हाफिज़ (Haafiz )


स्टोरी हाइलाइट्स

हाफिज़ (Haafiz ) हाफिज़ का पूरा नाम मुहम्मद शमसुद्दीन था | हाफिज़ इनका  तखल्लुस है | यह ईरान के रहने वाले थे | न सिर्फ ईरान बल्कि बग़दाद और हिन्दुस्तान तक इनकी चर्चा थी | हुमायूँ और जहाँगीर इनके दीवानों में से फालें निकाला करते थे | इनका दिल प्रेम से सरोबार था , इनके शेरों से रस टपकता है | यह पढाई में बहुत तेज़ थे और इन्होने बचपन में ही कुरान याद कर ली थी इसलिए इनका नाम हाफिज़ कहलाता है | मुहम्मद साहब के वचन इन्हें मुंह जबानी याद रहते थे | इन्होने भी कविवर हरिवंशराय बच्चन जी की तरह इश्क ए मजाजी और ज़िन्दगी की शराब को लोगों को पिलाया और इनका प्रेम इश्क ए हकीकी की चरम सीमा  तक पहुँच गया | इन्होने तैमूरी हमला अपनी आँखों से देखा था और इन्हें दुनिया से नफरत सी हो गयी | बाकी का समय यह एकांतवास में काटते थे और उन्हीं पलों को बादशाही से बढ़कर समझते थे | सूफी प्रेमी फकीरों में इनका नाम बड़ी इज्ज़त से लिया जाता है | हाफिज़ कहते थे कि—तुच्छ धन दौलत के लिए कैसी लडाई ? दुश्मनी का पेड़ उखाड़ फेंको और अमन चैन का  पौधा लगाओ जो कि आगे चलकर मीठा फल दे | इतनी छोटी सी बात भी आज लोग नहीं समझते और आने वाली पीढियों के लिए काँटों के वृक्ष बोते चले जाते हैं | धन की खातिर मनुष्यता को कलंकित करना कहाँ की बुद्धिमानी है ? हाफिज़ कहते थे कि ” संसार में इस तरह रहो कि अगर तुम किसी के मार्ग की धूल भी बन जाओ तब भी किसी का दिल तुमसे मैला न हो |” वह कहते थे कि  ” हम सबका गुस्सा सहते हैं , फिर भी खुश रहते हैं क्यूंकि हमारे मजहब में किसी से नाराज़ होना पाप है | ” औरंगजेब, सबको इनकी किताब पढने के लिए मना करता था पर खुद उसे तकिये के नीचे रखकर सोता था | एक बार नूरजहाँ का हार चोरी हो  गया | चोर पकड़ने के लिए फाल निकली गयी तो यह शेर निकल कर आया — ” कि यह कैसा चोर है जो हथेली पर चिराग लिए खडा है | ” एक दासी जो कि वहां पर ही चिराग लिए खड़ी थी उसे पकडा गया और हार उसी के पास निकला | हाफिज़ कहते थे कि यदि तेरा मुर्शीद तुझसे नमाज पढने के आसन या कपडे को शराब से भिगो देने को भी कहे तो वह कर लो | उस पर जरा भी शक मत करना | एक आदमी को इसका मतलब समझ में नहीं आया वह एक फकीर के पास गया कि यह क्या लिखा है ? फकीर ने उसे कसाई के पास भेज दिया | कसाई ने कहा कि वेश्या के पास जाओ | वह आदमी बड़ा ही घबराया , पर जैसे तैसे करके वहां गया और एक कोने में चुपचाप बैठ गया | एक औरत पलंग पर उदास बैठी थी | उसने उदासी का कारण पूछा तब उस औरत ने बताया कि डाकू मुझे बचपन में फलां फलां जगह से उठाकर ले गए थे और  मुझे बेच दिया , मैं यह काम नहीं करना चाहती हूँ | तब वह आदमी चौंका कि तू तो मेरी बहन है जिसे बचपन में डाकू उठा कर ले गए थे | ऐसे होते थे पहले ज़माने के संत और फकीर कि उन्हें सब के दिल का हाल मालूम होता था | पर इनका रास्ता बड़ा ही विकट होता है — हाफिज़ कहते थे –अँधेरी रात और दरिया की भयानक लहरें , जो किनारे बैठे हैं वह हमारा हाल क्या जानें | सच के रास्ते पर चलना मौत के रास्ते पर चलने जैसा है | जीते जी मरना पड़ता है और यह सिर्फ अपने अन्दर देखने का साहस करने वाला ही जानता है | उसकी तकलीफ से वो लोग जो कि किनारों पर बैठे हैं बे-खबर हैं | तैमूर लंग ने हाफिज़ को ” राज कवि” का पद दिया था | तैमूर लंग और चंगेज़खान में उसी दौर में समझौता हुआ और तैमूर को बुखारा और समरकंद वापिस कर दिए गए थे | हाफिज़ यह पदवी लेने के लिए वहां नहीं गए और लिखकर भेज दिया कि — शीराज का पहलवान अगर दिल को हाथ में लाये तो उसके एक एक काले तिल पर समरकंद और बुखारा कुर्बान कर दूँ | इसका मतलब किसी की समझ में नहीं आया | बाद में हाफिज़ ने समझाया कि -इश्क ए हकीकी ही सच्चा प्रेम है | शीराज़ में शराब बनती है इसलिए शराब पिलाने वाला पहलवान हुआ | शराब पिलाने वाले से इनका मतलब इश्क ए हकीकी की शराब से था | यदि मैं अपने मन को जीत लूँ तो अपने खुदा के एक एक तिल पर समरकंद और बुखारा कुर्बान कर दूँ | सच्चे फकीरों और दरवेशों को राज पाट से भला  क्या लेना देना ? सन ७९१ हिजरी या सन १३८८ ई में शीराज़ में इन्होने अपना शरीर त्यागा | जनाजे के साथ पूरा शहर उमड़ आया था | लोग कहने लगे कि हाफिज़ काफिर हैं इनके जनाजे पर नमाज नहीं पढ़ी जायेगी | बादशाह ने कहा कि दीवान मंगाया जाए | फाल निकाली गयी , तब यह शेर निकल कर आया —हाफिज़ के जनाजे के साथ जाने से डर मत , अगरचे गुनाह में डूबा है , लेकिन बहिश्त को जायेगा | सब लोग सकते में आ गए | और फिर जनाजे कि नमाज अदा की गयी | चलते चलते हाफिज़ का एक शेर — आसमां से आती है हर दम आवाज़ | क्यूँ पड़ा दुनिया में नहीं सुनता उसे ||