हनुमानजी की जन्मस्थली को लेकर यह विवाद बेमानी है...!


स्टोरी हाइलाइट्स

हनुमानजी जन्म स्थान: संकट मोचन कपीश हनुमानजी का जन्म कहां हुआ था? कर्नाटक में या आंध्र प्रदेश में? इस मुद्दे पर इस कोरोना काल में देश में दक्षिण के दो रा..

हनुमानजी की जन्मस्थली को लेकर यह विवाद बेमानी है...! अजय बोकिल संकट मोचन कपीश हनुमानजी का जन्म कहां हुआ था? कर्नाटक में या आंध्र प्रदेश में? इस मुद्दे पर इस कोरोना काल में देश में दक्षिण के दो राज्य आपस में भिड़ गए हैं। कर्नाटक का दावा है कि हनुमान का जन्म कोप्पल ज़िले में ऐनेगुंडी के पास किष्किन्धा में अंजनाद्रि पहाड़ी पर हुआ था। जबकि आंध्र प्रदेश का दावा है कि हनुमानजी का जन्मस्थान तिरुपति की सात पहाड़ियों में से एक अंजनाद्रि पर हुआ था। इस मुद्दे को लेकर तिरूमला तिरूपति देवस्थानम् (टीटीडी) ने पिछले साल बाकायदा विद्वानों की एक उच्चस्तरीय कमेटी गठित की थी, जो संभवत: 21 अप्रैल को अपनी रिपोर्ट सौंप सकती है। यकीन मानिए कि रिपोर्ट अगर हनुमान की जन्म स्थली आंध्र में होने के पक्ष में आई तो विवाद बढ़ना ही है। आश्चर्य नहीं कि कल को इस विवाद में झारखंड भी कूद जाए। क्योंकि एक दावा हनुमान जन्मस्थली झारखंड में होने का भी है। सनातन धर्म में हनुमान की कल्याणकारी, लोक रक्षक और उदात्त छ‍‍वि है। यानी हनुमान सबके संकट दूर करते हैं। दसों बाधाअों को हरते हैं। बदले में कुछ नहीं मांगते। हनुमान ब्रह्मचारी हैं, लेकिन उनकी भक्ति कोई भी कर सकता है। उसमें जेंडर भेद नहीं है। हनुमान हिंदुअों के देवता हैं, लेकिन उन्होने स्वयं कभी अपनी जाति या धर्म नहीं बताया। न ही इसकी जरूरत महसूस की। लेकिन पिछले कुछ सालों से भाजपा और कुछ अन्य नेताअोंने हमे हनुमानजी की जाति, धर्म व उनकी कृपा की शर्ते ‍आदि बताना शुरू कर दिया है। हनुमान वानर रूपी थे, इसलिए वो नर थे या वानर, आदिवासी थे या फिर दलित थे, ब्राह्मण थे या ठाकुर, आर्य थे या अनार्य, इसको लेकर राजनीतिक असमंजस बना हुआ है। इसके पहले राम मंदिर का मुद्दा हल होने तक भगवान राम जन आस्था के साथ साथ चुनावी मुद्दा भी बने हुए थे। अब यह जिम्मा शायद राम भक्त हनुमान के हिस्से आ गया लगता है। इसकी शुरूआत राजस्थान में पिछले विधानसभा चुनाव में प्रचार के दौरान में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी ‍आदित्यनाथ ने अलवर ग्रामीण विधानसभा सीट के मालाखेड़ा की चुनावी सभा में एक ‘खुलासे’ के साथ की। उन्होंने कहा कि ‘‘बजरंग बली ऐसे लोकदेवता हैं जो स्वयं वनवासी हैं, गि‍िरवासी हैं, दलित हैं, वंचित हैं। बताया जाता है कि यह सीट दलित बहुल है और वहां हनुमान भक्तों की संख्या काफी है। योगी के इस बयान के बाद हनुमान के जाति व धर्म को लेकर ऐसी बहस छिड़ी, जो शायद पहले किसी युग में नहीं हुई होगी। राजस्थान ब्राह्मण महासभा ने तो इस पर योगी को नोटिस भी दे दिया था। इसके बाद योगी सरकार के एक दर्जा प्राप्त मंत्री रघुराजसिंह ने हनुमान को ‘ठाकुर’ बताया। वरिष्ठ भाजपा नेता और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के पूर्व अध्यक्ष नंद कुमार साय ने बताया था कि आदिवासियों में हनुमान गोत्र होता है। आदिवासी तिग्गा गोत्र भी लिखते हैं। टिग्गा का मतलब होता है वानर या बंदर। इसके विपरीत एक और भाजपा नेता व पूर्व केन्द्रीय मंत्री सत्यपाल सिंह ने दावे के साथ कहा कि हनुमानजी तो आर्य थे। लेकिन यूपी से ही भाजपा की ही पूर्व सांसद सावित्री बाई फुले ने इस दावे का खंडन करते हुए कहा कि हनुमान मनुवादियों के दास थे। यूपी के ही अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री चौधरी लक्ष्मी नारायण के मुताबिक हनुमानजी ‘जाट’ थे तो इसी राज्य के पूर्व खेल मंत्री व क्रिकेटर स्व. चेतन चौहान ने हनुमान को ‘खिलाड़ी’ माना था। यही नहीं, यूपी के एक भाजपा नेता नवाब बुक्कल ने तो दावे के साथ कहा कि हनुमानजी तो मुसलमान थे। इसीलिए मुसलमानों में रहमान, जीशान और कुर्बान जैसे नाम रखे जाते हैं। इस विवाद इसे इतना ही सिद्ध हुआ कि हनुमानजी की जाति, धर्म, नस्ल को लेकर भाजपा में ही एकमत नहीं है। लेकिन मप्र के एक जैन संत आचार्य निर्भय सागर महाराज का कहना था कि हनुमान जी जैन थे। वह जैन धर्म के 169 महापुरुषों में से एक थे। राष्ट्रीय लोकदल ने अध्यक्ष सुनील‍ सिंह ने तो हनुमानजी के व्यवसाय का भी खुलासा कर दिया। उन्होंने कहा कि हनुमानजी तो ‘किसान’ थे। ऐसे किसान, जिन्होंने धनी रावण के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी थी।‘इसी विवाद के बीच कांग्रेस नेता व अभिनेता राज बब्बर ने सियासी श्राप की मुद्रा में कहा था कि चूंकि भाजपा ने हनुमानजी की जाति बतानी शुरू की है इसलिए उन्होंने ( हनुमानजी) नाराज होकर ( 2018 के विधानसभा चुनावों में) भाजपा से तीन राज्यों की ( बाद में मप्र में वापसी हो गई ) सत्ता छीन ली। आगे भी ऐसा रवैया रहा तो हनुमानजी भाजपा की पूरी लंका जला डालेंगे। यह बात अलग है कि इस बयान के बाद अगले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के अरमानों की लंका जलकर राख हो गई। एक स्वयंभू शंकराचार्य स्वामी अधोक्षजानंद देवतीर्थ ने योगी आदित्यनाथ पर आरोप जड़ा कि उन्होंने हनुमानजी की जा‍ति बताकर हनुमानजी का अपमान किया है। राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोपो से हटकर अगर ज्योतिष गणना को मानें तो हनुमान जी का जन्म 58 हजार 112 वर्ष पहले तथा त्रेतायुग के अंतिम चरण में चैत्र पूर्णिमा मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र व मेष लग्न योग में सुबह 6.03 बजे हुआ था। एक धार्मिक मान्यता यह भी है कि हनुमानजी का जन्म झारखंड राज्य के गुमला जिले के आंजन गांव में हुआ था। माना जाता है कि आंजन गांव में ही हनुमानजी की माता अंजनी निवास करती थी। इसी गांव की एक पहाड़ी पर स्थित गुफा में रामभक्त हनुमान का जन्म हुआ बताया जाता है। जो भी हो, दक्षिणी राज्यों की हनुमान जन्मस्थली की अपनी थ्योरी है। कर्नाटक के शिवमोगा में रामचंद्रपुरा मठ के प्रमुख राघवेश्वरा भारती ने रामायण के हवाले से कहा कि रामभक्त हनुमान ने सीता को बताया था कि उनका जन्म गोकर्णा के समुद्री क्षेत्र में हुआ था। इससे पहले कर्नाटक का दावा था कि हनुमानजी का जन्म कोप्पल जिले में ऐनेगुंडी के पास किष्किन्धा में अंजनाद्रि पहाड़ी पर हुआ था। दूसरी तरफ आंध्र प्रदेश का दावा है कि राज्य के चित्तूर जिले में भगवान वेंकटेश्वर के निवास स्थान तिरुपति की सात पहाड़ियों में से एक हनुमान का जन्मस्थान है, जिसे अंजनाद्रि भी कहा जाता है। टीटीडी ट्रस्ट के कार्यकारी अधिकारी केएस जवाहर रेड्डी का कहना है कि हमारे पास पौराणिक और पुरातात्विक साक्ष्य हैं।’ शरीर से वानररूपी हनुमान को आंजनेय, मारूतिनंदन, बजरंगबली, संकट मोचन, रामभक्त आदि कई नामों से जाना जाता है। उन्हें भगवान शिव के 11 रूद्रावतारों में से एक भी माना जाता है। वो निष्काम स्वामीभक्त हैं। हनुमान उन देवताअों में से हैं, जिन्हें अमरत्व प्राप्त है। अर्थात काल कोई सा भी हो, हनुमान अमर हैं। लिहाजा त्रेता, द्वापर से लेकर कलि युग तक में वो अपनी प्रांसगिकता बनाए हुए हैं। ऐसा न होता तो हजारों साल बाद भी उनकी जाति, धर्म और जन्म स्थली को लेकर राजनीतिक और धार्मिक विवाद खड़ा न होता। यहां सवाल यह है कि हनुमान का जन्म कहां और कब हुआ, इस पर विद्वानों की रिपोर्ट आ भी गई तो उससे होगा क्या? आज सारा देश कोरोना से बचने के लिए जूझ रहा है। और भी कई अहम मसले हैं। यूं भी हिंदुअोंके मन में अपने देवी-देवताअों के जन्म स्थान, समय, दिन और कालक्रम को लेकर कभी वैसी शंका और जिज्ञासा नहीं रही है, जैसी पश्चिम में रही है। हमारे पूर्वजों ने भी इसे कभी ज्यादा महत्व नहीं दिया। मानकर कि काल शून्य है और विश्वास शाश्वत है। हमारी आस्था यह सवाल भी नहीं करती कि देवी-देवता सचमुच अस्तित्व में हैं या काल्पनिक हैं। ऐतिहासिक हैं या पौराणिक हैं? वो हमारी अटूट श्रद्धा और प्रेरणा का संबल है, यही काफी है। ज्ञानियों ने बताया, हमने मान लिया। तो फिर दो राज्यों में ( इसमें झारखंड अभी शामिल नहीं हुआ है) इस विवाद का प्रयोजन क्या है? चूंकि हनुमान सर्वव्यापी हैं, इसलिए उनका जन्म स्थान सिद्ध करके भी क्या हासिल होना है? हो सकता है कि इसके पीछे धार्मिक पर्यटन की संभावनाअों के दोहन की मंशा हो। इसमें कोई राज्य पीछे नहीं रहना चाहता। ऐसे विवादों में एक आसन्न खतरा और है। वो ये कि इस देश के मंदिर- मस्जिदों के तमाम विवाद एक दिन अगर हल हो गए तो बाद में हिंदू आपस में किन मसलो को लेकर आपस में उलझेंगे, इस विवाद को इसकी झलक माने तो गैर नहीं होगा। वैसे भी आस्था और तर्क की लड़ाई का कोई सर्वमान्य फैसला आज तक नहीं हो पाया है। फिर हनुमानजी तो सबसे जाग्रत देवता हैं। वो विवादों से परे हैं। उनके पास भक्तों की रक्षा और अन्याय से लड़ते रहने का शाश्वत दायित्व है-सब सुख लहै तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहू के डरना..!