सावरकर और संघ पर गाँधीजी की हत्या के षड्यंत्र का आरोप: हिंदुत्व और महात्मा गाँधीजी का रामराज्य PART:39


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हिंदुत्व और महात्मा गाँधीजी का रामराज्य PART:39
सावरकर और संघ पर गाँधीजी की हत्या के षड्यंत्र का आरोप यानी न्यायपालिका और नेतृत्व पर सवाल
 मनोज जोशी                            (गतांक से आगे)

२६ फरवरी शुक्रवार यानी आज वीर सावरकर की पुण्यतिथि है। ऐसे मौके पर गाँधीजी की हत्या को लेकर सावरकर (और संघ)  पर लगने वाले आरोपों की पङताल सामयिक है। गाँधीजी की हत्या की एफआईआर, चार्जशीट, लाल किला में लगी जस्टिस आत्माचरण की विशेष अदालत का आदेश और उसके बाद पंजाब हाईकोर्ट का जजमेंट, हाईकोर्ट की इस खंडपीठ के जज जीडी खोसला की पुस्तक और उसके बाद हाल के वर्षों में सुप्रीम कोर्ट के फैसले इन सब में एक बात समान रूप से साबित होती है कि संघ और सावरकर गाँधीजी की हत्या के षड्यंत्र में शामिल नहीं थे। 

गाँधीजी की ३० जनवरी १९४८ को हत्या के बाद पाँचवें दिन ४ फरवरी को संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया। संघ के छोटे-बङे नेता गिरफ्तार कर लिए गए। एक बात तो तय है कि संघ किसी भी स्थिति में जाँच प्रक्रिया, चार्जशीट और अदालती कार्रवाई को प्रभावित करने की स्थिति में नहीं था। सावरकर भी जेल में थे और वे भी इस स्थिति में नहीं थे कि कहीं से सहानुभूति या बाहरी मदद हासिल कर सके। 

हिंदुत्व और महात्मा गाँधीजी का रामराज्य PART:38

यदि तथ्यों पर बात की जाए तो सावरकर और संघ पर गाँधीजी की हत्या का आरोप लगाने वाले लोग वास्तव में न्यायपालिका की कार्यशैली और देश के तत्कालीन नेतृत्व यानी नेहरू जी और सरदार पटेल की क्षमता पर सवाल खङा करते हैं।

१० फरवरी १९४९ को अपने निर्णय में न्यायमूर्ति आत्माचरण ने कहा कि "सावरकर को आरोपों में निर्दिष्ट अपराध का दोषी नहीं पाया गया है" और उन्हें दोषमुक्त कर रिहा करने के आदेश दिए। गाँधीजी की हत्या के मामले में पंजाब हाईकोर्ट में अपील हुई । लेकिन सरकार ने सावरकर के खिलाफ अपील नहीं की। यदि जस्टिस आत्माचरण के फैसले से नेहरू जी या सरदार पटेल असहमत होते या सरकार के पास सावरकर के खिलाफ कोई सबूत होता तो उनके खिलाफ अपील करने से कौन रोक सकता था? हाईकोर्ट ने अपने आदेश में दो और अभियुक्तों को निर्दोष करार दिया।

Mahatma Gandhi NPगाँधीजी की हत्या के एक महीने बाद, सरदार पटेल ने नेहरू जी को लिखा था "मैंने बापू की हत्या के मामले के बारे में जांच की प्रगति के साथ खुद को लगभग दैनिक संपर्क में रखा है। सभी मुख्य आरोपियों ने अपनी गतिविधियों के लंबे और विस्तृत बयान दिए हैं।" उन बयानों से भी स्पष्ट रूप से पता चलता है कि आरएसएस इसमें शामिल नहीं था। 

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सरसंघचालक गुरु गोलवलकर जी को लिखे एक अन्य पत्र में, सरदार पटेल ने कहा, "मेरे आस-पास के लोगों को ही पता है कि संघ पर प्रतिबंध हटने के बाद मैं कितना खुश था। मैं आपको शुभकामनाएं देता हूं।" कानून मंत्री डा भीमराव अम्बेडकर ने भी इस पूरे केस का अध्ययन कर नेहरू जी को बताया था कि गाँधीजी की हत्या के मामले में संघ का हाथ नहीं है। डा अम्बेडकर तो सावरकर के वकील भोपटकर से भी मिले थे और पूरे प्रकरण पर चर्चा के बाद कहा था कि सावरकर के खिलाफ आरोपों में कोई दम नहीं है और आप जरुर जितोगे।

बाल गंगाधर तिलक के नाती गजानंद विश्वनाथ केतकर के बयान पर उठे विवाद (जिस पर इस श्रृंखला में पहले चर्चा हो चुकी है) के बाद गठित कपूर आयोग की रिपोर्ट में भी संघ को पूरी तरह क्लीनचिट दी गई है। 

कपूर आयोग की रिपोर्ट १९६९ में जारी हुई थी। दो भाग में लगभग ७०० पेज की इस रिपोर्ट केप्रमुख निष्कर्ष थे:

१) वे (अभियुक्त) आरएसएस के सदस्य साबित नहीं हुए हैं, न ही उस संगठन को हत्या में हाथ दिखाया गया है। (खंड I, पृष्ठ 186)

२) इस बात का कोई सबूत नहीं है कि आरएसएस महात्मा गांधी या कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के खिलाफ हिंसक गतिविधियों में लिप्त था। (खंड I, पृष्ठ 66)

कपूर आयोग के सामने पेश हु सबसे महत्वपूर्ण गवाहों में से एक आईसीएस अधिकारी आरएन बनर्जी थे। उनकी गवाही महत्वपूर्ण थी क्योंकि वे हत्या के समय भारत सरकार के गृह सचिव थे।

बनर्जी ने कपूर आयोग को बताया कि यदि आरएसएस पर पहले भी प्रतिबंध लगा दिया गया था, तो भी इसने षड्यंत्रकारियों या घटनाओं को प्रभावित नहीं किया होगा, "क्योंकि वे आरएसएस के सदस्य साबित नहीं हुए हैं, और न ही उस संगठन को दिखाया गया है हत्या में हाथ है”।

इस रिपोर्ट में ऐसे लोगों की सूची जिन्हें गाँधीजी की हत्या की जानकारी थी उसमें सावरकर का नाम नहीं हैं । दूसरी तरफ सावरकर के करीबी लोगों के बयानों के आधार पर लगभग वही बातें कही गई है जो गाँधीजी की हत्या के मामले में सरकारी गवाह बने बाडगे ने विशेष अदालत में अपने बयान में कहीं थीं । लेकिन अदालत ने उसे स्वीकार नहीं किया। इसके साथ ही आयोग ने अपनी कार्रवाई के दौरान सावरकर के बयान नहीं लिए और जब तक रिपोर्ट आई सावरकर की मृत्यु हो चुकी थी। कानून के जानकार यह भी जानते हैं कि न्यायिक जाँच आयोग और न्यायालय का काम अलग-अलग होता है। आयोग केवल बयान पर रिपोर्ट तैयार करता है, जबकि न्यायालय सबूत के आधार पर फैसला सुनाते हैं।

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हाल के वर्षों में सुप्रीम कोर्ट में लगी याचिकाओं में भी कोर्ट ने हर बार यही कहा कि संघ और सावरकर का गाँधीजी की हत्या से कोई वास्ता नहीं है। सावरकर और संघ को लेकर भ्रम पैदा करने वाले लोगों का मकसद केवल राजनीति है। वे न तो स्वतंत्रता आंदोलन की समझ रखते हैं औ  न हिंदुत्व की। 

(क्रमशः)
साभार: MANOJ JOSHI - 9977008211

डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं

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