billion…. या कुछ और?’ मुझे लगा उन्हें कई विकल्प देकर मैंने प्रश्न को उनके लिए अत्यंत सरल बना दिया था| पर उनके उत्तर ने मुझे आश्चर्यचकित कर दिया| उन्होंने कहा,’शिक्षक के रूप में’| तकरीबन दो सप्ताह पहले जब हम उनके मिसाइल प्रोजेक्ट के समय के मित्रों के बारे में चर्चा आकार रहे थे, उन्होंने कहा,’ बच्चों को उनके माता-पिता की देखभाल करनी चाहिए| यह दुखद है कि बहुत मामलों में ऐसा नहीं हो रहा है|’ उन्होंने एक अंतराल लेकर कहा,’ दो बातें हैं| बड़ों को भी करनी चाहियें| मृत्युशैया के लिए वसीयत या संपत्ति का बंटवारा नहीं छोड़ देना चाहिए क्योंकि इससे परिवार में झगडे होते हैं| दूसरा, कितना बड़ा वरदान है काम करते ही मृत्यु को प्राप्त हो जाना, बिना कैसी लम्बी बीमारी से घिरे हुए तब ही चले जाना जब सीधा चल सकता हो व्यक्ति| अलविदा संक्षिप्त होनी चाहिए| वास्तव में बहुत छोटी|’ आज जब मैन पीछे मुड़कर देखता हूँ – उन्होंने अपनी यात्रा – अध्यापन करते हुए सम्पन्न की, वे हमेशा अपने को एक शिक्षक के तौर पर जाने जाना पसंद करते थे| और वे अपने जीवन के अंतिम क्षण तक, सीधे खड़े थे, काम कर रहे थे और लेक्चर दे रहे थे| वे हमें छोड़ गये एक महान शिक्षक की भांति, सबसे ऊँचे कद के साथ खड़े हुए| उन्होंने धरा छोड़ डी, अपने व्यक्तिगत खाते में बिना कोई संपत्ति जमा किये हुए| उनके खाते में जमा है करोड़ों लोगों का प्यार और उनके प्रति सद्भावनाएं| वे अपने जीवन के अंतिम क्षणों में बेहद सफल रहे| मुझे उनके साथ किये गये लंच और डिनर्स की बहुत याद आयेगी| मुझे बहुत खलेगा कि अब वे मुझे अपने दयालू और मृदुल व्यवहार और जिग्यासोँ से आश्चर्यचकित नहीं करेंगे, मुझे कमी महसूस होगी जीवन की उन शिक्षाओं की जो कि वे शब्दों और अपने कर्मों से मुझे समझाते थे| मुझे उनके साथ फ्लाईट पकड़ने के जद्दोजहद, उनके साथ की गई यात्राएं, उनके साथ की गयी लम्बी चर्चाएं बहुत याद आयेंगीं| आपने मुझे सपने देखना सिखाया| आपने सिखाया कि असंभव से प्रतीत होते स्वप्नों के अलावा सब कुछ योग्यताओं के साथ समझौते हैं|डा. कलाम चले गए हैं, उनके लक्ष्य जीवित हैं| कलाम अमर हैं| आपका अनुगृहित विधार्थी, समर पाल सिंह