शादी के लिए धर्म परिवर्तन पर गाँधीजी के विचार


स्टोरी हाइलाइट्स

हिंदुत्व और महात्मा गाँधीजी का रामराज्य (२४) hinduism-and-mahatma-gandhis-ramrajya-24

हिंदुत्व और महात्मा गाँधीजी का रामराज्य (२४)

                                                      शादी के लिए धर्म परिवर्तन पर गाँधीजी के विचार
 मनोज जोशी         (गतांक से आगे)
31 अक्टूबर को खबर आई कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केवल शादी के लिए धर्म परिवर्तन को अवैध करार दिया है। हाईकोर्ट के इस फैसले ने लव जिहाद जैसे विषय पर चर्चा छेड़ दी है। एक मित्र ने सलाह दी कि जब गाँधीजी के हिंदुत्व पर इतना अध्ययन कर रहे हो तो यह भी बताओ कि गाँधीजी के ऐसे मामले में क्या विचार थे ?

मैंने पहले कहा गाँधीजी तो सामान्य रूप से ही धर्म परिवर्तन के खिलाफ थे। मित्र की सलाह कहिए या दबाव  जब अध्ययन किया तो पता लगता है| गाँधीजी हिंदू समाज के भीतर अंतरजातीय विवाह को सामाजिक समरसता के लिए जरुरी मानते थे और धर्म बदल कर विवाह उनके हिसाब से अनुचित था।

७जुलाई, १९४६ के 'हरिजन' में वे लिखते हैं, "यदि मेरा बस चले तो मैं अपने प्रभाव में आने वाली सभी सवर्ण लड़कियों को चरित्रवान हरिजन युवकों को पति के रूप में चुनने की सलाह दूं|"

                       हिंदुत्व और महात्मा गाँधीजी का रामराज्य (२४)
इसके ४ साल पहले ८ मार्च, १९४२ के 'हरिजन' में गांधी लिखते हैं, "जैसे-जैसे समय बीतता जाएगा, इस तरह के विवाह बढ़ेंगे, और उनसे समाज को फ़ायदा ही होगा| फ़िलहाल तो हम में आपसी सहिष्णुता का माद्दा भी पैदा नहीं हुआ है| लेकिन जब सहिष्णुता बढ़कर सर्वधर्म-समभाव में बदल जाएगी, तो ऐसे विवाहों का स्वागत किया जाएगा|"

"आने वाले समाज की नवरचना में जो धर्म संकुचित रहेगा और बुद्धि की कसौटी पर ख़रा नहीं उतरेगा, वह टिक न सकेगा; क्योंकि उस समाज में मूल्य बदल जाएंगे| मनुष्य की कीमत उसके चरित्र के कारण होगी| धन पदवी या कुल के कारण नहीं|"

"मेरी कल्पना का हिंदू धर्म कोई संकुचित संप्रदाय नहीं है| वह तो काल के समान ही पुरानी महान और सतत विकास की प्रक्रिया है|उसमें पारसी, मूसा, ईसा, मुहम्मद, नानक और ऐसे ही दूसरे धर्म-संस्थापकों का समावेश हो जाता है|"

उसकी व्याख्या इस प्रकार है-

'विद्वद्भिः सेवितः सद्भिनित्यमद्वेषरागिभिः.
हृदयेनाम्यनुज्ञातो यो धर्मस्तं निबोधत..'

अर्थात् जिस धर्म को राग-द्वेषहीन ज्ञानी संतों ने अपनाया है और जिसे हमारा हृदय और बुद्धि ही स्वीकार करती है, वही सद्धर्म है|

"मैं हमेशा से इस बात का घोर विरोधी रहा हूं और अब भी हूं कि स्त्री-पुरुष सिर्फ़ विवाह के लिए अपना धर्म बदलें| धर्म कोई चादर या दुपट्टा नहीं कि जब चाहा ओढ़ लिया, जब चाहा उतार दिया| इस मामले में धर्म बदलने की कोई बात ही नहीं है|"
(क्रमशः)
साभार: MANOJ JOSHI - 9977008211

डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं

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