भारतीय इतिहास: इन महिलाओं के योगदान को नहीं भुलाया जा सकता....


स्टोरी हाइलाइट्स

हजारों भारतीय महिलाओं ने अपने कर्म, व्यवहार और बलिदान से विश्व में आदर्श प्रस्तुत किया है. प्राचीनकाल से ही भारत में पुरुषों के साथ महिलाओं को भी समान अधिकार और सम्मान मिलता रहा है इसीलिए भारतीय संस्कृति और धर्म में नारियों का महत्वपूर्ण स्थान रहा है. इन भारतीय महिलाओं ने जहां हिंदू धर्म को प्रभावित किया वहीं इन्होंने संस्कृति, समाज और सभ्यता को नया मोड़ दिया है. भारतीय इतिहास में इन महिलाओं के योगदान को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता. प्राचीन भारत में महिलाएं काफी उन्नत व सुदृढ़ थीं|

हजारों भारतीय महिलाओं ने अपने कर्म, व्यवहार और बलिदान से विश्व में आदर्श प्रस्तुत किया है. प्राचीनकाल से ही भारत में पुरुषों के साथ महिलाओं को भी समान अधिकार और सम्मान मिलता रहा है इसीलिए भारतीय संस्कृति और धर्म में नारियों का महत्वपूर्ण स्थान रहा है. इन भारतीय महिलाओं ने जहां हिंदू धर्म को प्रभावित किया वहीं इन्होंने संस्कृति, समाज और सभ्यता को नया मोड़ दिया है. भारतीय इतिहास में इन महिलाओं के योगदान को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता. प्राचीन भारत में महिलाएं काफी उन्नत व सुदृढ़ थीं|
सावित्रीबाई फुले- सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले भारत की प्रथम महिला शिक्षिका, समाज सुधारिका एवं मराठी कवयित्री थीं. उन्होंने अपने पति ज्योतिराव गोविंदराव फुले के साथ मिलकर स्त्री अधिकारों एवं शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किए. वह प्रथम महिला शिक्षिका थीं. उन्हें आधुनिक मराठी काव्य का अग्रदूत माना जाता है. 1852 में उन्होंने बालिकाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना की थी. सावित्रीबाई पूरे देश की महानायिका हैं. उनको महिलाओं और दलित जातियों को शिक्षित करने के प्रयासों के लिए जाना जाता है. सावित्रीबाई ने अपने जीवन को एक मिशन की तरह से जीया जिसका उद्देश्य था विधवा विवाह करवाना, छुआछूत मिटाना, महिलाओं की मुक्ति और दलित महिलाओं को शिक्षित बनाना|
ब्रह्मवादिनी वेदज्ञ ऋषि मैत्रेयी- मैत्रेयी मित्र ऋषि की कन्या और महर्षि याज्ञवल्क्य की दूसरी पत्नी थीं. शांत स्वभाव की मैत्रेयी की अध्ययन, चिंतन और शास्त्रार्थ में रुचि थी. वह जानती थीं कि धन-संपत्ति से आत्मज्ञान नहीं मिलता. वह अपने पति के साथ वन में पहुंचीं और ज्ञान और अमरत्व की खोज में लग गईं. आज हमारे लिए स्त्री शिक्षा बहुत बड़ा मुद्दा है, लेकिन हजारों साल पहले मैत्रेयी ने अपनी विद्वता से न केवल स्त्री जाति का मान बढ़ाया बल्कि उन्होंने यह भी सच साबित कर दिखाया था कि पत्नी धर्म का निर्वाह करते हुए भी स्त्री ज्ञान अर्जित कर सकती है|
सीता- राजा जनक की पुत्री का नाम सीता इसलिए था कि वे जनक को हल चलाते वक्त खेत की रेखाभूमि से प्राप्त हुई थीं इसलिए उन्हें भूमिपुत्री भी कहा गया. रावण के पास रहने के कारण सीता को समाज ने नहीं अपनाया. सीता को अग्नि परीक्षा देना पड़ी फिर भी लोगों ने उन पर संदेह किया. लोकापवाद के कारण सीता निर्वासित होती हैं लेकिन इसके लिए वह अपना उदार हृदय व सहिष्णु चरित्र का परित्याग नहीं करती और न ही पति को दोष देती हैं. इनकी स्त्री व पतिव्रता धर्म के कारण इनका नाम आदर से लिया जाता है. त्रेतायुग में इन्हे सौभाग्य की देवी लक्ष्मी का अवतार मानते हैं|
द्रौपदी- द्रौपदी का जन्म महाराज द्रुपद के यहां होने से तथा द्रुपद पुत्री होने के कारण उन्हें द्रौपदी कहा जाता था. द्रौपदी को यज्ञसेनी इसलिए कहा जाता है कि मान्यता अनुसार उनका जन्म यज्ञकुण्ड से हुआ था. उन्हें पांचाली भी कहा जाता था, क्योंकि उनके पिता पांचाल देश के नरेश थे. दुशासन ने द्रौपदी के बाल खींचकर कहा- 'हमने तुझे जुए में जीता है अत: तुझे अपनी दासी बनाकर रखेंगे. दुशासन ने द्रौपदी को निर्वस्त्र करने की कोशिश की. द्रौपदी ने विकट विपत्ति जानकर श्रीकृष्ण का स्मरण किया. श्रीकृष्ण की लीला से द्रौपदी का वस्त्र लंबा होता गया और द्रौपदी के सम्मान की रक्षा हुई. द्रौपदी इतिहास में अकेली ऐसे महिला है जिसने सबसे ज्यादा सहा. द्रौपदी के जीवन पर सैकड़ों ग्रंथ लिखे गए और उनके चरित्र की पवित्रता को उजागर किया गया|
रानी लक्ष्मीबाई- रानी लक्ष्मीबाई मराठा शासित झांसी राज्य की रानी और 1857 की राज्यक्रांति की द्वितीय शहीद वीरांगना थीं. उन्होंने सिर्फ 29 साल की उम्र में अंग्रेज साम्राज्य की सेना से युद्ध किया और रणभूमि में वीरगति को प्राप्त हुई. उनका बचपन का नाम मणिकर्णिका था लेकिन प्यार से उन्हें मनु कहा जाता था. रानी लक्ष्मीबाई ने हिम्मत नहीं हारी और उन्होनें हर हाल में झांसी राज्य की रक्षा करने का निश्चय किया. रानी लक्ष्मीबाई अपनी सुंदरता, चालाकी और दृढ़ता के लिए उल्लेखनीय तो थी हीं साथ ही विद्रोही नेताओं में सबसे अधिक खतरनाक भी थीं|