भगवान शिव के अनेक  रूप और उनके विभिन्न नामों की महिमा


स्टोरी हाइलाइट्स

इसकी कथा स्कंद पुराण में वर्णित है। एक बार महादेव (Mahadev) पार्वती को रत्नेश्वर का महात्म्य सुना रहे थे तभी उस समय महिषासुर का पुत्र गजासुर आगया और अपने

भगवान शिव से जुड़ी कथा (STORIES OF LORD SHIV) भगवान शिव के अनेक  रूप हैं। आज हम आपको बता रहें है भगवान शिव (Shiv) के विभिन्न नामों के बारे में और साथ ही यह भी की कैसे पड़े भगवान के ये नाम : कृत्तिवासा : इसका अर्थ है वह जिनके गज चर्म का वस्त्र हो। ऐसे वस्त्र वाले शिव (Shiv) हैं। भगवान शिव के अलग-अलग रूप इसकी कथा स्कंद पुराण में वर्णित है। एक बार महादेव (Mahadev) पार्वती को रत्नेश्वर का महात्म्य सुना रहे थे तभी उस समय महिषासुर का पुत्र गजासुर आगया और अपने बल से उत्मत्त होकर शिव के गणों को दुख देने लगा । ब्रह्मा के वर से वह इस बात से निडर था कि कंदर्प के वश में होने वाले किसी से भी मेरी मृत्यु नहीं होगी। किन्तु जब वह भगवान शिव (Shiv) के सामने गया तो उन्होनें उसके शरीर को त्रिशुल में टांगकर आकाश में लटका दिया। तब उसने शिव (Shiv) जी से माफ़ी मांगी और उनकी स्तुति की, जिससे प्रसन्न होकर उन्होंने वर देना चाहा। इस पर गजासुर ने प्रार्थना की यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो कृपा कर मेरे चर्म को धारण कीजिए और कृत्तिवासा नाम रखिए, तभी से शंकर (Shankar) जी का एक नाम कृत्तिवासा पड़ गया । पंचवक्त्र इस नाम के पीछे की कथा भी बड़ी निराली है हुआ ऐसा की एक बार भगवान विष्णु (Vishnu) ने किशोर अवस्था का अत्यंत मनोहर रूप धारण किया। उसको देखने के लिए ब्रह्मा (Brahma) और अनेक देवता आए । यह देखकर शिव (Shiv) जी ने सोचा कि यदि मेरे अनेक मुख और अनेक नेत्र होते, तो भगवान के इस किशोर रूप का सबसे अधिक दर्शन करता। बस, फिर क्या था,उनके इतना सोचते ही वे पंचमुख हो गए और उनके प्रत्येक मुख में तीन-तीन नेत्र बन गए। तभी से इनकी ‘पंचवक्त्र’ कहते हैं। शितिकंठ एक समय की बात है बदरिकाश्रम में नर और नारायण (Narayan) दोनों तप कर रहे थे। तब उस समय दक्ष यज्ञ का विध्वंस करने के लिए शिव जी ने अपना त्रिशूल छोड़ा । देवयोग से वह त्रिशुल यज्ञ विध्वंस करता हुआ सीधे नारायण (Narayan) की छाती को भेद गया और शिव के पास आ गया। इससे शिव क्रोधित हुए और तुरंत आकाश मार्ग से नारायण (Narayan) के समीप गए, तब उन्होंने शिव (Shiv) का गला घोंट दिया। तभी से वे ‘शितिकंठ ’ कहलाने लगे।