चक्र सुदर्शन का प्रथम प्रयोग........................श्रीकृष्णार्पणमस्तु -7


स्टोरी हाइलाइट्स

चक्र सुदर्शन का प्रथम प्रयोग................श्रीकृष्णार्पणमस्तु -7 first-use-of-chakra-sudarshan-sri krishnanarpanamastu-7

चक्र सुदर्शन का प्रथम प्रयोग...........श्रीकृष्णार्पणमस्तु -7 रमेश तिवारी यह श्रीकृष्ण के अपने गुरु सांदीपनि परिवार के प्रति उनके आदर और अन्यायी राजा श्रगलव के शिरच्छेदन की रोचक कथा है। गोवा से लौटते हुए श्रीकृष्ण ने करवीरपुर (कोल्हापुर) के राजा श्रगलव पर चक्र सुदर्शन का प्रथम प्रयोग किया। हम पाठकों को इस कथा में वर्णित पात्रों के नाम भी ज्ञात नहीं हैं। अतः इस को हमको धैर्य और गंभीरता से सुननी चाहिये। श्रीकृष्ण के गुरू आचार्य सांदीपनी के श्वसुर महान विद्वान रूद्राचार्य, पुत्र पुनर्दत्त, भतीजा श्वेतकेतु और काका देवभाग के पुत्र उद्भव को भी श्रगलव के प्रमाद ने जेल में डाल दिया था। अत्यधिक अहंकारी यह यादव राजा स्वयं को भगवान कहलवाता था। कहता था लोग उसको वासुदेव कहें, मानें और नित्य ही उसकी पूजा करें। वह दरबार लगाकर सिंहासन पर बैठता और अपनी आराधना करवाता था। आरती उतरवाता। उसकी एक कथित भतीजी और अति सुन्दर युवती शैव्या भी थी। वह उसकी मनचीती व्यवस्थायें कर, उसको भगवान के रूप में प्रतिष्ठित करती। वही उसकी सेविका भी थी। यह युवती अद्भुत सौन्दर्य शालिनी थी। उसकी गाथा तो बहुत लंबी है, किंतु हम यहां मात्र अपनी कथा की बात करते हैं। श्रगलव का एक पुत्र भी था। राजा अपनी रानी से घृणा और उसका अपमान करता रहता था। उससे पूरा राज्य भी दुखी था। ग्वालियर जिनके नाम से है, उन महान गालव श्रृषि का शिष्य तो था वह, किंतु स्वयं बडा़ नराधम था। कथा यह है कि श्रगलव का पिता जब कोल्हापुर विजय करने पहुंचा ऋषि भी उसके साथ थे। विजय उपरांत उन्हीं के अनुष्ठान से जन्मा श्रगलव इतना उद्दंड हो गया कि उसने गालव के अनुयायियों पर भी अत्याचार करना शुरू कर दिया। उसने राज्य के परोहित रूद्राचार्य, श्वेतकेतु और सांदीपनि के उस पुत्र पुनर्दत्त को भी बंदी बना लिया, जिसको श्रीकृष्ण असुर शंकासुर से छुडा़कर लाये थे। बात यहीं तक सीमित नहीं थी। राज्य के वे विद्वान जो इस फर्जी वासुदेव की पूजा नहीं करते थे, ऐसे सभी ब्राह्मणों को भी उसने कारागार में डाल रखा था। श्रगलव की नृशंसता और अहंकार के समाचार मथुरा लौटते समय श्रीकृष्ण तक भी पहुंच चुके थे। अब कृष्ण ने अपने रथ को कोल्हापुर की तरफ मोड़ने का आदेश दे दिया। श्रीकृष्ण सीधे कोल्हापुर जा धमके। उन्होंने बातचीत के उद्देश्य से जब उद्वव को भेजा तो श्रगलव ने उसी अहंकार में कि मेरे अलावा यह वासुदेव (कृष्ण) है कौन.! यह अपने आप को समझने क्या लगा? उद्वव का अपमान कर उनको भी जेल में बिड़वा दिया। हम थोडा दक्षिण में काशी की मान्यता प्राप्त करवीरपुर के संबंध में भी जान लें। देवी पुराण में वर्णन है की माता ने कोलासुर नाम के असुर का वध यहीं किया था। अतः नाम पड़ गया कोल्हापुर। इसके महत्व को यूं समझें कि पाँच नदियों का यह संगम क्षेत्र करवीरपुर से 30 मील दूर है। यहां 5 नदियां- कासारी, कुंभी, तुलसी, भोगावती और सरस्वती पवित्र में कृष्णा मिलती हैं। यह विख्यात तीर्थ है। गालव ऋषि ने यहीं पर "परमात्मा वासुदेव भक्ति आश्रम" की स्थापना की थी। इसी आश्रम में बचपन से श्रृगलव भी रहने लगा। किंतु गालव के अवसान के बाद श्रृगलव ने आश्रम पर अपना अधिकार जमा लिया। और स्वयं ही भगवान वासुदेव बन कर अपनी पूजन, आराधना करवाने लगा। एक बार सांदीपनि अपने ब्रह्मचारी भतीजे श्वेतकेतु के साथ जो युद्ध प्रशिक्षक भी था, एवं शिष्यों सहित प्रभाष क्षेत्र में पहुंचे। वहां शैव्या भी थी। शैव्या ने स्नान करते समय अपने स्त्री सुलभ काम संकेतों से कब ब्रह्मचारी को मोहित कर लिया। पता ही नहीं चला। सभी मर्यादाओं को तोड़ श्वेतकेतु भी मोहनी में फंसकर कोल्हापुर पहुंचा गया। किंतु राज्य में पहुंचते ही शैव्या का व्यवहार बदल गया। प्रथम भेंट में अपने सौन्दर्य और अनुपम देह का आलिंगन देने वाली शैव्या ने साफ बता दिया! देख.! श्वेतकेतु मैं तो मात्र मात्र श्रगलव की सेविका हूँ। मैं तो तुझको अच्छे योद्धा और युद्ध प्रशिक्षक के नाते करवीरपुर के सैनिकों को प्रशिक्षित करने के लिए लाई थी। श्वेतकेतु के अवरोध, विरोध के कारण उसको भी कारागार में डाल दिया गया। जब श्री कृष्ण मथुरा लौट रहे थे मार्ग में उन्हें श्रगलव के विभिन्न अत्याचारों की शिकायतें प्राप्त हुईंं और गुरू परिवार की दुर्दशा का पता चला, वे कोल्हापुर पहुंच गये। कंस का वध और जरासंध की हेकडी़ ठिकाने लगाने वाले और स्वमोटो एक्शन करने वाले श्रीकृष्ण, श्रगलव का क्या हश्र करते हैं। धन्यवाद|