मंदिर का दर्शन कैसे करें?


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मंदिर का दर्शन कैसे करें?                How to visit the temple? मंदिर में क्यों जाएं? मंदिर में पूजा को भगवान के चरणों में तिरोहित कर कैसे करें? मंदिर में भगवान को क्या अर्पित करें? मंदिर का दर्शन कैसे करें? आत्मकल्याण हेतु प्रार्थना करें। मंदिर में मूर्ति के ठीक सामने न खड़े हों, थोड़ा सा दाएं खड़े हों। विग्रह की आंखों से आंखें न मिलाएं। बार-बार प्रभु की छवि का दर्शन नीचे से ऊपर तक करें। भगवान तो भाव के भूखें हैं। अत: जो है कि मंदिर में श्री विग्रह में हजारों लोगों कुछ भी सरलता से बन पड़े, वही प्रेम की आस्था धनीभूत होती है, मंदिर लोगों से भगवान को अर्पित करें। भगवान को अर्पण से वह सामग्री प्रसाद बन जाती है। अत: उसे श्रद्धालुजनों तथा परिजनों में वितरित करें। भगवान जगत के कण-कण में विद्यमान हैं, फिर मंदिर में ही भगवान को क्यों खोजने जाएं? स्पष्ट की श्रद्धा-भावना से आच्छादित रहता है। अत: मंदिर में जाते ही मन की चंचलता बहुत कम होकर व्यक्ति एकाग्रचित्त हो जाता है। भक्ति प्रेम का ही दूसरा रूप है। बिना जान-पहचान प्रीति नहीं होती। मंदिर हमारी जान पहचान भगवान से कराने का सहज स्थान है। जब प्रीति होती है तो श्रद्धा एवं विश्वास उत्पन्न होता है। विश्वास से संकल्प की दृढ़ता उत्पन्न होती है। यही संकल्पशक्ति सफलता का मूल मंत्र है। मंदिर के दर्शन के लिए जाने पर विग्रह के सामने आने पर अधिकांश भक्त आंखें मूंद लेते हैं। ऐसा करना उचित नहीं, जब भगवान सामने न हो तो आंखें मूंदकर ध्यानमग्न होना चाहिए। जब साक्षात् परमेश्वर सामने हों तो मंदिर में श्री विग्रह के चरणों से आरंभ कर चेहरे तक का दर्शन करें। श्री विग्रह के शृंगार एवं छवि को अपने हृदय पटल पर अंकित कर लें। मंदिर में शोर न करें, अन्य दर्शनार्थियों की सुविधा का ख्याल रखें तथा औरों को भी दर्शन का मौका दें। मंदिर में जब भी जाएं भौकाल के साथ न जाएं। यदि आप बड़े राजनेता, मंत्री, कलाकार या बड़े धनी व्यक्ति भी हों तो कोशिश यही करें कि अकेले, नंगे पैर, परिवार के साथ जाएं और बड़प्पन, अहंकार, पद का गुरूर बाहर सड़क पर ही छोड़ दें। विनीत, गरीब बनकर परमेश्वर के पास जाएं। तभी भगवान आप पर अपनी कृपा की वर्षा करेंगे। भगवान के चरणों में प्रार्थना से बड़ी कोई पूजा नहीं। अतः अहकार त्यागकर सरल हृदय से प्रार्थना करें। प्रार्थना रूपी करुण पुकार अतिशीघ्र सुनते हैं।