मशहूर कृतिया- सूरदास


स्टोरी हाइलाइट्स

सूरसागर, महाकवि सूरदास जी द्धारा कृत सबसे मशहूर ग्रंथों में से एक है। अपनी इस कृति में सूरदास जी ने श्री कृष्ण की लीलाओं का बेहद खूबसूरती के साथ वर्णन किया है।

सूरदास जी कुछ मशहूर कृतिया... सूरसागर-  सूरसागर, महाकवि सूरदास जी द्धारा कृत सबसे मशहूर ग्रंथों में से एक है। अपनी इस कृति में सूरदास जी ने श्री कृष्ण की लीलाओं का, बेहद खूबसूरती के साथ वर्णन किया है। सूरदास का यह ग्रंथ भक्तिरस में डूबा हुआ एक ऐसा ग्रंथ है, जिसमें करीब सवा लाख पदों के लिखे होने का दावा किया जाता हैं| हालांकि वर्तमान में सूरसागर में महज 7 से 8 हजार ही पद बचे हुए हैं। आपको बता दें कि सूरदास जी की इस महान कृति की अलग-अलग स्थानों पर करीब 100 से ज्यादा कॉपियां प्राप्त हुईं हैं। सूरसागर की जितनी भी कॉपियां हासिल हुईं हैं| वे सभी साल 1656 से लेकर 19वीं शताब्दी के के बीच की हैं। सूरदास जी की इस कृति में भक्ति रस की प्रधानता है। सूरसारावली-  हिन्दी साहित्य के सर्वश्रेष्ठ कवि सूरदास जी द्धारा रचित, सूरसारावली उनके प्रसिद्ध ग्रंथों में से एक है, जिसमें उन्होंने 1107 छंदों का वर्णन शानदार तरीके से किया है। सूरदास जी ने अपने इस मशहूर ग्रंथ की रचना अपनी वृद्धावस्था में की थी, जब वे 67 साल के थे, तब उन्होंने सूर सरावली को लिखा। इतिहासकारों के मुताबिक सूरदास जी ने अपनी इस प्रसिद्ध कृति को 1602 संवत में लिखा था। सूरदास जी का यह ग्रंथ एक “वृहद् होली” गीत के रूप में रचित है। इस ग्रंथ में सूरदास जी का श्री कृष्ण के प्रति अलौकिक प्रेम और उनकी गहरी आस्था देखने को मिलती है। साहित्य-लहरी- साहित्यलहरी सूरदास का जी का एक अन्य प्रसिद्ध काव्य ग्रंथ है। इस ग्रंथ में पद्य लाइनों के माध्यम से कवि ने अपने प्रभु श्री कृष्ण की भक्ति की कई रचनाएं बेहद शानदार ढंग से प्रस्तुत की हैं। सूरदास जी की यह रचना एक लघु रचना है, जिसमें 118 पद लिखे गए हैं। वहीं इस ग्रंथ की सबसे खास बात यह है कि साहित्यलहरी के सबसे आखिरी पद में अपने वंशवृक्ष के बारे में बताया है। सूरदास जी के इस प्रसिद्ध कृति में श्रंगार रस की प्रधानता हैं। नल-दमयन्ती- नल-दमयन्ती भी महाकवि सूरदास जी की मशहूर कृतियों में से एक हैं, इसमें कवि ने श्री कृष्ण भक्ति से अलग एक महाभारतकालीन नल और दमयन्ती की कहानी का उल्लेख किया है। ब्याहलो- ब्याहलो, सूरदास जी का एक अन्य मशहूर ग्रंथ है, जो कि उनका भक्ति रस से अलग है। फिलहाल, महाकवि के इस ग्रंथ का कोई पुख्ता प्रमाण नहीं मिलता है।