सनातन धर्म के अट्ठारह स्मृति ग्रन्थ -दिनेश मालवीय


स्टोरी हाइलाइट्स

सनातन धर्म के अट्ठारह स्मृति ग्रन्थ -दिनेश मालवीय किसी भी समाज के सुचारू संचालन के लिए नियम और विधि-निषेध अनिवार्य होते हैं. राजा द्वारा निर्धारित नियम अपनी जगह महत्त्व रखते हैं, लेकिन समाज को सही मार्ग पर चलाने के लिए उसके विचारशील और ज्ञानीजन द्वारा भी कुछ नियम निर्धारित किये जाते हैं. ये नियम राजा के नियमों से अधिक प्रभावशील होते हैं. सनातन धर्म के साहित्य में स्मृति ग्रंथों का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है. ये ग्रन्थ वस्तुत: धर्मसंहिता या जीवन संहिता हैं. इनमें वर्ण, राजधर्म, समाजधर्म आड़े के साथ ही उन विधि-निषेधों का वर्णन किया गया है, जिनका पालन करना प्रत्येक सनातनधर्मी के लिए लाभकारी है. समय-समय पर देश,काल और परिस्थिति के अनुसार इनमें यथायोग्य संशोधन, परिवर्तन और परिवर्धन भी किये गये हैं. अनेक स्मृतियों को युग की आवश्यकता के अनुसार फिर से लिखा गया है. मध्ययुग की भयावह परिस्थितियों में अनेक स्मृतियों में इस प्रकार संशोधन और परिवर्तन किये गये, ताकि लोग विधर्मी होने से बचें और अपने धर्म में ही रहकर अपने परिवार का पालन करें. इसमें सबसे अधिक समझने वाली बात यह है कि स्मृतियों की रचना उस समय की परिस्थितियों के अनुसार की गयी थी. इनमें लिखित सभी बातें वार्तमान में भी लागू करना न तो उचित है और न संभव. लेकिन इन्हें पूरी तरह नकारा भी नहीं जा सकता. हमें इन ग्रंथों और उनकी विषय-वस्तु का ज्ञान होना ही चाहिए, ताकि हम भविष्य की बढ़ते हुए अपने अतीत से भी जुड़े रहें. कोई भी समाज बिना नियमों और विधि-निषेध के चलना संभव नहीं है. समय-समय पर इनमें बदलाव अवश्य होते हैं, लेकिन किसी न किसी रूप में इनका अस्तित्व रहता है, तभी समाज का ठीक से संचालन होता है.  स्मृतियों की कुल संख्या 18 है, जिन्हें अलग-अलग समय पर विभिन्न ऋषियों ने लिखा. ये स्मृतियाँ हैं- मनुस्मृति, जिसकी रचना मनु ने की थी. इसमें जीवन से जुड़े विभिन्न पक्षों तथा समाज के सुचारू संचालन के विषय में विस्तार से व्यवस्थित वर्णन किया गया है. इसे जीवन की आचार संहिता भी कहते हैं. समय के अनुसार इसमें वर्णित अनेक बातें आज अप्रासंगिक हो गयी हैं. इसके अलावा शरारती तत्वों ने इसकी विषय-वस्तु के साथ समय-समय पर छेड़छाड़ भी की गयी है. शरारतन अनेक बातें जोड़ दी गयी हैं.आज इस पुस्तक को अनेक लोग बहुत निन्दित मानते हैं. लेकिन आज के सन्दर्भ में कुछ बातों को नकारने के बाद इसमें लिखीं अनेक बातें सदा-सर्वदा प्रासंगिक हैं. अत्रि स्मृति. इसकी रचना अत्रि मुनि ने की है. यह भी जीवन में सदाचार और पवित्रता की दिशा में एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है. वैष्णव स्मृति- इसकी रचयिता स्वयं भगवान् विष्णु हैं. हारीत स्मृति. इसकी रचना श्रीहारीत मुनि ने की है. याम्य स्मृति. इसके रचयिता यम अर्थात धर्मराज हैं. याज्ञवल्क्य स्मृति. इसकी रचना महर्षि याज्ञवल्क्य ने की है. आंगिरस स्मृति. इके रचयिता अंगीरा ऋषि हैं. शनैश्चर स्मृति. इसकी रचना सूर्यपुत्र शनिदेव ने की है. सांवर्तक स्मृति. इसके रचयिता अंगीरा के पुत्र संवर्त हैं. कात्यायन स्मृति. इसकी रचना कात्यायन ऋषि ने की है. शांडिल्य स्मृति. इसके प्रणेता शांडिल्य ऋषि द्वार की गयी है. गौतम स्मृति. इसकी रचना महर्षि गौतम ने की है. वशिष्ट स्मृति. इसका प्रणयन महर्षि वशिष्ट ने किया है. दाक्ष्य स्मृति. इसकी रचना प्रजापति दक्ष ने की है. बार्हस्पत्य स्मृति. इसकी रचना बृहस्पति ने की है. आतातप स्मृति. इसके रचयिता शतातपकी हैं. पराशर स्मृति. इसकी रचना मुनि पराशर ने की है. क्रतु स्मृति. इसकी रचना क्रतु मुनि ने की है.