भारतीय समाज- पुरुषार्थ के प्रकार 2 - अर्थ (Artha)


स्टोरी हाइलाइट्स

भारतीय समाज- पुरुषार्थ के प्रकार 2 - अर्थ (Artha)
सामान्यतः अर्थ का तात्पर्य रुपए और धन माना जाता है। इस अर्थ में लोग धन का अर्जन मानव जीवन की सुख-सुविधा में वृद्धि के लिए करते हैं। स्वयं तथा पारिवारिक कर्तव्यों के पालन के लिए आज के भौतिकवादी युग में धन का महत्व बहुत अधिक है केवल कर्तव्यबोध के रूप में ही नहीं आज धन शक्ति और प्रतिष्ठा का प्रतीक बन चुका है।


 धन संचय की प्रवृत्ति बढ़ी है। धन  के लिए आपाधापी मची हुई हैं। किन्तु पुरुषार्थ के रूप में भारतीय दर्शन में धन का आशय रुपये - पैसे, धन सम्पत्ति के संचय और एकत्रीकरण से न होकर साधनों के एकत्रीकरण के रूप में है। ये साधन भी ऐसे हों जो कि सुख और शान्ति स्थापित करने में सहायक हों न कि दुःख और अशान्ति का कारण बनें। 

इस अर्थ में अर्थ रूपी पुरुषार्थ का सम्बन्ध व्यक्ति द्वारा अपने तथा परिवार के भरण-पोषण के लिए साधनों के एकत्रीकरण के प्रयास से है। वी.जी.गोखले ने अपनी पुस्तक 'इण्डियन थॉट थू द एजेस'(Indian Thought through the Ages) में लिखा है, "अर्थ का तात्पर्य उन भौतिक वस्तुओं से है जो वैयक्तिक, पारिवारिक तथा धार्मिक कार्यों की पूर्ति में सहायक तथा आवश्यक है।" इस प्रकार अर्थ में भौतिक संतुष्टि के साथ धार्मिक कर्तव्यों को पूरा करना भी निहित है| विभिन्न आश्रमों और पंच ऋणों से उऋण होने का व्यापक प्रयास अर्थ रूपी पुरुषार्थ में है।