भारतीय समाज- पुरुषार्थ -3 मोक्ष (Moksha)


स्टोरी हाइलाइट्स

The ultimate goal of life in Hinduism and philosophy is to attain liberation from worldly bonds and salvation.

 भारतीय समाज- पुरुषार्थ -3 मोक्ष (Moksha) मोक्ष (Moksha) -हिन्दू धर्म और दर्शन में जीवन का परम लक्ष्य सांसारिक बंधनों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्त है। इसीलिए, जैसा कि पूर्व में कहा गया है, कुछ लोग तीन ही पुरुषार्थ मानते हैं। धर्म, अर्थ और काम रूपी पुरुषार्थों का लक्ष्य मोक्ष ही है। मोक्ष के लिए आश्रमों में संन्यास का अलग वर्णन है। लीन पुरुषार्थ तो ब्रह्मचर्य, गृहस्थ और वानप्रस्थ आश्रम में प्राप्त किए जा सकते हैं, लेकिन संन्यास आश्रम से इसे प्राप्त करने के विशेष प्रयत्नों की पृष्ठभूमि में निश्चित ही मोक्ष भी एक पुरुषार्थ है। मोक्ष प्राप्ति के तीन मार्ग भी अलग से बताए गए हैं - भक्ति, ज्ञान और कर्म । भक्ति मार्ग से कठोर तप और त्याग के माध्यम से आत्मा का परमात्मा को जानने के रूप में बुराइयों को त्यागकर अच्छाइयों का अनुसरण कर मोक्ष को प्राप्त किया जा सकता है। दूसरों की भलाई पुण्य कार्य है। अतः अपनी त्रुटियों में सुधार कर अन्यों की भलाई और परोपकार से ही ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है। बुराई स्वयं में है इस तथ्य को जानना ही ज्ञान मार्ग है। कर्म मार्ग से तो कर्म ही पूजा है, के आदर्श का पालन सर्वोत्कृष्ट मोक्ष का मार्ग है धर्म रूपी पुरुषार्थ का आधार ही कर्म है। कर्म ही धर्म है। अत: अपने कार्य को पूर्ण निष्ठा के साथ करने वाला सही अर्थों में धर्म का पालन करने वाला पुरुषार्थी कर्म बंधन से मुक्ति पाकर मोक्ष का अधिकारी होता है। भागवत् गीता में निष्काम कर्म अर्थात् फल की इच्छा बिना अपने कर्म को निष्काम भाव से करने वाला मनुष्य ही श्रेष्ठ होता है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को यही उपदेश दिया कि कर्म के मार्ग में न कोई सम्बन्धी होता है न मित्र बल्कि कर्म की महत्ता स्वतः ही अपने आप में सम्पूर्ण है। यह सांसरिक बन्धनों से परे है और यही मोक्ष प्राप्ति का सर्वोत्तम साधन है। भक्ति और ज्ञान मार्ग की तुलना में सम्भवतः आज के समय में मोक्ष प्राप्ति का कर्म मार्ग रूपी पुरुषार्थ ही श्रेष्ठ है।