भारतीय समाज-समाजीकरण और सामाजिक नियंत्रण को प्रोत्साहन (Encouragement of Socialization and social control)
पुरुषार्थ व्यक्ति के समाजीकरण और सामाजिक नियंत्रण की दृष्टि से भी उपयोगी है। चारों पुरुषार्थो के माध्यम से समाजीकरण की प्रक्रिया आजीवन चलती है। धर्म में विभिन्न प्रकार की भूमिकाओं का निर्वाह, साधनों के एकत्रीकरण के रूप में अर्थ, काम का सम्बन्ध केवल यौन इच्छा की संतुष्टि तक सीमित न होने तथा मोक्ष प्राप्ति के अनेक मार्गों से किए जाने वाले प्रयत्न व्यक्ति को कुछ-न-कुछ सीख देते रहते हैं।
इसी प्रकार विभिन्न पुरुषार्थों में व्यक्ति की भूमिका और भूमिका की अपेक्षा सामाजिक नियंत्रण को प्रोत्साहित करती है। इससे व्यक्ति और समूह दोनों के बीच सम्बन्धों में सीख और नियंत्रण स्वतः निहित है। 'इस प्रकार पुरुषार्थ व्यक्ति और समूह दोनों से ही सम्बन्धित हैं यह व्यक्ति और समूह के बीच उचित सम्बन्धों को स्पष्टता प्रदान करते हैं, वे व्यक्तियों की क्रियाओं और समूह की क्रियाओं के बीच सही सम्बन्धों को
परिभाषित करते हैं. वे व्यक्ति और समूह के अनुचित सम्बन्धों को भी बताते हैं ताकि व्यक्ति उनसे बच सके। अतः पुरुषार्थ व्यक्ति और समूह को ही तथा इनके बीच सम्बन्धों को नियंत्रित करते हैं।