खुशियों के मामले में भारतीय श्रीलंका, पाकिस्तान, चीन और बांग्लादेश से भी क्यों हैं पीछे?
"अतुल्यम"
धर्म और अध्यात्म की समृद्ध विरासत पर गर्व करने वाले भारतीय खुशियों के मामले में अपने पड़ोसी देशों से काफी पीछे हैं| खुशियों के मामले में भारत का नंबर 139 पर आता है|
अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के खुशी के पैमाने में पाकिस्तान 105 नंबर पर, चीन 84 नंबर पर, श्रीलंका 129 नंबर पर और बांग्लादेश 101 नंबर पर आते हैं| खुशियों के मामले में फिनलैंड लगातार टॉप पर बना हुआ है हमारे पड़ोसियों में सिर्फ अफगानिस्तान ऐसा है जो HAPPYNESS के मामले में हम से पीछे है|
हालांकि यह खुशी की बात है कि भारत ने हैप्पीनेस इंडेक्स में 149 की रैंक से आगे बढ़ते हुए 139 वी रैंक हासिल की है| पिछले साल भारत की रैंक 144 थी|
यह सर्वे तीन इंडिकेशंस पर आधारित होता है जीवन स्तर, सकारात्मक सोच और नकारात्मक सोच|
इसके अलावा इस रिसर्च में जीवन प्रत्याशा, सामाजिक सहयोग, स्वतंत्रता, उदारता और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे शामिल किए जाते हैं|
यह तो रही रिसर्च के बाद लेकिन क्या वास्तव में भारत के लोग अपने पड़ोसियों से भी कम खुश हैं?
निश्चित ही ऐसा संभव है| दरअसल भारत में एकता में अनेकता की जगह अनेकता में अनेकता निकालने के कुचक्र के कारण देश के लोगों की जीवन शैली पर बुरा असर पड़ा है|
देश में अनेक स्तरों पर आपस में बंटवारे हो गए हैं| असमानता और बटवारा ही दुख का कारण है|
लोग अच्छी तरह से जीने के स्थान पर पंथ, मजहब, संप्रदाय, जाति, क्षेत्र और राजनीतिक आधार पर बट चुके हैं|
सोशल मीडिया के कारण हर एक व्यक्ति अपनी जाति को लेकर पंथ या मजहब को लेकर अपनी परंपरा को लेकर अपनी सामाजिक स्थिति को लेकर एक काल्पनिक चिंता का जाल बुन लेता है|
हर व्यक्ति जाति धर्म संप्रदाय क्षेत्र राजनीतिक दल के आधार पर अलग-अलग व्हाट्सएप ग्रुप, फेसबुक ग्रुप्स पेज, और यूट्यूब चैनल से जुड़ा हुआ है|
यह वह स्थान है जहां पर हमें हमारे अस्तित्व से डराया जाता है| हमारा मत, पंथ, संप्रदाय, कैसे खतरे में है| कैसे दूसरे वर्ग के लोग हमारे ऊपर अत्याचार कर रहे हैं| हमें यह भी बताया जाता है कि कैसे विशेष गुट के लोग हमारे गुट को दबाने की कोशिश कर रहे हैं|
यहां हमें किसी विशेष संप्रदाय से जोड़ने की कोशिश की जाती है, इसके लिए कई कुचक्र रचे जाते हैं| यहां हमारी परंपराओं और मान्यताओं पर प्रश्नचिन्ह खड़े किए जाते हैं? इतिहास को विकृत रूप से पेश करके हमें अपने ही लोगों से अलग कर दिया जाता है|
आज भारत का बड़ा वर्ग खुशियों से दूर होता जा रहा है| इसकी वजह उनके अंदर पैदा हुआ एक काल्पनिक भय है| वो अपनी जातिगत स्थितियों के आधार पर खुद ही अपने आप को आइसोलेट करते जा रहे हैं|
भारत के एक बड़े वर्ग को अपनी ही सांस्कृतिक परंपराओं से दूर कर दिया गया है|
भारत की संस्कृति और परंपराओं में आनंद के उत्सव छुपे हुए हैं, हम अपने ही उन उत्सवों से दूर हैं क्योंकि हम अपनी परंपराओं से नफरत करते हैं|
भले ही आध्यात्मिक और धार्मिक रूप से भारत के पास एक समृद्ध विरासत है लेकिन उस विरासत से कितने लोग जुड़े हुए हैं?
आज कितने लोग भारत के पारंपरिक मेलों से जुड़े हैं? कितने लोग दीपावली और होली जैसे त्यौहार मनाते हैं? कितने लोग दुर्गा उत्सव और गणेश उत्सव में भाग लेते हैं?
कितने लोग रक्षाबंधन को मानते हैं?
भारत के उत्सवों में आनंद का सूत्र छिपा हुआ है| हमारे तीज त्यौहार धर्म से ज्यादा हमारी जीवनशैली, आनंद और समृद्ध सोच से जुड़े हुए हैं|
खुशियों के स्तर में सद्भाव, सम्मान, सामंजस्य, भाईचारा और प्रेम महत्वपूर्ण लेकिन भारत में नफरत की सियासत ने इन सब को आम लोगों की जिंदगी से दूर कर दिया है|
आनंद के लिए अध्यात्म और दर्शन का अपना एक महत्व है भारत के दर्शन में व्यक्ति को बेफिक्री से जीने की कला सिखाई जाती है| लेकिन भारतीय इससे जुड़ें तो|
यहाँ लोग मोबाइल पर क्या देखते हैं? टीवी शो क्या दिखाते हैं? OTT से हिंसा नफरत और वहशीपन के पाठ सीखने वाले लोग कैसे खुश रह सकते हैं|
हम फैशन अमेरिका की तरह करते हैं लेकिन कमाई अठन्नी भी नही होती| बाज़ार हमे चादर से बाहर खर्च करने पर मजबूर कर देता है फिर जिंदगी भर हम रोते रहते हैं|
स्वतंत्रता और उदारता में हम पीछे नहीं लेकिन फिजूल खर्ची, दिमागी जहर, लालच और बेईमानी हमे खुशियों से दूर करते हैं|