ज्योतिष के विविध आयामों का परिचय


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ज्योतिष के विविध आयामों का परिचय ज्योतिष के विविध- आयामों का परिचय प्राप्त करने से पहले हम इसके आधारभूत तथ्यों को समझ लें तो आगे के सम्पूर्ण तथ्यों को समझने में सुविधा रहेगी। हमारा सम्पूर्ण या नक्षत्र विज्ञान ग्रहों पर आधारित है। जिसे समझने के लिए भारतीय ज्योतिष के दो मूल-भूत पक्ष हैं 1. फलित 2. गणित 1. फलित (एस्ट्रालॉजी)- जिसका अर्थ ग्रहों के आधार पर फलादेश करना, भविष्य कथन आदि कार्य किये जाते हैं। इसी के आधार पर भूत, भविष्य व वर्तमान का निरूपण किया जाता है अतः फतिल ज्योतिष सारे संसार में सर्वाधिक प्रसिद्ध है। 2. गणित (ऐस्ट्रानॉमी)- जिसका अर्थ खगोल विद्या होता है। खगोल विद्या द्वारा आकाशीय ग्रहों की स्थिति, अवस्था, परिभाषा, दूरी इत्यादि का ज्ञान होता है। पंचांगादि भी इसके द्वारा निर्मित होते हैं। पाठको! सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग फलित ज्योतिष है, क्योंकि ज्योतिष का महत्व फलित से आंका जाता है। इसका मूल ढांचा नक्षत्र विज्ञान पर टिका हुआ है। नक्षत्र विज्ञान का मूलाधार यह है कि व्यक्ति जन्म समय पर अवस्थित ग्रहों का प्रभाव जीवन में स्थायी रूप से पड़ता है। जन्म समय से आशय है, जन्म लग्न, यानि दिन-रात की साठघड़ियों में जातक का जन्म किस समय, किस घड़ी में हुआ। उसका सीधा प्रभाव जातक पर पड़ता है। इसे समझने के लिए ज्योतिष शास्त्र के तीन अंग हैं। इनके नाम हैं- ग्रह, नक्षत्र व राशि। ज्योतिष शास्त्र में 27 नक्षत्रों, 9 ग्रहों व 12 राशियों को माना गया है। जिसका वर्णन आगे करने जा रहा हूं, उन्हीं के आधार पर भाग्य और भविष्य का निर्धारण किया जाता है। नक्षत्र से हमें यह पता चलता है कि चन्द्र ने कितनी यात्रा तय की।उसके आधार पर ही सम्पूर्ण नक्षत्रादि की स्थिति ज्ञात की जाती है। उपरोक्त जानकारियों के बाद आइए, नक्षत्र विज्ञान से संबंधित समस्त निम्न जानकारी हासिल करें। ईश्वर ने ही समस्त सृष्टि की रचना की है। उत्तम ग्रह, नक्षत्र व राशियां बनाई हैं। जिस प्राणी का जन्म, जिस नक्षत्र, ग्रह और राशि में होता है, उसी के अधार पर उसका कर्म विवेचन भी होता है। अर्थात यदि कोई प्राणी मंगल नक्षत्र के ग्रह योग में उत्पन्न होता है तो मंगल उसकी देख-भाल करता है। राशियां उसके कर्म को जन्म देती हैं। इसलिए नक्षत्रों, ग्रहों और 1 राशियों का ही जीवों पर आधिपत्य होता है। ग्रहों को समझकर कार्य करने से लाभ मार्ग प्रशस्त होता है। नक्षत्रों की जानकारी होने पर शुभ-अशुभ का कर्मयोग देखा जाता है। पंडित, ज्ञानी, कुण्डलियों का मिलान ग्रह नक्षत्रों के आधार पर ही करते हैं। नक्षत्रों और ग्रह राशियों को देखकर ही शुभ-अशुभ फल-फलीभूत होते हैं । आगे के आयामों को समझने हेतु सर्वप्रथम नक्षत्रों की जानकारी हासिल करें। नक्षत्र आकाश में असंख्य तारेगण हैं, उनमें से सर्वाधिक प्रकाशमान 27 तारागण को 27 नक्षत्रों के नाम से जाना जाता है। जिनका नाम इस प्रकार है 1. अश्विनी 2. भरणी 3. कृतिका 4. रोहिणी 5. मृगशिरा 6. आर्द्रा 7. पुनर्वसु 8. पुण्य 9. आश्लेषा 10. मघा 11. पूर्वाफाल्गुनी 12. उत्तरा फाल्गुनी 13. हस्त 14. चित्रा 15. स्वाति 16. विशाखा 17. अनुराधा 18. ज्येष्ट 19. मूल 20. पूर्वाषाढ्य 21. उत्तराषाढ़ा 22. प्रवणा 23. धनिष्ठा 24. शतभिषा 25. पूर्वा भाद्रपद 26. उत्तरा भाद्रपद 27. रेवती ईश्वर की शक्ति का मूल नाम ग्रह है। ग्रह की संख्या 9 है, जिनका नाम निम्न प्रकार है 1. सूर्य 2. चन्द्रमा 3. मंगल 4. बुध 5. गुरू (बृहस्पति) 6. शुक्र 7. शनि 8. राहु और 9. केतू। हमारा सम्पूर्ण ज्योतिष या नक्षत्र विज्ञान ग्रहों पर आधारित है। सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरू, शुक्र और शनि का विशेष प्रभाव के जीवन पर पडता है। इसके अलावा दो ग्रह राहु और केतु भी होते हैं, जिन्हें ज्योतिष शास्त्र में गौण अर्थात छाया ग्रह के रूप में माना गया है। ग्रहों का राशियों से गहरा सम्बन्ध है। प्रत्येक ग्रह किसी न किसी राशि से जुड़ा हुआ है।