काम करने का सही तरीका जानना ज़रूरी, जानिए क्या कहते हैं स्वामी विवेकानंद.. दिनेश मालवीय


स्टोरी हाइलाइट्स

बहुत थोड़े अपवादों को छोड़ दिया जाये, तो संसार में जीने के लिए हर व्यक्ति को काम करना पड़ता है. यदि किसीके पास बहुत धन-संपत्ति..

काम करने का सही तरीका जानना ज़रूरी, जानिए क्या कहते हैं स्वामी विवेकानंद।। दिनेश मालवीय बहुत थोड़े अपवादों को छोड़ दिया जाये, तो संसार में जीने के लिए हर व्यक्ति को काम करना पड़ता है।

यदि किसीके पास बहुत धन-संपत्ति हो और उसे जीने के लिए कोई काम करने की ज़रुरत नहीं हो, तब भी उसे अपने स्वभाव और स्थितियों के अनुसार कुछ न कुछ काम तो करना ही पड़ता है। महत्व इस बात का नहीं है कि आप क्या काम करते हैं; महत्व इसका है कि आप उसे कैसे करते हैं। किसी ने कहा है कि, महापुरुष कुछ अलग नहीं करते; वे जो कुछ करते हैं, वह अलग तरीके से करते हैं। यानी जिस काम को आमतौर पर सभी लोग जिस तरह से करते हैं, महापुरुष उसे कुछ अलग तरह से करते हैं। इसी से उनके काम पर उनकी अलग छाप होती है। इतना ही नहीं, उनका काम दूसरों के लिए नजीर बन जाता है। 

इस विषय में परम तेजस्वी स्वामी विवेकानंद का कहना है कि, कार्य करने के तरीके को जानने से हमें बेहतर परिणाम मिलते हैं। स्वामीजी का यह वक्तव्य बहुत व्यावहारिक है। वह कहते हैं कि हमें यह जान लेना चाहिए कि किसी भी कार्य को कैसे किया जाए। दुनिया में हर व्यक्ति अपना काम तो अपनी तरह से कर ही लेता है, लेकिन इसकी सही विधि को नहीं जानने से इसमें ऊर्जा अधिक खर्च होती है और परिणाम भी वांछित रूप से अच्छे नहीं मिलते। स्वामीजी का कहना है कि सभी कर्म हमारे दिमाग की शक्तियों को उजागर करने के लीये ही होते हैं। इनके द्वारा हम अपनी आत्मा को जगा सकते हैं। यह शक्ति हर एक इंसान में होती है। विभिन्न कर्म एक तरह से उन शक्तियों पर आघात करने जैसा है। यह एक तरह से हमारे भीतर की सुप्त शक्तियों को जगाने जैसा है। इंसान को अपनी काबिलियत और क्षमताओं पर पूरा भरोसा होना चाहिए। 

हमेशा can-do अप्रोच रखनी चाहिए।पहले से ही यह नहीं सोच लेना चाहिए कि, अरे! यह काम कैसे होगा ? यह मुझसे हो पायेगा कि नहीं? आदि। विवेकानंदजी ने इस संदर्भ में अपने जीवन कि  एक घटना का उल्लेख किया है। यह वाकया तब का है जब वह परिव्राजक अवस्था में पैदल ही पूरे भारत का भ्रमण कर रहे थे। उनका मकसद भारत के लोगों की वास्तविक स्थिति का ज्ञान प्राप्त करना था। वह जानना चाहते थे कि हमारे देश में इतनी गरीबी क्यों है। इस अभिशाप को कैसे मिटाया जा सकता है। भ्रमण करते हुए वह राजस्थान के अलवर में पहुंचे। 

उनसे चर्चा करने के लिए बहुत से लोग आ पहुंचे। उन लोगों में एक बूढा भी था। उसने स्वामीजी से जीवन में आगे बढ़ने का उपाय पूछा। स्वामीजी ने उसे बहुत से उपाय विस्तार से बताये। लेकिन वह बूढा उनमें से कुछ भी ग्रहण नहीं कर बार-बार पूछने के लिए आने लगा। स्वामीजी ने भी धीरज का परिचय देते हुए उसे कई बार समझाया। फिर भी बूढ़े में सब उपदेशों का पालन करने का कोई इरादा दिखाई नहीं  दिया। एक दिन जब वह बूढा फिर स्वामीजी के पास आया, तो उन्होंने उसकी अनदेखी की। उसके एक भीसवाल का जवाब नहीं दिया। ऐसा  करीब डेढ़ घंटे तक चलता रहा। विवेकानंदजी बिल्कुल चुपचाप  बैठे रहे। 

बूढ़े को गुस्सा आ गया और यह बड़बड़ाता चला गया कि, अब कभी उनके पास नहीं आएगा। एक नौजवान यह सब देख रहा था। उसने स्वामीजी से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि मैं आप लोगों के कल्याण के लिए अपने जीवन का उत्सर्ग करने को तैयार हूँ। आपमें मेरे उपदेश ग्रहण करने और उन पर अमल करने की सामर्थ्य भी है। वह बूढा जीवन भार भोगों के पीछे दौड़ा। उसने अपनी लगभग सारी शक्ति खर्च कर दी है। अब वह न तो आध्यात्मिक जीवन जी सकता और न सांसारिक भोग ही भोग सकता। 

वह सोचता है कि मेरे मार्गदर्शन और आशीर्वाद से उसे कुछ मिल जाए। यह संभव नहीं है। हर किसीको अपने प्रयास करने पड़ते हैं। भगवान् किसी आलसी पर कृपा नहीं करते। काम करने का सही तरीका सीखने के लिए स्वामीजी कहते हैं कि सबसे पहले, हमें क्या प्राप्त करना है, यह निश्चित होना ज़रूरी है। इसके लिए एक दिनचर्या निर्धारित करनी आवश्यक है। उस समय-सारणी का पूरी तरह पालन करना चाहिए। कौन सा काम कब और कितने समय करना है, इसका टाइम टेबल बनाकर उसके अनुसार कार्य करना चाहिए। बिना योजना के कुछ भी करने लगना मूर्खता है। 

जिस कार्य को हम कर रहे हैं, उसे पूरे उत्साह और पूरी शक्ति के साथ करें। अपनी सारी ऊर्जा को उसमें ही लगा दें। अपने आप पर और ईश्वर पर पूरा विशवास रखो। यह भी समझ लें कि क्या चीज महत्वपूर्ण है और क्या नहीं है। क्या ज़रूरी है और क्या गैर-ज़रूरी है। बेकार की बातों में समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। काम करते समय धैर्य बहुत ज़रूरी है। हबड़दबड़ में कुछ नहीं करना चाहिये। अपने काम को बहुत शांति के साथ लयबद्ध तरीके से करना चाहिए। कार्य करते समय उस कार्य को मान्यता या पुरस्कार की बात मन में भी नहीं लायी जानी चाहिए। यह अपने आप मिलेंगे।