अलंबुश नाम के चार दुष्ट राक्षस राजा हो गये..--रावण की त्रैलोक्य विजय -84


स्टोरी हाइलाइट्स

अलंबुश नाम के चार दुष्ट राक्षस राजा हो गये..--रावण की त्रैलोक्य विजय -84

अलंबुश नाम के चार दुष्ट राक्षस राजा हो गये                  रावण की त्रैलोक्य विजय -84 रमेश तिवारी महाभारत के युद्ध इतिहास में रात्रि में हो रहा, यह युद्ध अकल्पनीय,वीभत्स था। क्रूरता की सीमाओं को पार करने वाला। कर्ण के बस आंसू ही नहीं टपक रहे थे। घटोत्कच ने उसका बुरा हाल कर रखा था। कर्ण क्रोध में धधक सा रहा था। बच्चों के चकरी खेल की तरह पीठ घुमाकर चारों ओर बाण वर्षा करता। कहां है- घटोत्कच? दिखता भी नहीं। तभी कोई तीर आकर कर्ण को आहत कर देता। और तब कर्ण उसी दिशा में बाण वर्षा करने लगता। दुर्योधन युद्ध का यह दृश्य देखकर व्याकुल था। उसने देखा कि कर्ण संकट में है। इसी समय उसको दुःशासन दिख गया। अपने वीर अनुज को कर्ण की सहायतार्थ भेजा। किंतु घटोत्कच के इस भय से भयभीत होते हुए."कि कहीं मांस भोजी यह राक्षस भीम के साथ मिलकर दुःशासन की छाती फाड़कर उसका रक्त ही न पी जाये। उसको द्रोपदी चीर हरण में भीम की प्रतिज्ञा भी याद आ गई। फिर भीम भी तो सामने ही युद्घरत था। घटोत्कच के साथ। इसी बीच युद्धोन्मादी घटोत्कच को राक्षस अलंबुश दिख गया। उस युद्ध में अलंबुश नाम के और भी राक्षस राजाओं का संबंध जुड़ गया था। काम्यकवन (गुजरात में बडो़दरा क्षेत्र) में निवास के समय जटासुर नामक एक राक्षस, द्रोपदी को उठाकर ले जाना चाहता था। किंतु भीम ने उसका वध कर दिया। यह अलंबुश उसी जटासुर का पुत्र था। एक अलंबुश और भी था जिसका वध घटोत्कच अभी अभी, अलायुध के पहले ही कर चुका था।  एक अलंबुश, राक्षस ऋष्यशृंग का पुत्र भी था। जो अर्जुन से पराजित होकर भाग गया था।   रावण की त्रैलोक्य विजय -84 अब घटोत्कच के सामने जटासुर का पुत्र था। अलंबुश । वह पांडवों से अपने पिता के वध का प्रतिशोध लेने ही दुर्योधन के पक्ष में आया था। घटोत्कच ने इस अलंबुश को भी राक्षस अलायुध की तरह पछीट पछीट कर मारा। कभी हवा में उछालता। और  नीचे गिरते अलंबुश को कंदुक की तरह प्रहार करता। दुर्योधन देख रहा था, सभी अलंबुश और अलायुध उसी के साथ क्यों खडे़ हैं। किंतु तभी उसने देखा - घटोत्कच तो पुनः कर्ण की ओर लपक रहा है। बडे़ घातक मंतव्य से। प्रलयंकारी मनोदशा से। वह भी कर्ण के समीप जा पहुंचा। कर्ण और घटोत्कच पुनः भिड़ गये। उस रात्रि में मुख्य युद्ध तो कर्ण से ही था। किंतु वीभत्स हुआ घटोत्कच बीच बीच में मनो विनोद करता सा कई अन्य योद्धाओं को भी मार आता था। बिलकुल पलक झपकते ही। अपनी सेना को कटते और भागते देख दुर्योधन क्षुब्ध होने लगा। मन ही मन बड़बडा़या! यह कर्ण भी बस..मार क्यों नहीं देता घटोत्कच को। वैजयंती शक्ति का प्रहार कर समाप्त कर दे, इस राक्षस को। कहता- अर्जुन के लिये छिपा रखी है वैजयंती। अरे कर्ण.. यह क्यों नहीं समझता कि जब आज रात्रि में हम बचेंगे ही नहीं तो फिर वैजयंती को चाटेगा क्या..! निराशा और संकट की स्थिति में दुर्योधन कुंठित हो गया। वैसे भी वह कुंठित था ही बचपन से। अब उसके मन में नकारात्मक सोच ने प्रवेश कर लिया। शंका बहुत बुरी बला है। विपदा है। स्वामंत्रित विपत्ति। तो क्या, यह सच है न- कर्ण वैसे भी अब वह कर्ण नहीं रहा! पांडवों के प्रति थोड़ा नरम सा नहीं हो गया? और पितामह ने तो अपने प्रधान सेनापतित्व काल में 9 दिनों तक उसको युद्धस्थल में प्रवेश करने से ही रोक दिया था। और अब प्रधान सेनापति द्रोणाचार्य भी कर्ण को घास नहीं डालते। यह सभी तो पांडवों से सहानुभूति रखते है! किंतु इस बार फिर निराशा का एक झोंका लगा, दुर्योधन को -उसने सोचा मूर्ख तो मैं ही हूंँ। मैंने आज के दिन (बुरे समय )के लिये ही तो पाला था.! कर्ण को। दिव्यास्त्र और देवास्त्र जानने वाले द्रोणाचार्य और कृपाचार्य को। गुरूपुत्र अश्वत्थामा को.! उसका माथा फटने सा लगा। अरे.! मुझको स्वयं को ही यह सब ज्ञान प्राप्त कर लेना चाहिए था। दूसरों के भरोसे रहना. बस। मुंह ताकते रहो.! अस्वस्थ मष्तिस्क और क्रोधित सा दुर्योधन कर्ण के निकट पहुंचा- बोला कर्ण यदि तुमने घटोत्कच को नहीं मारा तो हम सब नष्ट हो जायेंगे। और तब कुंठित कर्ण और निराश और हताश मानसिकता वाले दुर्योधन ने वैजयंती शक्ति के उपयोग करने का निर्णय ले लिया। शक्ति के लगते ही घटोत्कच का अस्तित्व ही समाप्त हो गया। किंतु श्रीकृष्ण की बुद्धिमत्ता ने भविष्य में अर्जुन के प्राण बचा लिये। मित्रो यहाँ एक बात और महत्वपूर्ण है| जब घटोत्कच मर गया। भीम, धर्मराज आदि शोकमग्न हो गये। श्रीकृष्ण क्या बोले- धर्मराज एक दुष्ट और राक्षस की मृत्यु पर शोक इसलिए मत व्यक्त करो -कि वह तुम्हारे पक्ष में था। थोडे़ से स्वार्थ में दुष्टों का हम दर्द नहीं हुआ जाता। घटोत्कच को तो मरना ही था। ऐसे राक्षसों को जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं। राक्षसीय वृतांत अब समाप्त। धन्यवाद