इंटरनेट प्लेटफार्म पर भाषा के साथ हो रहा है बलात्कार -सरयूसुत मिश्रा


स्टोरी हाइलाइट्स

भारत  के सर्वोच्च न्यायालय ने ओटीटी प्लेटफॉर्म पर दिखाई जा रही सामग्री में अश्लीलता पर कड़ी अप्रसन्नता व्यक्त करते हुए इस पर नियंत्रण को जरूरी बताया है.

      इंटरनेट प्लेटफार्म पर भाषा के साथ हो रहा है बलात्कार -सरयूसुत मिश्रा भारत  के सर्वोच्च न्यायालय ने ओटीटी प्लेटफॉर्म पर दिखाई जा रही सामग्री में अश्लीलता पर कड़ी अप्रसन्नता व्यक्त करते हुए इस पर नियंत्रण को जरूरी बताया है. “तांडव” वेब सीरीज मामले में सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी से लोगों को कुछ भी उचित-अनुचित कहने की खुली छूट नहीं मिल जाती. वेब सीरीज की भाषा मनोरंजन के नाम पर सभ्यता और संस्कृति के साथ खिलवाड़ कर रही है. वेब सीरीज में गाली गलौज का सामान्य भाषा के रूप में उपयोग होता है. महिलाओं की गरिमा और मर्यादा को तार-तार करते हुए आपत्तिजनक एवं अश्लील सामग्री परोसी जा रही है. इंटरनेट प्लेटफार्म पर जो कंटेंट पेश किए जा रहे हैं, उससे युवा पीढ़ी बहुत कुछ इस बात से आकर्षित हो रही है कि उसमें फूहड़ और अश्लील भाषा परोसी जा रही है. वेब सीरीज में मां-बहन की गालियां बकी जा रही हाँ और  स्त्री पुरुष के अंतरंग अंगों की वीभत्स ढंग से चर्चा की जाती है. बहुत लंबे समय से इंटरनेट प्लेटफॉर्म्स भाषा के साथ बलात्कार करते हुए ऐसी सीरीज प्रस्तुत कर रहे थे, जिस पर अब देश का और कानून के रखवालों का ध्यान गया है.  भारत सरकार ने इस प्लेटफार्म पर एक गाइडलाइन भी जारी की है. इस गाइडलाइन में कंटेंट की मानिटरिंग व्यवस्था की गई है. फिल्मों में तो सेंसरशिप की व्यवस्था है, यद्यपि यह व्यवस्था भी बहुत कारगर नहीं है. सेन्सर से कंटेंट पास कराने के लिए थोड़े बहुत बदलाव कर फिल्म पास करा ली जाती है. लेकिन उसकी भाषा और सामग्री समाज की दृष्टि से उपयुक्त नहीं होती. कई बार तो ऐसा होता है कि घर परिवार में बच्चों के साथ कुछ टीवी सीरियल्स और फिल्मों को देखना बहुत अपमानजनक परिस्थिति निर्मित करता है. जिस ढंग के डायलॉग और दृश्य दिखाए जाते हैं वह कोई भी सभ्य व्यक्ति अपने परिवार जनों के साथ देख नहीं सकता. फिल्मों में तो थोड़ा कम था लेकिन इंटरनेट प्लेटफार्म में तो सारी सीमाएं तोड़ दी हैं. भारत सरकार ने इसके लिए जो गाइडलाइन बनाई हैं वह मार्गदर्शी ही हैं, उसमें अभी कोई ऐसी ताकत नहीं है कि वह इस तरह के सामग्री को परोसने से रोक सकें. सर्वोच्च न्यायालय ने भी भारत सरकार की ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर तैयार गाइडलाइन का अवलोकन करने के बाद यह कहा है कि इसमें कोई दम नहीं है. इसके आधार पर इंटरनेट मीडिया को अश्लील सामग्री परोसने से रोकना संभव नहीं है. सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर कानून बनाने के निर्देश दिए हैं. यह स्थिति समाज के लिए सुखद सुखद है कि वेब सीरीज की भाषा और सामग्री पर न्यायालयों का ध्यान गया है और निश्चित ही कानून में ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जिससे इस को नियंत्रित करना संभव हो. ओटीटी प्लेटफॉर्म पर ऑनलाइन कंटेंट रोक के लिए कई देशों में स्वतंत्र कमीशन बने हुए हैं. अमेरिका, सिंगापुर, आस्ट्रेलिया, यूरोपीय यूनियन और ब्रिटेन जैसे  विकसित राष्ट्रों ने अपनी सभ्यता और संस्कृति को गलत ढंग से पेश करने वाले कंटेंट को सख्ती से रोकने की व्यवस्था की है. लेकिन समृद्ध सभ्यता और संस्कृति के धनी भारत में पर अभी तक इस पर ध्यान नहीं दिया. भाषा के मामले में केवल फिल्म, ओटीटी प्लेटफॉर्म ने ही विकृति फैलाई है ऐसा पूरी तरह नहीं है, राजनीतिक क्षेत्र में भी भाषा का पतन हुआ है. जिस तरह की भाषा राजनीतिक क्षेत्र में सामने आ रही है वह  स्वीकार योग्य नहीं है, लेकिन राजनीतिक लोग समाज के मार्गदर्शक माने जाते हैं इसलिए उस पर कोई सवाल नहीं उठाता.. लेकिन सवाल उठाया जाना चाहिए. भाषा और शब्दों पर कई बार राजनीतिक बवाल हो चुके हैं. मध्यप्रदेश में ही “आइटम”,  “उल्टा लटका दूंगा” “गाड़ दूंगा” जैसे जुमले विवाद का विषय बन चुके हैं. ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिए तो भारत सरकार क़ानून लाएगी, लेकिन दूसरे क्षेत्रों में भी भाषा के साथ खिलवाड़ को गंभीरता से लिया जाना चाहिए. ओटीटी प्लेटफॉर्म के साथ की माउथ मीडिया सर्विस (एमएमएस) को भी शामिल किया जाना चाहिए. कोई अगर ऐसी भाषा का उपयोग करता है जो भाषा के साथ खिलवाड़ हो और जिस से समाज को नुकसान हो उसको रोका जाना चाहिए. आजकल  तो ऐसा  ट्रेंड हो गया है कि ऐसा जुमला बोलो जो मीडिया में हिट हो जाए, वायरल हो जाए. वायरल के चक्कर में ऐसे अजीबोगरीब बयान सामने आते हैं जो भाषा के साथ बलात्कार जैसे होते हैं. एक और ट्रेंड चल रहा है ऐसी भाषा और कंटेंट परोसा जाए जिसमें लैंगिक भेदभाव अट्रैक्शन का विषय बन जाए. मीडिया में भी भाषा को उतना महत्व नहीं दिया जा रहा है, जितना दिया जाना चाहिए. भाषा के लिए प्रतिबद्धता होनी चाहिए. अखबार समाज में भाषा का आईना हुआ करते हैं. पुराने जमाने में अभिभावक और शिक्षक भाषा सीखने और समझने के लिए अखबार और पत्रिकायें  पढ़ने की सलाह दिया करते थे. आज ऐसा दौर चल रहा है कि अखबारों में न हिंदी है न अंग्रेजी, बल्कि दोनों का घालमेल चल रहा है. यह भी भाषा के साथ मजाक जैसा ही है.