श्रीराम के चरणों में अंकित चिन्ह और उनका महत्त्व -दिनेश मालवीय


स्टोरी हाइलाइट्स

श्रीराम के चरणों में अंकित चिन्ह और उनका महत्त्व -दिनेश मालवीय [embed]https://youtu.be/gSGKo7dHMzk[/embed] भगवान श्रीराम श्रीहरि विष्णु के अवतार हैं. यह उनका मानव अवतार है. मानव रूप में होने कारण उन्होंने सदा अपनी दिव्यता को छुपाया है, लेकिन यह उनकी लीलाओं में दिव्यता की झलकें समय-समय पर उजागर हुयी हैं. उनके भक्त उनसे सदा उनके चरणों में निष्काम प्रेम का वरदान और आशीर्वाद माँगते हैं. उनके चरणों की रज पाकर पत्थर की शिला बन गयी अहल्या ने पुन: अपना मानवी स्वरूप प्राप्त किया. उनके चरणों की रज को हर कोई अपने माथे पर लगाकर स्वयं के जीवन को सफल मानता है. रामायण में उनके सभी भक्त सिर्फ उनके चरणों में प्रेम के सिवा कुछ भी नहीं माँगते. आखिर श्रीराम के चरणों में ऐसा क्या है? उनके चरण बहुत दिव्य हैं. उनमें बाईस चिन्ह जन्मजात और अमित हैं. ये चिन्ह हैं- अंकुश, अम्बर. वज्र, कमल, जव, ध्वजा, गोपद, शंख, चक्र, स्वास्तिक, जम्बूफल, कलश, अमृतकुंड, अर्धचन्द्र, शटकोण, मीन, बिंदु, ऊर्ध्वरेखा, अष्टकोण, त्रिकोण, इन्द्रधनुष और पुरुष-विशेष. इनमें से हर चिन्ह का अपना महत्त्व है. आइये, सबसे पहले अंकुश की बात करते हैं. जीवन में सबसे कठिन काम मन रूपी हाथी को वश में करना होता है. इसके वश में आये बिना कोई आध्यात्मिक प्रगति या अनुभूति संभव नहीं है. यह वश में न रहे तो इससे बड़ा कोई शत्रु नहीं है. यह यदि वह में रहे तो इससे बड़ा कोई मित्र नहीं है. इसे वश में करने के लिए ही इस चिन्ह का ध्यान करना चाहिए. दूसरा चिन्ह है अम्बर यानी वस्त्र. जड़ता को संतों ने ऐसे जाड़े के रूप में निरूपित किया है, जो भक्तों को बहुत दुःख देता है. इसलिए भक्तगण, भगवान के चरणों में अंकित अम्बर का ध्यान कर जड़ता रूपी जाड़े को दूर करते हैं. तीसरा चिन्ह है वज्र. यह पापरूपी पहाड़ों को तोड़ने का काम करता है. जीवन में किये गये पाप अपना परिणाम दिए बिना नहीं छोड़ते. ये पहाड़ के सामान होते हैं. इन्हें तोड़ने के लिए यही वज्र काम आता है. इसका ध्यान पापों के परिणामों की तीव्रता कम करने में सहायक होता है और नये पाप करने से रोकता है. चौथा चिन्ह कमल है. भारतीय धर्म और संस्कृति में कमल को बहुत महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है. यह भक्त को भक्ति रूपी नवनिधि से जोड़ता है. भगवान के चरणों, हाथों और चरणों की तुलना कमल से की गयी है. उनका एक नाम कमलनयन भी है. तुलसीदास ने विनयपत्रिका में लिखा है कि- “नव कंज लोचन, कंज मुख, कर कंज पद कंजारुणम”. भगवान विष्णु के एक हाथ में कमल है. पाँचवाँ चिन्ह है जव अर्थात जों. इसे सर्व विद्याओं और सिद्धियों का दाता माना गया है. इसमें सुमति, सुगति और सुख-सम्पत्ति का निवास माना जाता है. ध्यान करने वालों को इसकी प्राप्ति होती है. कलियुग की कुटिल गति से भक्त पलभर में ही भयभीत हो जाते हैं. उनके मन में निर्भयता लाने के लिए भगवान अपने चरणों में ध्वजा का चिन्ह धारण किये हैं. इसका ध्यान करने से भक्त के मन में कलिकाल और उसकी कुटिलताओं का भय चला जाता है. भगवान के चरणों में गोपद चिन्ह का ध्यान करने से भक्तों को अपार भवसागर पार करने में सहायता मिलती है. चतुर भक्त अपने ह्रदय के नेत्र गोपदचिन्ह लगाकर रखते हैं. इससे संसार रुपी सागर गोपद के समान छोटा हो जाता है. उसके सभी संसारी कष्ट मिट जाते हैं. श्रीराम के चरणों में अंकित शंख चिन्ह माया के कपट, उसकी कुचाल तथा उसके बल को जीतने में मदद करता है. हमारी संस्कृति में शंख को बहुत महत्त्व दिया गया है. चतुर्भुज भगवान श्रीहरि अपने एक हाथ में शंख धारण करते हैं. इसका ध्यान करके भक्त बहुत आसानी से माया पर विजय प्राप्त कर लेते हैं. भगवान का सबसे अमोघ शस्त्र चक्र है. इसके चिन्ह भी उनके श्रीचरणों में अंकित हैं. इसका ध्यान करने से कामरूपी निशाचर को मारने में मदद मिलती है. हमारी संस्कृति में स्वास्तिक को बहुत शुभ चिन्ह माना गया है. यह सर्वमंगलकारी और कल्याणकर है. इसे भगवान ने अपने चरणों में अंकित कर रखा है. इसी प्रकार जम्बूफल यानी जामुन को अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष, चारों फलों का दाता माना जाता है. यह कामनाओं को पूर्ण करने वाला है. भक्तों को इसका नित्य ध्यान करना चाहिए. अमृतकलश भी बहुत पुण्यदायी है. इस चिन्ह को भगवान अपने चरणों में इसलिए धारण किये हैं, ताकि ध्यान करने वाले का ह्रदय भक्तिरस से भरा रहे. वह ध्यान के नेत्रों से यह अमृत पीकर अटल भक्ति को प्राप्त हो. अर्धचन्द्र को भी भगवान अपने चरणों में धारण करते हैं. इसका ध्यान करने से दैहिक, दैविक और भौतिक तापों का नाश होता है और भक्तिभाव बढ़ता है. काम भक्त का सबसे बड़ा शत्रु है. इसे सर्प जैसा माना गया है.  यह शरीर रूपी बांबी में बसता है. इससे भक्तों को बचाने के लिए भगवान, अष्टकोण, षट्कोण और त्रिकोण यंत्र चिन्हों को धारण करते हैं. इनका ध्यान करने से भगत विषय रूपी सर्प से बचे रहते हैं और भगवान में उनकी भक्ति अटल बनी रहती है. उनके चरणों में मीन और बिन्दुचिन्हों का भी अंकन है. ये वशीकरण यंत्र हैं. इनका ध्यान करने से भक्तों के भीतर एक विशिष्ट प्रकार का सात्विक आकर्षण उत्पन्न होता है. वे इन्द्रियों को भी वश में कर पाते हैं. संसार रूपी सागर को पार करने में भक्तों की सहायता के लिए भगवान् ने उर्ध्वरेखा को अपने चरणों में स्थान दिया है. यह एक प्रकार का पुल है, जिसके माध्यम से भक्त भवसागर पार कर जाते हैं. भगवान श्रीराम ने अपने चरणों में इन्द्रधनुष का चिन्ह भी धारण किया है. यह भक्तों के दुःख दूर करने और अहंकार का नाश करने वाला है. पुरुष-विशेष चिन्ह वह अपने पदकमलों में बसाए हैं. भगवान का कथन है कि मेरा भक्त यदि सरल मनवाला, सत्य, सरल वचनवाला और शुद्ध कर्म करने वाला हो तो उसे मैं इसी पुरुष चिन्ह के समान अपने चरणों में शरण दूँगा. बुद्धिमान भक्तों को सदा इन चरणों का ह्रदय में ध्यान करते हुए ईश्वर के नामों का उच्चारण करते रहना चाहिए.