ठंड के मौसम में ..क्या खाएं क्या न खाएं? कैसी रखें जीवन शैली?

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स्टोरी हाइलाइट्स

ठंड के मौसम में ..क्या खाएं क्या न खाएं? कैसी रखें जीवन शैली? in-cold-weather-what-to-eat-what-not-to-eat-how-to-keep-life-style

ठंड के मौसम में ..क्या खाएं क्या न खाएं? कैसी रखें जीवन शैली? ठंड के मौसम  में आहार (diet)- विहार (Living) हल्के गुलाबी जाड़े को हेमंत सीज़न का नाम दिया गया है और तेज तथा तीखे जाड़े को शिशिर। दोनों सीज़नओं में ठण्ड तो एक जैसी पड़ती है पर हेमन्त (हल्की ठंड) सीज़न के बाद शिशिर सीज़न से आदान काल शुरू हो जाता है अतः हवा में तीखापन आ जाता है, मावठा गिरने से पानी, बादल और वायु का वेग तेज हो जाता है अत: कोल्ड का प्रकोप बढ़ जाता है। आहार(diet) इस सीज़न में स्वाभाविक रूप से जठराग्नि तेज रहती है अतः पाचन शक्ति प्रबल रहती है। ऐसा इस कारण होता है कि ठण्डी हवा और ठण्डे वातावरण का प्रभाव हमारे शरीर की त्वचा पर बार-बार होते रहने से शरीर के अन्दर की गर्मी बाहर नहीं निकल पाती और अन्दर ही अन्दर इकट्ठी होकर जठराग्नि को प्रबल करती है। इससे हमारा खाया पिया भारी आहार (diet) भी ठीक से हज़म हो जाता है और शरीर को बल प्राप्त होता है। इस सीज़न का सही और पूरा फ़ायेदा उठाने के लिए हमें पूरे ठंड के मौसम  में पौष्टिक, शक्ति वर्द्धक और गुणकारी पदार्थों का ईटिंग करना चाहिए। जो समर्थ और सम्पन्न हों वे शुद्ध घी से बने पौष्टिक पदार्थ, सूखे मेवे, देशी घी की जलेबी और दूध, घी और दूध, मूंग की दाल का हलवा, उड़द की खीर, रबड़ी मलाई आदि| स्निग्ध पदार्थों और मौसम के फलों का ईटिंग करें। साधारण आर्थिक स्थिति के जो लोग महंगे पदार्थों का ईटिंग न कर सकें वे रात को भिगोये देशी काले चने सुबह नाश्ते के रूप में खूब चबा-चबा कर खाएं। केले, अमरूद etc का ईटिंग करें। सोते हुए समय ठण्डे दूध में 2 चम्मच शुद्ध शहद घोल कर पीने से शरीर में बहुत बल बढता  और शरीर पुष्ट और सुडौल होता है। लेकिन खयाल रखें शहद के साथ दूध ठण्डा ही लिया जाता है, गरम नहीं। जिन लोगों को कब्ज रहने की पुरानी शिकायत हो और पेट ठीक से साफ़ न होता हो उन्हें रात को सोते समय अपने अनुकूल मात्रा में 1 से 3 चम्मच के बीच बाल हरड़ का चूर्ण ठण्डे पानी के साथ 3-4 दिन लेना चाहिए। इससे पेट साफ़ हो जाएगा। इसके बाद पौष्टिक आहार (diet) या कोई बल पुष्टिदायक नुस्खे का ईटिंग शुरू करें। बाल हरड़ छोड़ी हरड़ को कहते हैं। यदि बाल हरड़ के चूर्ण का ईटिंग न कर सके| तो 1-2 चम्मच इसबगोल की भुसी ठण्डे पानी या दूध के साथ 2-3 महीने तक सोते समय लिया करें। इसे और ज्यादा समय तक भी ईटिंग करें तो हर्ज़ नहीं। एक बात का और ध्यान रखें कि सिर्फ हेमन्त (हल्की ठंड) सीज़न का पहला माह शुरू होते ही पौष्टिक आहार(diet) लेना शुरू न कर दें। जब भी ठीक से जम कर ठण्ड पड़ना शुरू हो तब से ही शुरू करें। हो सकता है कि हेमन्त (हल्की ठंड) सीज़न शुरू हो जाए पर सीज़नकाल का हीन योग हो रहा हो यानी जैसी ठण्ड पड़ना चाहिए वैसी पड़ना शुरू न हुई हो। इस सीज़न के विषय में सुश्रुत संहिता का कहना है कि हेमन्त (हल्की ठंड) सीज़न में औषधियां, वनस्पति, खाद्य-द्रव्य etc समय के प्रभाव से परिपक्व वीर्य युक्त और बलवान हो जाते हैं, जल स्निग्ध, निर्मल तथा भारी हो जाता है। अतः ऐसे समय में उचित और अनुकूल आहार (diet) का ईटिंग कर शरीर को बल वीर्य से पुष्ट करना चाहिए। यदि ऐसा नहीं करेंगे तो उलटे परिणाम होंगे। चरक संहिता का कहना है कि अग्नि के प्रबल होने पर उसके बल के अनुसार (पौष्टिक और भारी आहार (diet) रूपी) ईंधन नहीं मिलने पर यह बढ़ी हुई अग्नि शरीर में उत्पन्न प्रथम धातु (रस) को जलाने लगती है और वात कुपित होने लगता है। यह जठराग्नि का स्वभाव है कि यह प्रबल होकर आहार (diet) रूपी ईंधन को जलाती है यानी पचाती है और आहार (diet) के अभाव में दोषों को पचाती है यानी जलाती है। एक दिन का उपवास करने से भी है बशर्ते उपवास में निराहार रहा जाए यानी फलाहार के नाम पर भोज्य पदार्थ न खाये जाएं। दोषों के अभाव में या दोषों को जलाने के बाद यह अग्नि शरीर के धातुओं को जलाने लगती है अतः जठराग्नि प्रबल होने यानी खूब अच्छी भूख लगने पर भले ही कुछ न मिले तो चना चबेना या कोई फल खा लें पर भूखे नहीं रहना चाहिए वैसे तो इस कोल्ड सीज़न में पौष्टिक, स्निग्ध और भारी पदार्थों का ईटिंग ही उपयुक्त और श्रेष्ठ होता है पर भूखे रहने की अपेक्षा कुछ आहार(diet) कर लेना भी काफ़ी होता है। विहार (Living) आहार (diet) के अनुसार विहार (Living) यानी रहन सहन भी बहुत महत्वपूर्ण होता है। हर सीज़न में हमें उस सीज़न में करने योग्य विहार (Living) ही करना चाहिए। करने योग्य विहार (Living) न करना और न करने योग्य विहार (Living) करना दोनों समान रूप से हानि कारक और रोग कारक होते हैं। ठण्ड में कोल्ड से ज़रूरी बचाव करना बहुत ज़रूरी है ताकि कोल्ड का अतियोग न होने पाए। शरीर पर तैल की मालिश करना, उबटन लगाना, कसरत करना या योगासनों का अभ्यास करना, धूप स्नान करना, प्रातः वायुईटिंग करना, गर्म वस्त्र धारण करना, सोने ओढ़ने के लिए गर्म कपड़ों, रजाई, कम्बल etc का प्रयोग करना, चन्दन व अगर का शरीर पर लेप करना, ताज़े जल से स्नान करना, जिनकी तासीर ठण्डी हो वे कुनकुने गर्म जल से स्नान करें। ये सब कार्य उचित विहार(Living) में शामिल हैं। स्नान के लिए ज्यादा गर्म पानी प्रयोग नहीं करना चाहिए। विशेषकर सिर व आंखों को तथा नाभि के नीचे पेडू (तरेट) भाग को ज्यादा गर्म पानी से हानि होती है। कैसी भी ठण्ड हो पर स्नान करने में आलस्य नहीं करना चाहिए। रात को सोने से हमारे शरीर में जो अतिरिक्त गर्मी पैदा होती है वह स्नान करने से बाहर निकल जाती है जिससे शरीर में स्फूर्ति आती है। सुबह देर तक सोने से यही हानि होती है कि शरीर की बढ़ी हुई अतिरिक्त गर्मी सिर व नेत्रों के अलावा मलाशय, पित्ताशय, मूत्राशय, शुक्राशय, आमाशय etc पर अपना दूषित प्रभाव डालती रहती है जिससे नाना प्रकार की व्याधियां उत्पन्न होती हैं। जल्दी उठ कर सूर्योदय होने से पहले स्नान करने से हम इन व्याधियों से बचे रह सकते है| ठण्ड के दिनों में, नियमों का पालन करने में जो सबसे बड़ी बाधा सामन आती वह है आलस्य। आलस्य हमारे हर मानसुन पर पानी फेर देता है। जैसे सुबह जल्दी उठने का मामला है। आप रजाई में दुबके हुए हैं और पिछली रात की मीठी नींद या मीठे सपनों में खोए हुए हैं। अब पहले तो नींद खुलना ही मुश्किल है पर आप एलार्म घड़ी के सहारे से जाग भी जाएं तो कड़कड़ाती ठण्ड में रजाई से बाहर आने के लिए मन को तैयार करना ज़रा मुश्किल लगेगा । मन कहेगा अभी तो काफ़ी रात बाकी है, उठ जाएंगे, ऐसी जल्दी भी क्या है। बस, एक छोटी सी झपकी और ले लो। और झपकी आने को तैयार खड़ी रहती है सो दूसरे ही मिनिट आप फिर से नींद में गड़प हो जाते हैं। फिर कब नींद खुले क्या भरोसा, क्योंकि घड़ी का एलार्म दुबारा तो बजने से रहा। नहीं, एक बार नींद खुल जाए तो फिर एक क्षण भी सोच विचार न करके, तत्काल पलंग छोड़ कर खड़े हो जाएं। आप हैरान रह जाएंगे कि पलंग व रजाई छोड़ कर खड़े होते ही आलस्य ग़ायब हो जाएगा। आलस्य की भावना ही नहीं रहेगी जो कि सिर्फ पलंग और रजाई में लेटे रहने पर ही होती है वह भी इसलिए कि रात भर सोने से खुमारी चढ़ जाती है और हम दूसरी बात सोच ही नहीं पाते, पर पलंग से दूर होते ही यह भावना बिल्कुल बदल जाती है। बिल्कुल उसी तरह जिस तरह रेल के भीड़ भरे डिब्बे में घुसने से पहले और घुसने के बाद हमारी भावना प्रायः बदल जाती है। डिब्बे में घुसने से पहले हम सोचते हैं कि किसी तरह अन्दर घुस जाएँ, कहीं बैठने को जगह मिल जाए। जब हम डिब्बे में घुसने में सफल हो जाते हैं और कोई यात्री बैठने को जगह दे देता है तो हम बड़े पुलकित होकर उसे धन्यवाद देते हैं पर फिर हमारी भावना बदल जाती है और दूसरे यात्रियों का भीतर घुसना हमें अखरने लगता है और हम कहते हैं कहां घुसे आ रहे हो, दूसरा डिब्बा देखो। तो आलस्य न करें क्योंकि आलस्य, स्वास्थ्य और नियम-पालन का सबसे बड़ा शत्रु है और यह शत्रु ठण्ड के दिनों में ज्यादा बलवान रहता है। इस पर भी शायद हेल्दी सीजन का असर हो जाता है। आलस्य का प्रभाव हमें कैसा अकर्मण्य बना देता है इसे एक उदाहरण से समझें कि मान लें कि आपको 5 बजे सुबह की गाड़ी से कहीं जाना हो और आप आलस्य किये 8 बजे तक रजाई में घुसे पड़े रहें को आप बिस्तर में ही धरे रहेंगे जबकि 5 बजे रवाना हो गये होते तो 3 घण्टे में कितने मील की यात्रा कर चुके होते ? पथ्य- इस सीज़न में पथ्य (ईटिंग योग्य) पदार्थों का ईटिंग अवश्य करना चाहिए क्योंकि दूसरी सीज़नओं में इन पदार्थों का ईटिंग करना उतना फ़ायेदाकारी नहीं होता जितना इस सीज़न में होता है। इस सीज़न में पौष्टिक बलवर्धक पदार्थ- उड़द, घी, चावल की खीर, मख्खन, रबड़ी, मठा, तिल, हरी शाक सब्जी, अदरक सोंठ, पीपर, मेथी, मुनक्का, अंजीर, गाजर एवं मौसमी फलों का ईटिंग करना चाहिए। इस सीज़न में शहद का ईटिंग अवश्य करना चाहिए। हेमन्त (हल्की ठंड) सीज़न में बड़ी हरड़ का चूर्ण समभाग पीपर (पिप्पली या पीपल) चूर्ण के साथ प्रातः सूर्योदय के समय अवश्य ईटिंग करना चाहिए। दोनों मिलाकर 5 ग्राम लेना पर्याप्त है। इसे पानी में घोल कर पी जाएं। यह उत्तम रसायन है। लहसुन की 3-4 कलियां या तो वैसे ही निगल जाया करें या चबा कर खा लें या दूध में उबाल कर खा लिया करें। जो सम्पन्न और समर्थ हों, वे इस मौसम में केसर, चन्दन और अगर घिस कर शरीर पर लेप करें। यह शरीर को स्वस्थ और सुगन्धित रखता है। तैल की मालिश तो करना ही चाहिए क्योंकि तैल त्वचा को स्वस्थ, चिकनी और चमकदार रखता है, शरीर की खुश्की दूर कर अंग प्रत्यंग को बल देता है और वात व्याधियों से शरीर की रक्षा करता है। अपथ्य- इस सीज़न में अधिक कोल्ड सहना, बहुत ठण्डा पानी, तीखी तेज़ ठण्डी हवा, अल्पाहार (कम खाना), उपवास रखना, रूखे कड़वे, कसैले ठण्डे व बासे पदार्थों का ईटिंग करना, कोल्ड प्रकृति के पदार्थों का अनियमित ढंग से अति ईटिंग करना, अनियमित ढंग से आहार (diet) लेना और सोना, रात को देर तक जागना सुबह देर तक सोये रहना etc अपथ्य (ईटिंग न करने योग्य) हैं।  ठंड के मौसम  में इस सुअवसर का पूरा फ़ायेदा उठाएं और शरीर को पुष्ट, सुडौल और स्वस्थ बनाएं ताकि समर और रेन में भी आप स्वस्थ बने रह सकें।