क्या अंग्रेजों ने राजा राममोहन राय को आगे कर भारत में चर्च और बायविल के साथ शिक्षा शुरु की?


स्टोरी हाइलाइट्स

अंग्रेजों ने राजा राममोहन राय को आगे कर भारत में चर्च और बायविल के साथ शिक्षा शुरु की यह संस्था कलकत्ता में स्थित है । आज यह संस्था अपना 190 वर्ष वां स्थापना दिवस मना रही है । यदि आज भारत में भारतीय संस्कृति का क्षय हो रहा है तो इसके लिये शिक्षा प्रसार की वह यात्रा जिम्मेदार है जिसकी नींव अंग्रेजों ने 1830 में डाली थी । यह संस्था अंग्रेजों की उस नीति की नींव है जिसमें वे कहते थे कि यदि भारत को भारत में खत्म करना है और अपनी जड़े स्थाई करना है तो भारत की संस्कृति को खत्म करना होगा । इसके लिये शिक्षा पद्धति को ही माध्यम बनाना होगा । इसलिये उन्होंने शिक्षा के एक ऐसे तरीके को खोजा जिसमें चर्च और अपनी पवित्र पुस्तक वायविल शामिल रहे । इसके लिये कलकत्ता का चयन हुआ । उन दिनों भारत में पश्चिमी शिक्षा का आकर्षण तो बढ़ा था पर उन्हे अपनी भाषा से लगाव था । बंगाल अंग्रेजों के व्यापार और शासन दोनों का आरंभिक केन्द्र रहा, वहां के निवासी अंग्रेजों से जुड़ने तो लगे थे लेकिन स्थानीय निवासियों में अपनी बंगला भाषा के प्रति और अपनी आस्था के प्रति अटूट लगाव था । इसपर ब्रिटेन में विचार हुआ । और बीड़ा उठाया स्काटलैंड चर्च ने । वहां से एक निश्चित कार्यक्रम और धन लेकर पादरी रेवडेन्ट एलेक्जेंडर डफ कलकत्ता आये । यहां उन्होंने तीन प्रकार के लोगों से संपर्क किया । एक तो अंग्रेजों के शुभ चिन्तकों से और दूसरे अंग्रेजों से लाभ प्राप्त कर रहे थे और तीसरे उन लोगों से जो हिन्दू समाज के उन "अति ज्ञानियों" से जो भारत में भारतीय परंपराओं में कुछ दोष देखते थे उनमें सुधार या परिवर्तन चाहते थे । अपनी तलाश में पादरी एलेक्जेंडर की नजर राजा राममोहन राय पर गयी । दोनों में मुलाकात हुई । योजना बनी कि भारत में चर्च और वायबल को जोड़ कर शिक्षा आरंभ की जाये । यह समझाया गया कि वायबल पढ़ने से धर्म भ्रष्ट नहीं होगा बल्कि ज्ञान बढ़ेगा । और यदि दुनियाँ को देखना समझना है तो अंग्रेजी जरूरी चूंकि अंग्रेजों का शासन ही दुनियाँ भर में है । और एक महाविद्यालय की स्थापना हुई जिसका नाम रखा गया "स्कॉटिश महाविद्यालय" । यह कुल छै विद्यार्थियो से आरंभ हुआ । जिन्हे बैज लगाकर राजा राममोहन राय ने स्वागत किया । आरंभ में इसपर स्काटलैंड चर्च महासभा का सीधा नियंत्रण था । फिर 1883 में इसके प्रशासनिक ढांचे में परिवर्तन हुआ और इसके संचालन के लिये स्थानीय चर्च के साथ मुक्त संस्था का निर्माण हुआ । इसके प्रशासनिक ढांचे में तीसरा परिवर्तन 1908 में हुआ लेकिन इसका नियंत्रण चर्च के हाथ में पहले दिन भी था और आज भी है । RAMESH TIWARI .. BHOPAL ये लेखक के अपने विचार हैं