भोपाल में आग उगलती गर्मी और शिवराज का पचमढ़ी प्रस्थान
इन दिनों भाजपा की राजनीति में घुलते जा रहे कांग्रेस जैसे रंग
आशीष दुबे
प्रदेश की राजनीतिक तासीर कभी ऐसी नहीं रही, जिसमे हमेशा तपिश महसूस होती रहे। इस तपिश को महसूसने के लिये लोग अक्सर लखनऊ और पटना की तरफ देख लेते है। मगर इस बार भोपाल में सूबाई राजनीति में तपिश लगभग दस दिन से महसूस हो रही है। यह तपिश मार्च 2020 जैसी तो नहीं है, जब कांग्रेस का सत्तापलट ही हो गया था लेकिन कुछ लोगों को कुछ 'नया' होने की संभावना दिख रही है तो कुछ को आशंका। चूंकि तपिश सत्तारूढ भाजपा के गलियारों में हैं, मंत्रियों के सुरों व बॉडी लेंग्वेज से, भाजपा नेताओं के रों-अनपेक्षित मुलाकातों से उभरी है, इसलिये मामला बहुत सहज नहीं लगता। क्या सभी दौरे व मुलाकातें संयोग है? यदि है तो यह संयोग भी कमाल का है!
मगर यह कथा कल ज्योतिरादित्य सिंधिया के भोपाल के तूफानी दौरे मुलाकातों के बाद संपन्न हो गई है या इसके कुछ अध्याय अभी बाकी हैं? सिंधिया और वीडी शर्मा का 'टाइट-हग' और गोपाल भार्गव से मुलाकात व नरोत्तम से नहीं मिलना क्या कहता है? यदि अध्याय बाकी हैं तो इसका आशय देर-सवेर सामने आने वाला है। मगर सत्ता संगठन की हर हरकत पर बेहद चौकन्ना रहने वाले सीएम शिवराज का नया अंदाज नजरअंदाज कैसे हो सकता है। यदि शिवराज भोपाल की राजनीतिक गर्मी से सवा दो सौ किमी दूर हिल स्टेशन पचमढ़ी चले जाते हैं तो यह निश्चित तौर पर एक संदेश देने वाली यात्रा है।
पचमढ़ी- प्रस्थान से फिलहाल तो शिवराज ने अपने दबे-छिपे विरोधियों या कुर्सी के आकांक्षी नेताओं को अपने 'कंफर्टेबल' होने तथा पिछली दस दिन की गतिविधियों से अविचलित होने का संदेशा छोड़कर ही हिल स्टेशन पर 'चिल' करने की राह पकड़ी है। खास बात यह कि शिवराज उस वक्त भोपाल से रवाना हुए जब सिंधिया यहीं थे और उनके तथ्य-कथ्य विरोधियों से मिल रहे थे। भाजपा की राजनीति में ऐसे दृश्य कम होते हैं जो कांग्रेस जैसी राजनीति का अहसास कराते हों। यह दृश्य उभरे हैं तो इनके निहितार्थ भी होंगे। मगर शिवराज का चिल-आउट फिलहाल उनके दुखचिंतकों की गर्मी बढ़ाने वाला तो है ही।