हिन्दू धर्म और अवतार-वाद


स्टोरी हाइलाइट्स

हिन्दू धर्म और अवतार-वाद हिन्दू् धर्म में हर कोई अपने आप में ईश्वरीय छवि का आभास कर सकता है तथा ईश्वर से बराबरी भी कर सकता है। इतने पर भी संतोष ना हो तो अपने आप को ही ईश्वर घोषित कर के अपने भक्तों का जमावड़ा भी इकठ्ठा कर सकता है। हिन्दू् धर्म में ईश्वर से सम्पर्क करने के लिये किसी दलाल, प्रतिनिधि या ईश्वर के किसी बेटे-बेटी की मार्फत से नहीं जाना पड़ता। ईश्वरीय-अपमान (ब्लासफेमी) का तो प्रश्न ही नहीं उठता क्यों कि हिन्दू धर्म में पूर्ण स्वतन्त्रता है। हिन्दू् धर्म में हर कोई अपने विचारों से अवतार-वाद की व्याख्या कर सकता है। कोई किसी को अवतार माने या ना माने इस से किसी को भी कोई अन्तर नहीं पड़ता। सभी हिन्दू धर्म के मत की छत्र छाया तले समा जाते हैं। हिन्दू धर्माचार्यों ने  अवतार वाद की कई व्याख्यायें प्रस्तुत की हैं। उन में समानतायें, विषमतायें तथा विरोधाभास भी है। सृष्टि की जन्म प्रक्रिया – एक मत के अनुसार भगवान विष्णु के दस अवतार सृष्टि की जन्म प्रक्रिया को दर्शाते हैं। इस मतानुसार जल से सभी जीवों की उत्पति हुई अतः भगवान विष्णु सर्व प्रथम जल के अन्दर मत्स्य रूप में प्रगट हुये। फिर कुर्मा बने। इस के पश्चात वराह, जो कि जल तथा पृथ्वी दोनो का जीव है। नरसिंह, आधा पशु – आधा मानव, पशु योनि से मानव योनि में परिवर्तन का जीव है। वामन अवतार बौना शरीर है तो परशुराम एक बलिष्ठ ब्रह्मचारी का स्वरूप है जो राम अवतार से गृहस्थ जीवन में स्थानांतरित हो जाता है। कृष्ण अवतार एक वानप्रस्थ योगी, और बुद्ध परियावरण का रक्षक हैं। परियावरण के मानवी हनन की दशा सृष्टि को विनाश की ओर धकेल देगी। अतः विनाश निवारण के लिये कलकी अवतार की भविष्यवाणी पौराणिक साहित्य में पहले से ही करी गयी है। मानव जीवन के विभन्न पड़ाव – एक अन्य मतानुसार दस अवतार मानव जीवन के विभन्न पड़ावों को दर्शाते हैं। मत्स्य अवतार शुक्राणु है, कुर्मा भ्रूण, वराह गर्भ स्थति में बच्चे का वातावरण, तथा नर-सिंह नवजात शिशु है। आरम्भ में मानव भी पशु जैसा ही होता है। वामन बचपन की अवस्था है, परशुराम ब्रह्मचारी, राम युवा गृहस्थी, कृष्ण वानप्रस्थ योगी तथा बुद्ध वृद्धावस्था का प्रतीक है। कलकी मृत्यु पश्चात पुनर्जन्म की अवस्था है। राजशक्ति के दैविक सिद्धान्त – कुछ विचारकों के मतानुसार राजशक्ति के दैविक सिद्धान्त को बल देने के लिये कुछ राजाओं ने अपने कृत्यों के आश्रचर्य चकित करने वाले वृतान्त लिखवाये और कुछ ने अपनी वंशावली को दैविक अवतारी चरित्रों के साथ जोड़ लिया ताकि वह प्रजा उन के दैविक अधिकारों को मानती रहे। अवतारों की कथाओं से एक और तथ्य भी उजागर होता है कि खलनायक भी भक्ति तथा साधना के मार्ग से दैविक शक्तियां प्राप्त कर सकते थे। किन्तु जब भी वह दैविक शक्ति का दुर्पयोग करते थे तो भगवान उन का दुर्पयोग रोकने के लिये अवतार ले कर शक्ति तथा खलनायक का विनाश भी करते थे। भूगोलिक घटनायें – एक प्राचीन यव (जावा) कथानुसार एक समय केवल आत्मायें ही यव दूइप पर निवास करती थीं। जावा निवासी विशवास करते हैं कि उन की सृष्टि स्थानांतरण से आरम्भ हुयी थी। वराह अवतार कथा में दैत्य हिरण्याक्ष धरती को चुरा कर समुद्र में छुप गया था तथा वराह भगवान धरती को अपने दाँतों के ऊपर समतुलित कर के सागर से बाहर निकाल कर लाये थे। कथा और यथार्थ में कितनी समानता और विषमता होती है इस का अंदाज़ा इस बात मे लगा सकते हैं कि जावा से ले कर आस्ट्रेलिया तक सागर के नीचे पठारी दूइप जल से उभरते और पुनः जलग्रस्त भी होते रहते हैं। आस्ट्रेलिया नाम आन्ध्रालय (आस्त्रालय) से परिवर्तित जान पडता है। यव दूइप पर ही संसार के सब से प्राचीन मानव अस्थि अवशेष मिले थे। पौराणिक कथाओं में भी कई बार दैत्यों ने देवों को स्वर्ग से निष्कासित किया था। इस प्रकार के कई रहस्य पौराणिक कथाओं में छिपे पड़े हैं। मानना, ना मानना – निजि निर्णय अवतारवाद का मानना या ना मानना प्रत्येक हिन्दू का निजि निर्णय है। कथाओं का सम्बन्ध किसी भूगौलिक, ऐतिहासिक घटना, अथवा किसी आदर्श के व्याखीकरण हेतु भी हो सकता है। हिन्दू धर्म किसी को भी किसी विशेष मत के प्रति बाध्य नहीं करता। जितने हिन्दू ईश्वर को साकार तथा अवतारवादी मानते हैं उतने ही हिन्दू ईश्वर को निराकार भी मानते हैं। कई हिन्दू अवतारवाद में आस्था नहीं रखते और अवतारी चरित्रों को महापुरुष ही मानते हैं। इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि अवतारी कथाओं में मानवता का इतिहास छुपा है। कारण कुछ भी हो, निश्चित ही अवतारों की कथाओं में बहुत कुछ तथ्य छिपे हैं। अवश्य ही प्राचीन हिन्दू संस्कृति अति विकसित थी तथा पौराणिक कथायें इस का प्रमाण हैं। पौराणिक कथाओं का लेखान अतिश्योक्ति पूर्ण है अतः साहित्यक भाषा तथा यथार्थ का अन्तर विचारनीय अवश्य है। साधारण मानवी कृत्यों को महामानवी बनाना और ईश्वरीय शक्तियों को जनहित में मानवी रूप में प्रस्तुत करना हिन्दू धर्म की विशेषता रही है।