जब हनुमानजी सेवा से पृथक हुए- क्या है हनुमान चुटकी?- दिनेश मालवीय


स्टोरी हाइलाइट्स

जब हनुमानजी सेवा से पृथक हुए क्या है हनुमान चुटकी? -दिनेश मालवीय हम सभी ने सरकारी नौकरी में लोगों को सेवा से पृथक होते तो देखा और सुना है, लेकिन क्या श्रीराम के परमभक्त हनुमानजी के साथ भी कभी ऐसा हुआ है? जी हाँ, आश्चर्य मत कीजिए, उन्हें भी एक बार सेवा से पृथक किया गया था और श्रीराम के हस्तक्षेप से ही उनकी बहाली हो सकी थी. इसके अलावा, आपने महेंद्र कपूर का वह लोकप्रिय भजन भी सुना ही होगा कि–‘बजाये जा तू प्यारे हनुमान चुटकी’. आइये हम आपको बताते हैं कि हनुमानजी किस तरह सेवा से पृथक कैसे हुए और यह राम चुटकी क्या है. एक बार की बात है कि श्रीराम के छोटे भाई भरत ने अपने भाइयों और सीताजी से कहा कि प्रभु की सारी सेवा हनुमानजी ही कर लेते हैं, हमारे लिए तो कुछ करने को बचता ही नहीं. व्यापक विमर्श के बाद यह तय किया गया कि प्रभु-सेवा की एक तालिका बनायी जाए, जिसमें तीनों भाइयों और सीताजी द्वारा कब कौन सी सेवा की जाए, यह निर्धारित हो. तालिका बना ली गयी, जिसमें हनुमानजी का पत्ता साफ़ था. सीताजी ने इस तालिका पर श्रीराम का अनुमोदन ले लिया और श्रीराम ने कौतुक से ही इस पर अपनी सहमती दे दी. हनुमानजी ने सेवा-तालिका देखी तो बोले कि इसमें मेरा तो नाम ही नहीं है.  उनसे कहा गया कि तालिका में वर्णित सेवाओं के अलावा आप चाहें तो कोई और सेवा ले सकते हैं. हनुमानजी ने कहा कि प्रभु को जंभाई आने पर चुटकी बजाने का काम तो तालिका में है ही नहीं. लिहाजा हनुमानजी को यह काम दे दिया गया. हनुमानजी तत्काल चुटकी तानकर भगवान् के समक्ष वीरासन पर बैठ गये. न जाने कब उन्हें जंभाई आ जाए और चुटकी बजानी पड़ जाए. श्रीराम जहाँ भी जाते, हनुमानजी उनके साथ-साथ चलते, कि न जाने कब चुटकी बजाने की ज़रूरत पड़ जाए. सिर्फ रात्रि में शयन के समय वह श्रीराम के पास से हटते थे. इस दौरान भी वह शयन कक्ष के पास एक ऊंचे छज्जे पर बैठकर प्रभु का नाम लेते हुए चुटकी बजाने लगे. उनकी चुटकी बजती ही रही. श्रीराम भी लीला करने में कहाँ पीछे थे! श्रीराम को जंभाई आनी लगी, एकबार, दो बार, तीन बार , दस बार, पचास बार. जब वह जंभाई लेते-लेते थक गये तो कष्ट से उनका मुंह खुला ही रह गया. यह देखकर सीताजी घबरा गयीं. उन्होंने परिवारजन को बुला ली लिया. सबने देखा कि श्रीराम का मुंह खुला ही है, किसी भी तरह बंद नहीं हो रहा. चिकित्सक आये. दवाएं दी गयीं, लेकिन कोई लाभ नहीं. यह सब समाचार सुनकर कुलगुरु वशिष्टजी वाशिश्त्जी भी वहाँ पहुँच गये. प्रभु श्रीराम ने उन्हें प्रणाम किया किन्तु मुंह खुला होने से कुछ बोल न सके. नेत्रों से आँसू भी बहने लगे. इस चिंताजनक स्थिति में प्रभु के अनन्य सेवक हनुमानजी को न देखकर वशिष्टजी को बड़ा आश्चर्य हुआ. उन्होंने हनुमानजी के बारे में पूछा. जानकीजी ने विनयपूर्वक कहा कि हनुमान के साथ बड़ा अन्याय हुआ है. उसकी सारी सेवा छीन ली गयी. तब उसने चुटकी बजाने की सेवा ले ली. वह दिनभर प्रभु के सामने चुटकी ताने खड़ा या वीरासन में बैठा रहा. अपनी इस सेवा के लिए उसने भोजन और शयन तक त्याग दिया. वशिष्टजी तुरंत दौड़े. उन्होंने देखा कि प्रभु के शयनागार की सामने ऊंचे छज्जे पर हनुमानजी ध्यान में मग्न उनका नाम कीर्तन कर रहे हैं और उनके दाहिने हाथ से निरंतर चुटकी बजती जा रही है. वशिष्ट ने उन्हें पकड़कर हिलाया तो हनुमानजी के नेत्र खुले. अपने सम्मुख वशिष्टजी को देखकर वह प्रणाम किया और उनके पीछे चल पड़े. हनुमानजी ने प्रभु का खुला मुख और उनके नेत्रों से बहते आँसू देखे तो वह अत्यंत व्याकुल हो गये. बजरंगबली के नेत्र भी भर आये. चिंता के कारण उनकी चुटकी बैबंद हो गयी और चुटकी बंद होते ही प्रभु का मुंह भी बंद हो गा. प्रभु के प्रति हनुमान का इतना अनुराग और समर्पण देखकर सीताजी ने कहा कि हनुमान प्रभु की सारी सेवा तुम ही किया करो. कोई भी इसमें हस्तक्षेप नहीं करेगा. भगवान भी सभी लोगों को यह सबक देना चाहते थे कि किसीसे ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए. दरअसल श्रीराम का हनुमानजी से बड़ा कोई सेवक और भक्त है ही नहीं. वे दोनों एक तरह से दो तन एक प्राण ही हैं.