सहनशक्ति की पहचान
यूनान के महान दार्शनिक सुकरात की पत्नी बड़ी झगड़ालू थी. हर छोटी-सी बात पर वह सुकरात से लड़ने लगती और भला-बुरा कहती, लेकिन सुकरात हर परिस्थिति में शांत और स्थिर बने रहते. उनकी पत्नी बोलती रहती और वे चुपचाप मुस्कराते रहते. उनकी पत्नी को सुकरात की पढ़ने की आदत से खास तौर से चिढ़ थी. सुकरात जैसे ही कोई पुस्तक पढ़ने के लिए उठाते वह बड़बड़ाने लगती- “आग लगे इन किताबों को. अगर तुम्हें हर समय इन पुस्तकों के साथ ही रहना था तो मेरे साथ विवाह क्यों किया?"
एक दिन सुकरात कुछ शिष्यों के साथ घर आये तो उनकी पत्नी किसी बात को लेकर भुनभुनाने लगी. सुकरात ने उस ओर कोई ध्यान नहीं दिया और अपने शिष्यों से बातचीत करते रहे. इस पर उनकी पत्नी का पारा और चढ़ गया और वह ऊंची आवाज में अपशब्द कहने लगी.
इसका भी सुकरात पर कोई असर नहीं हुआ तो उसने क्रुद्ध होकर मकान के बाहर पड़ा कीचड़ लाकर सुकरात के सिर पर डाल दिया.
सुकरात जोर से हंसे और बोले- “आज तुमने एक पुरानी कहावत झुठला दी. कहा जाता है कि जो गरजते हैं वो बरसते नहीं
लेकिन आज मैंने देखा कि जो गरजते हैं वे बरसते भी हैं.' सारे शिष्य चुपचाप यह तमाशा देख रहे थे. सबको बुरा लग रहा था, पर कोई कुछ बोल नहीं रहा था. एक शिष्य से नहीं रहा गया. उसने कहा- “गुरुदेव! क्षमा करें. यह स्त्री तो साक्षात् चुड़ैल है. यह आपके योग्य नहीं है. पता नहीं आप कैसे इसके साथ जीवन बिता रहे हैं?” तब सुकरात ने कहा- “ऐसा न बोलो. वह योग्य है. वह ठोकर लगा-लगा कर देखती है कि सुकरात कच्चा है या पक्का. उसके बार-बार ठोकर लगाने से मुझे भी पता लगता रहता है कि मेरे अंदर सहनशक्ति है या नहीं. ऐसा करके वह मेरा बुरा नहीं बल्कि भला ही कर रही है.” पत्नी ने ये शब्द सुने तो वह झट सुकरात के पैरों पर गिर पड़ी और बोली- “आप तो देवता हैं. मैंने आपको पहचानने में भूल की. मुझे क्षमा कर दीजिये. "
उसके बाद पत्नी का व्यवहार बदल गया.