रावण के पुतले की लागत और डिमांड कैसे बढ़ी, जनता के साथ रावण भी हुआ महंगाई का शिकार.. सरयूसुत मिश्रा


स्टोरी हाइलाइट्स

कभी-कभी एक शब्द, एक वाक्य मन को ऐसा झकझोरता है, जैसा वर्षों के प्रयासभी प्रभाव नहीं छोड़ते. आज एक खबर रावण.....

रावण के पुतले की लागत और डिमांड कैसे बढ़ी, जनता के साथ रावण भी हुआ महंगाई का शिकार.. सरयूसुत मिश्रा कभी-कभी एक शब्द, एक वाक्य मन को ऐसा झकझोरता है, जैसा वर्षों के प्रयास भी प्रभाव नहीं छोड़ते. आज एक खबर रावण की लागत और डिमांड बड़ी पढ़ कर ऐसा ही हुआ. रावण भारतीय संस्कृति का ऐसा पात्र है जिसने अपने ज्ञान,तप और बल का उपयोग बुराई कमाने में किया. हर भारतीय के मन में रावण शब्द बुरे काम, बुरे व्यक्ति और धन संपदा शक्ति के बुरे उपयोग की अनुभूति देता है. “रामचरितमानस” में भगवान राम के आदर्श जहां हमें जीवन के लिए मर्यादा का संदेश और प्रेरणा देते हैं, वही रावण का चरित्र अहंकार से समाज को दूषित करने का प्रतीक बना है. प्रतीक रूप में रावण आज भी भारतीय समाज में पूरी ताकत से विद्यमान है. रावण के पुतले की लागत और मांग इस साल बढ़ी है. लागत तो बढ़नी ही थी, क्योंकि महंगाई के रावण का प्रभाव रावण के पुतले पर भी पढ़ना लाजमी था. आज पूरा देश महंगाई के रावण से त्रस्त है. चाहे अमीर हो या गरीब हो सभी महंगाई का सामना कर रहे हैं. अमीर महंगाई सह जाता है तो गरीब का जीवन महंगाई से कराहने लगता है. इसे दूर करने का कोई भी प्रयास परिलक्षित नहीं होता. पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने की कोई तारीख तय नहीं होती. कभी भी खबर आती है कि आज से पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ गए. पहले जब भी सरकारों का बजट आता था तब जिन वस्तुओं पर टैक्स घटाया-बढ़ाया जाता था, उसके लिए विधेयक लोकसभा और विधानसभा में पारित करना होता था. राजनेताओं को टैक्स बढ़ने पर हर साल आलोचनाओं और विरोध का सामना करना पड़ता था. राजनेताओं ने अब टैक्स का आधार मूल्य आधारित कर दिया है. टैक्स का प्रतिशत निर्धारित है.जैसे ही मूल्य बढ़ता है उसी प्रतिशत के अनुपात में टैक्स भी बढ़ जाता है. साल में एक बार दशहरे पर रावण के प्रतीक पुतले की लागत और डिमांड बढ़ना खबर बन रही है, लेकिन हर रोज लोग महंगाई के रावण से त्रस्त होते हैं. पता नहीं, इसका दहन कभी होगा या ऐसा ही चलता रहेगा ? रावण की डिमांड क्यों बढ़ रही है.  शायद इसलिए है क्योंकि प्रतीक स्वरूप देखें तो आज समाज में बुरे कर्मों में लगे लोगों की प्रगति तेज गति से होती दिखाई पड़ती है. बेईमानी, भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और बौद्धिक धोखाधड़ी आज लाभ का धंधा बन गई है. खेती को लाभ का धंधा बनाने की बातें तो रोज होती हैं, लेकिन किसानी लाभ का धंधा नहीं बन सकी. पूरा देश खेती- किसानी की लागत बढ़ने से चिंतित है .उपज का सही मूल्य मिलता नहीं है. खेती- किसानी के उदारीकरण के लिए लाए गए कृषि कानूनों का विरोध हो रहा है. किसान आंदोलन का लोकतांत्रिक स्वरूप हिंसक हो रहा है. दिल्ली की घटना और अब लखीमपुर खीरी की हिंसक घटनाओं ने वड़ी साजिशों और सोच को बेनकाब कर दिया है. कहीं भी हिंसा हो, लोगों की हत्या हो, लाश हो तो गिद्ध वहां होने ही चाहिए, लेकिन अब यह तो लुप्त प्राय हो रहे हैं. लेकिन राजनीतिज्ञ ऐसे टूट पड़ते हैं जैसे मौतें उनके घर में हुई हों.. डिब्बाबंद भोजन और बोतल का पानी पीते हुए लाशों पर संवेदना जताई जाती है. राजनीतिज्ञों का प्रयास होता है कि ऐसा कुछ हो कि गिरफ्तारी हो. उनकी कथित लड़ाई मुद्दा बने.  मीडिया में बड़ी-बड़ी खबरें बनें ताकि राजनीतिक वजूद में कुछ लाभ हो. जिस गरीब के घर का चिराग हिंसा में बुझ गया है उसकी भावनाओं से किसी का कोई लेना देना नहीं है. रावण की डिमांड इसीलिए  बढ़ रही है क्योंकि बुराई फलीभूत हो रही है. बुराई के रास्ते हाइवे में जैसे बन रहे हैं. कभी जाति, कभी धर्म, कभी इतिहास, कभी भाषा ,कभी प्रांत, कभी लिंग के आधार पर विभेद पैदा कर बुराई से लोग सत्ता का आनंद ले रहे हैं. सरकारें स्वयं दबे-छुपे ढंग से ऐसे आदेश करती हैं जिससे विभेद पैदा हो और प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष उसका लाभ मिले. समाज के रहनुमा ही समाज को अपने हित के लिए उपयोग करते हैं. फ्री में सब कुछ ऐसे बाँटा जाता है जैसे सरकार का धन उनकी निजी संपत्ति हो. लक्ष्य केवल इतना होता है कि सत्ता हासिल करने में इसका उपयोग हो. जनता के पैसे से वाजिब विकास करने की बजाय मतों के ध्रुवीकरण के लिए धन लुटाया जाता है. जीवन के हर स्तर पर विभेद पैदा करना रावण जैसा ही काम है. एक जैसी मेहनत के लाभ दो तरह के होते हैं. एक जैसी सेवा, लेकिन पहले कोई आगे जाएगा दूसरा उसके पीछे आ जाएगा. बात रामराज्य की होगी और कायम रावण राज्य होगा. आज जितने किस्म के विवाद देश में  चल रहे हैं वह घबराहट पैदा करते हैं कि किस तरह स्थितियां सामान्य होंगी. राम मंदिर विवाद का समाधान हुआ तो लोगों को लगा ऐसा लगा कि इससे किसी को लाभ होगा, तो फिर किसान आंदोलन खड़ा कर दिया गया. आरक्षण पर विभेद किसको लाभान्वित कर रहा है यह हमारे सामने है. अयोध्या में राम मंदिर बन रहा है, लेकिन देश में रावण की भी कोई कमी नहीं है. महिलाओं के साथ अनाचार, अपहरण बलात्कार शायद आज रावण के राज्य से ज्यादा हो रहे हैं. सीता का अपहरण कर रावण ने लंका में रखा, लेकिन उनकी मर्यादा भंग नहीं की. आज तो हमें ऐसे समाचार देखने सुनने को मिल जाते हैं जहां रक्षक ही भक्षक बन जाते हैं. रावण भक्षक था लेकिन सीता के लिए रक्षक बना रहा . भगवान राम के आदर्श जैसा बनना तो कठिन ही नहीं असंभव है, लेकिन रावण बनना बहुत आसान है. हर व्यक्ति धनपति और लाभ के लिए अपना दूसरा चेहरा बना लेता है. पाखंड और बदलते  चेहरों ने समाज को जो दंश दिया है और दे रहे हैं वह किसी भी हालत में रावण के से कम नहीं है. रावण भी पढ़ा-लिखा था, ज्ञानी था, तपस्वी था, बलशाली था और आज के रावण भी अनपढ़ नहीं है. वह भी ज्ञानी और तपस्वी का पाखंड करने में माहिर हैं. रावण रूपी बुराइयों के बाद  ही रामराज्य आने के बारे में सोचा जा सकता है, लेकिन यह कब और कैसे होगा इस पर अभी तो सोचा ही नहीं जा सकता.