पोर्नोग्राफी के दैत्य को नहीं मारा तो यह पूरे समाज को चट कर जाएगा


स्टोरी हाइलाइट्स

भारत में पोर्नोग्राफी का तेजी से फैलाव महिलाओं के प्रति अपराधों के बढ़ने का सबसे बड़ा कारण है

पोर्नोग्राफी के दैत्य को नहीं मारा तो यह पूरे समाज को चट कर जाएगा भारत में पोर्नोग्राफी का तेजी से फैलाव महिलाओं के प्रति अपराधों के बढ़ने का सबसे बड़ा कारण है. इस पर प्रतिबबंध की बात करते ही अनेक बुद्धिजीवी और प्रगतिशील कहलाने वाले लोग तपाक से कह उठते हैं कि यह व्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है. उनका कहना है कि व्यक्ति क्या देखे और क्या न देखे यह तय  करने का उसे पूरा अधिकार है. ऐसा कहने वाले इस बात को भूल जाते हैं कि यह बात पूरी तरह शिक्षित ज्ञानवान समाज के लिए ही उपयुक्त है. यहाँ तक कि ज्ञानवान लोग भी काम के वशीभूत होकर पशुवत व्यवहार कर बैठते हैं. अनेक ज्वलंत मुद्दों की तरह पोर्न के मामले में भी भारत के कर्णधारों की सोच और करनी समझ से परे है. ज़रा सोचकर देखिये कि आज शहर तो शहर कस्बों और बड़ी संख्या में गाँवों में भी बड़ी संख्या में लोगों के हाथ में एंड्रोइड फोन हैं. अनेक अध्य्यनों से यह बात स्पष्ट हुयी है कि अधिकतर लोग इस सेट्स पर सबसे ज्यादा पोर्न मटेरियल ही देखते हैं. यह कैसी विसंगति है कि मर्ज का इलाज ही गलत करते जा रहे हैं. हम कड़े क़ानून बनाकर या मौत की सजा का प्रावधान कर यौन अपराधों को रोकने का असफल प्रयास कर रहे हैं. यह एक प्रमाणित तथ्य है कि मनुष्य पर जब काम वासना का भूत सवार होता है तो उसे न कोई भय रह जाता न कोई लज्जा. हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि “कामातुराणं न भयो न लज्जा”. अब बताइए कि मोबाईल फोन पर पोर्न मटेरियल देखकर जब कामोत्तेजना जागती है तो मनुष्य क्या करेगा? बड़े-बड़े विवेकशील और चरित्रवान लोग अपने पर नियंत्रणआप खो बैठते हैं, तो कम पढ़े-लिखे किशोर और युवाओं का क्या हाल होता होगा. एक विशेषज्ञ के अनुसार जिस दिन से घरों के बेडरूम्स में ब्लू फिल्मों का प्रवेश हुआ, तब से पारिवारिक जीवन में यौनविकृति शुरू हुयी और बढती चली गयी. इसके बाद जब मोबाईल पर पोर्न का प्रचलन बढ़ा, तब से से सारी सीमाएं और मर्यादाएं टूटती चली गयीं. हद तो यह है कि हमारी विधानसभाओं में तक जनप्रतिनिधि मोबाइल पर पोर्न देखते पाए गये हैं. इससे भी भयंकर बच्चों के साथ यौन अपराध हैं. इसे पीडोफीलिया कहा जाता है.नन्हीं मुन्नी बच्चियों तक को हवस का शिकार बनाकर उनकी हत्या के मामले बड़ी संख्या में सामने आ रहे हैं. चाइल्ड पोर्न पर प्रतिबंध लगया गया है, जिसके कुछ परिणाम भी देखने में आ सकते हैं. लेकिन पोर्नोग्राफी पर ही पूरा प्रतिबंध लग जाए तो बहुत अच्छे नतीजे आ सकते हैं. मनोविज्ञान को ज़रा भी समझने वाले जानते हैं कि मनुष्य यौन की तरफ बहुत जल्दी आकर्षित हो जाता है और यौनेक्षा को पूरा करने का कोई भी अवसर मिलने पर चूकता नहीं है. यहाँ तक कि पवित्र संबंधों की मर्यादा का भी ध्यान नहीं रखा जा रहा. न उम्र का लिहाज है, न सामाजिक अवमानना का और न सजा का.काम वासना के वशीभूत होकर मानव कुछ भी कर सकता है, किसी भी सीमा तक जा सकता है. हमारी पुरानी किताबों में इसके अनेक उदाहरण भरे पड़े हैं. यह कैसी विरोधावासी बात है कि एक तरफ हम यौन अपराधों को रोकना चाहते हैं और इनके बढ़ने पर विलाप करते हैं, वहीं दूसरी ओर इसकी जड़ पोर्नोग्राफी पर रोक लगाने से पीछे हट रहे हैं. यदि समाज, संस्कारों और संबंधों की पवित्रता को बचाना है, तो पोर्नोग्राफी पर तत्काल रोक लगाना आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है. यह सही है कि इन्टरनेट आज की बहुत बड़ी आवश्यकता है. इसे बंद नहीं किया जा सकता. लेकिन कोई चीज विष भी हो सकती है और अमृत भी. इन्टरनेट ने जहाँ ज्ञान-विज्ञान और प्रौद्योगिकी का नया संसार खोल दिया है, वहीँ इसके गलत उपयोग से विध्वंस के मार्ग भी खुल गये हैं. विध्वंस सिर्फ बम और हथियारों से नहीं होता. इनसे होने वाले विध्वंस के बाद संसार और समाज को फिर से बसाया जा सकता है. लेकिन संस्कारों में विकृति आ जाने पर समाज और राष्ट्र को पूर्ण विध्वंस से नहीं बचाया जा सकता.कोई भी सजा अपराधों को पूरी तरह नहीं रोक सकती. संस्कार ही समाज को चलाते हैं. माता-पिता को स्वयं भी पोर्न मटेरियल देखने से परहेज करना चाहिए और इस बात पर नज़र रखनी चाहिए कि बच्चे क्या देख रहे हैं. पोर्नोग्राफी आज भारत में एक महादैत्य का रूप लेती जा रही है. इसे मारे बिना हमारा सामाजिक उद्धार संभव नहीं है.