जातिवाद के ज़हर से लहुलुहान होता भारत... जातिवादियों पर सख्त एक्शन कब होगा?


स्टोरी हाइलाइट्स

जातिवाद के ज़हर से लहुलुहान होता भारत... जातिवादियों पर सख्त एक्शन कब होगा? भारत की नसों में जहर बन कर फिर से दौड़ने लगा है| वर्ण व्यवस्था को विकृत कर 2000 सालों में विघटनकारी ताकतों ने सनातन धर्मियों को कई टुकड़ों में बांट दिया|  वर्ण व्यवस्था ठीक उसी तरह से थी जैसे आज कोई नौकरी पेशा है, कोई राजनेता है, कोई वक्ता है, कोई समाजसेवी है, तो कोई व्यवसायी| दरअसल लोगों के कार्य, व्यापार और व्यवसाय के आधार पर वर्ण व्यवस्था लागू की गई थी|  वर्ण व्यवस्था धीरे-धीरे विकृत होकर जाति और समाज व्यवस्था में तब्दील हो गई| शिक्षा, दीक्षा, ज्ञान, ध्यान की बातें करने वाले  प्रोफेशनल्स ब्राह्मण जाति में तब्दील हो गए| जो लोग व्यापार-व्यवसाय कर रहे थे वह वैश्य जाति में तब्दील हो गए, राजकाज संभालने वाले लोग क्षत्रिय और सेवा व  साधारण कामकाज करने वाले, मजदूर आदि शूद्र जाति के कहलाने लगे| जिस मनु स्मृति को जातिवाद के लिए कोसा जाता है उसमे भी फेरबदल किया गया जबकि मनु कहते हैं- ‘जन्मना जायते शूद्र:’ अर्थात जन्म से तो सभी मनुष्य शूद्र के रूप में ही पैदा होते हैं। बाद में योग्यता के आधार पर ही व्यक्ति ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य अथवा शूद्र बनता है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम के गुरु वशिष्ठ महाशूद्र चांडाल की संतान थे, लेकिन अपनी योग्यता के बल पर वे ब्रह्मर्षि बने। एक मछुआ (निषाद) मां की संतान व्यास महर्षि व्यास बने। आज भी कथा-भागवत शुरू होने से पहले व्यास पीठ पूजन की परंपरा है। विश्वामित्र अपनी योग्यता से क्षत्रिय से ब्रह्मर्षि बने। उस वक्त कोई भी पैदाइशी ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र नहीं था| लेकिन धीरे धीरे समान कार्य के आधार पर लोग वर्गीकृत होने लगे| न सिर्फ चार वर्णों में बल्कि छोटे-छोटे कार्यों के आधार पर और भी जातियां निर्मित हो गई| जैसे लोहे का काम करने वाले लोहार कहलाने लगे, सोने का काम करने वाले स्वर्णकार, लकड़ी का काम करने वाले बढ़ई, कपड़े धोने का काम करने वाले धोबी, बाल काटने का काम करने वाले नाई, चमड़े का काम करने वाले चर्मकार, बांस का काम करने वाले   वंशकार, निर्माण का काम करने वाले विश्वकर्मा| पूरा विश्व मूल रूप से मानव की 3 प्रजातियों में बटा हुआ है| इन तीन प्रजातियों से विकसित होते होते देश काल परिस्थिति और क्रॉस ब्रीडिंग के कारण कई नई प्रजातियां विकसित हुयी | भारत में पूरे विश्व से मूल और सब प्रजातियों का आगमन हुआ| भारत एक तरह से विभिन्न प्रजातियों का संगम क्षेत्र है| यहां पर इन प्रजातियों ने आजीविका चलाने के लिए अलग-अलग तरह के कार्य शुरू किए|  इन कार्यों के आधार पर ही वर्ण व्यवस्था आकार लेती गई| वर्ण व्यवस्था विकृत होकर जाति व्यवस्था में तब्दील हो गई| विदेशी आक्रमणकारियों ने जातियों में ऊंच-नीच का भाव भर दिया| दरअसल शुरुआती दौर में वर्ण और जातियों में भेदभाव नहीं हुआ करता था,   लेकिन फूट डालो और राज करो की नीति ने धीरे-धीरे भारत में जाति, मत, पंथ, संप्रदाय और धर्म के नाम पर लोगों को लड़ाने के लिए धीमा जहर भरना शुरू कर दिया| गुलामी की जिंदगी जीने वाले लोग अपने धर्म के मूलभूत स्वरूप को भूल गए और जातियों में बांट कर एक दूसरे में भेद करने लगे|  एक दूसरे को ऊंचा नीचा दिखाने लगे| आगे चलकर भारत में अनेक तरह के जाति और वर्ग संघर्ष पैदा हो गए| जात-पात के नाम पर जमकर भेदभाव हुआ|  विश्व को “वसुधैव कुटुंबकम” , "एकम सत विप्रा बहुधा वदन्ति,सर्वे भवंतु सुखिनः,  धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों में सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो, जैसे नारे देने वाले इस देश के सनातन धर्म को कुरीतियों ने बदनाम कर दिया| सब कुछ एक सोची-समझी रणनीति के तहत हुआ|  देश के मूल धर्म ग्रंथों को या तो जला दिया गया, या उनमें आक्रांताओं ने  कुछ ऐसी बातें जुड़वा दी जो समाज को विघटित करती थी या धर्म को नीचा दिखाती थी| पिछले 100 साल में भारत में जातिवाद जैसी कुप्रथा को खत्म करने में काफी हद तक सफलता प्राप्त की|  लेकिन कुछ विघटनकारी ताकतों ने एक बार फिर जातिवाद को हवा दे दी है| देश के अंदर और बाहर की ऐसी ताकतें मिलकर यूट्यूब व  सोशल मीडिया के जरिए लोगों को भड़काने का काम कर रही है| जो सवर्ण जातिवाद से ऊपर उठने की कोशिश कर रहे थे, उनके खिलाफ अनर्गल तथ्यों के साथ नए सिरे से  आरक्षित जातियों को भड़काया जा रहा है| इसी तरह से सवर्ण वर्ग में भी फिर से कुछ लोग अहंकार पोषित उच्चता का भाव भरने की कोशिश कर रहे हैं| सोशल मीडिया जात-पात के भेद को खत्म करने की जगह एक दूसरे के खिलाफ जहर भरने का माध्यम बन गया है| अंबेडकर और बुद्ध के नाम का सहारा लेकर कुछ लोग सनातन धर्म को खंडित करने में लगे हुए हैं|  उस दौर में जब सारा विश्व एक ग्लोबल विलेज में तब्दील होते जा रहा है| देश के युवाओं को भारत के गौरवशाली इतिहास से परिचित कराने के बजाए हजार हजार पद्रह सौ साल की गुलामी के दौर में पनपी  बुराइयों से भड़का कर गुमराह किया जा रहा है| भारत 1000/ 2000 साल का इतिहास नहीं है|  असली भारत तो गुलामी से पहले का वो गौरवशाली देश है| जिसे  सोने की चिड़िया होने का सौभाग्य हासिल था| इसी सोने को लूटने के लिए आक्रांताओं ने भारत में जाति-धर्म के नाम पर लोगों को बांटने का जहर बोना शुरू किया| आज देश के कुछ लोग विदेशी आक्रमणकारियों के बोए हुए बीज को फिर से अंकुरित करने की कोशिश कर रहे हैं|  जिस आग को देश के बुद्धिजीवियों ने ठंडा करने की कोशिश की है| विदेशियों की लगाई उस आग को भड़काने में हमारे ही कुछ लोग फिर से मोहरा बनके जुटे हुए हैं| आप यूट्यूब पर चले जाइए वहां पर कई लोग आपको मिल जाएंगे जो समाज में फिर से जहर भरने का काम कर रहे हैं| ये लोग अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्र का हिस्सा हैं| ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्यवाही होनी चाहिए जो देश में घृणा का वातावरण पैदा कर रहे हैं| ये लोग कुछ राजनितिक दलों के लिए भी मुफीद हैं इसलिए शायद इन पर एक्शन नहीं होता|  दरअसल भारत को कमजोर करने में हमारे ही देश के कुछ ऐसे महत्वाकांक्षी नेताओं का हाथ है, जो अपनी काबिलियत के दम पर राजनीति में आगे नहीं बढ़ पाते| वह समाज और जाति के नाम पर तोड़फोड़ करके अपना राजनीतिक वर्चस्व कायम करना चाहते हैं| इस देश को जातिवाद से मुक्ति दिलाना बहुत जरूरी है| लोगों में भारतीय होने के प्रति गर्व की भावना विकसित करनी भी आवश्यक है| भारत में रहने वाले सभी लोग खुद को सबसे पहले भारतीय माने, जातिगत आधार पर भेदभाव पूरी तरह से बंद होना चाहिए| बेरोजगारी निर्धनता और कुप्रथाओं को सख़्ती से बंद करना जरूरी है|  कथित रूप से खुद को सवर्ण या उच्च वर्ग का मानने वाले लोग भी वास्तविकता को पहचाने और मानव को मानव के रूप में देखना शुरू करें|