लखीमपुर हिंसा में पत्रकार रमन की मौत नहीं, ‘हत्या’ है..! -अजय बोकिल


स्टोरी हाइलाइट्स

यूपी के लखीमपुर खीरी के पास तिकुनिया गांव में किसान आंदोलन के दौरान हुई हिंसा में चार किसानों का केन्द्रीय मं‍त्री पुत्र की कार द्वारा....

लखीमपुर हिंसा में पत्रकार रमन की मौत नहीं, ‘हत्या’ है..! -अजय बोकिल यूपी के लखीमपुर खीरी के पास तिकुनिया गांव में किसान आंदोलन के दौरान हुई हिंसा में चार किसानों का केन्द्रीय मं‍त्री पुत्र की कार द्वारा बेहरमी से रौंदा जाना, किसान और भाजपाइयों में हुए हिंसक संघर्ष में तीन भाजपा कार्यकर्ताओं का मारा जाना, इस बेहद क्रूर और दहला देने घटनाक्रम पर होने वाली चुनावी लाभ की राजनीति, कुछ भाजपा मंत्रियों के किसानो को लेकर निष्ठुर बयान तथा सत्तारूढ़ योगी सरकार द्वारा किसान नेता राकेशसिंह टिकैत से ताबड़तोड़ समझौता कर मुआवजे का मरहम लगाने के बीच एक ऐसे शख्स ने भी जान गंवाई, जिसका सियासत से कुछ लेना-देना नहीं था। वो पत्रकार के रूप में सिर्फ अपना फर्ज निभाने घटनास्थल पर गया था। रमन कश्यप नामक 33 वर्षीय यह युवा कोई सेलेब्रिटी प‍त्रकार  भी नहीं था कि जिसे मौत के बाद घडि़याली आंसुओं की श्रद्धांजलियां मिलतीं और  जिसे खरोंच लगने की भी अंतरराष्ट्रीय चर्चा होती। रमन एक क्षेत्रीय टी वी चैनल के लिए घटना का ‘लाइव’ कवरेज करने अपने पत्रकार साथियों के साथ घटनास्थल पर पहुंचे थे। लेकिन ‘सच दिखाने’ की यह जिद ही मानो उनकी जान की दुश्मन बन गई। दरिंदो ने ‘घटना का सच’ सामने न आए, इसलिए उन्हें अपनी जीप से रौंद दिया। क्योंकि रमन शायद घटना का वीडियो बना रहे थे, जिसे चैनल को भेज सके। इसी ‘जुर्म’ ने रमन की साहसी और कर्तव्यनिष्ठ पत्रकारिता को वहीं समाधि दे दी । जो हुआ, वो इस देश में निर्भीक और निष्पक्ष पत्रकारिता के लिए बहुत बड़ी और गंभीर चेतावनी है। खासकर तब कि जब कई  राष्ट्रीय टीवी चैनल भजन मंडली की तरह किसानों को गरियाने और उन्हें ‘गुंडा’ साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे। लेकिन हकीकत में वहां जो कुछ हुआ, उसकी पोल दूसरे ही दिन मृतकों की पोस्ट मार्टम रिपोर्ट ने खोल दी। हमे यह समझाने की पूरी कोशिश की गई कि लोगों को मारने वाले ‘गुंडा तत्व’ थे, किसान नहीं। हो सकता है, कुछ लोग ऐसे हों। लेकिन ऐसे गुंडा तत्व कहां नहीं हैं? पंरतु यह सच छुपाने की पूरी कोशिश की गई कि लोग मरने- मारने पर उतारू किस कारण से हुए? क्या अपने साथियो को रौंदे जाने के बाद उनसे शांति के कबूतर उड़ाने की अपेक्षा थी? और एक पत्रकार की किस्मत में तो यह ‘प्रतिशोध’ भी नहीं था।  यूं कवरेज के दौरान पत्रकारों की जान को जोखिम होना नई बात नहीं है। खासकर युद्ध, हिंसक घटनाओं और आपदाओं की रिपोर्टिंग में यह खतरा सदा मौजूद रहता है।  लेकिन पत्रकार इसकी चिंता नहीं करते। अमूमन निर्भीक पत्रकार लोगों तक सही सूचनाएं पहुंचाने के अपने जुनून में ये खतरे उठाते हैं और यदा-कदा अपने प्राण भी गंवाते रहे हैं। शस्त्र के रूप में उनके पास एक अदद कैमरा, मोबाइल फोन या कलम ही होती है। बावजूद इसके लोगों को सच से वाकिफ कराने की जिद ही उनसे यह काम करा लेती है। हालांकि कड़ी इसमें व्यावसायिक प्रतिस्पर्द्धा के चलते इसमें भी हेराफेरी होने लगी है। हममे से बहुतों को पता नहीं होगा कि रमन कश्यप कौन थे, किसलिए उन्होंने अपनी जान दावं पर लगाई? जो जानकारी सामने आई है, उसके मुताबिक रमन क्षे‍त्रीय चैनल साधना प्लस के लिए काम करते थे। टीवी चैनल दूर दराज के इलाकों में आम तौर पर अस्थायी स्ट्रिंगरों की नियुक्तियां करते हैं, जिन्हें स्टोरी कवरेज के आधार पर कुछ पैसा दिया जाता है। रमन को भी जब पास के तिकोनिया गांव में किसानों के विरोध प्रदर्शन की सूचना मिली तो वो भी कवरेज के लिए घटना स्थल पर पहुंचे। इस कवरेज के बदले में उन्हें पांच सौ रूपए‍ मिलते। रमन का घर निघासन गांव में है। पत्रकारिता के साथ रमन एक निजी स्कूल में बच्चों को पढ़ाने का काम भी करते थे ताकि घर का खर्च चल सके। वो अपने पिता के तीन बेटो में से एक थे। रमन अपने पीछे पत्नी, एक बेटी और बेटे को छोड़ गए हैं।  सवाल यह है कि रमन न तो आंदोलनकारी किसान थे, न भाजपा कार्यकर्ता थे और न ही मंत्री के स्टाफ में थे। ऐसे में उनको किसने, कैसे और क्यों मारा? पत्रकार के नाते उनकी किससे दुश्मनी थी या हो सकती है? और अगर इस देश में पत्रकारों भी मारने की कु-संस्कृति शुरू हो चुकी है तो नारद मुनि के इस ‘मुल्क का मालिक’ कहलाना भगवान भी  शायद ही पसंद करे। रमन की मौत कैसे हुई, वो महज हादसा था या सुविचारित हत्या, इसको लेकर अलग-अलग बातें हैं।   एक  डिजीटल साइट ‘गांव कनेक्शन’ के मुताबिक गांव तिकुनिया में यूपी के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का दौरा था। तिकुनिया केन्द्रीय मंत्री और इस पूरे मामले में संदेही अजय कुमार मिश्रा टेनी का गांव है। कृषि कानूनो का विरोध कर रहे किसान इस दौरे का भी विरोध कर रहे थे। घटनास्थल पर मौजूद रमन के दोस्त और स्थानीय पत्रकार  जसप्रीत सिंह के मुताबिक जैसे ही मंत्री पुत्र आशीष मिश्रा की थार गाड़ी किसानों  को कुचलते गुजरने लगी तो उसने घटना का कवरेज कर रहे रमन को भी जोरदार टक्कर मारी। जिससे रमन 20-25 फीट दूर फिकाए। उनके सिर में गंभीर चोट लगी। जिससे रमन की वहीं मौत हो गई। कुछ लोगों के अनुसार रमन को गोली भी मारी गई, लेकिन इसकी पुष्टि नहीं हुई। जब लखीमपुर हिंसा में पत्रकार की मौत की खबर आई तो सहसा किसी को विश्वास नहीं हुआ। लेकिन जल्द ही स्थिति साफ हो गई और पत्रकार जगत स्तब्ध रह गया। देश में संपादकों की सबसे बड़ी संस्था ‘एडिटर्स गिल्ड आॅफ इंडिया’ ने पत्रकार रमन कश्यप की मौत की जांच कोर्ट की विशेष टीम से कराने की मांग की है। गिल्ड ने कहा कि रमन की मौत को लेकर कई सवाल खड़े होते हैं। उनकी मृत्यु किन परिस्थितियों में हुई, यह सामने आना चाहिए। लखनऊ जर्नलिस्ट एसोसिएशन ने भी मुख्‍यमंत्री योगी आदित्यनाथ से रमन कश्यप की मौत की जांच तथा उनके परिवार को 1 करोड़ रू. की आर्थिक मदद, पत्नी को सरकारी नौकरी देने की मांग की है। किसी ने नहीं सोचा था कि जो पत्रकार घटना के लिए कवरेज के लिए गया था, वो खुद ही इस तरह ‘बुरी खबर’ बनकर एक लाश के रूप में लौटेगा। विडंबना तो यह है कि रमन की मौत की खबर भी परिजनो को मुर्दाघर से मिली। उनका घर भी अस्पताल के मुर्दाघर जाने वाले रास्ते में ही पड़ता है। रमन की लाश घर के सामने से गुजर गई और घरवालों को पता भी नहीं चला। वो रमन को घटनास्थल पर ही ढूंढ रहे थे। जबकि पुलिस का दावा है कि वो घायल रमन को पहले अस्पताल ले गई, जहां डाॅक्टरो ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। पत्रकार की मौत के मामले में कोई संतोषजनक जवाब नही दे पा रही यूपी सरकार फिलहाल रमन के परिवार को दूसरे पीडि़तों की तरह 45 लाख रू. का मुआवजा चेक भिजवा दिया है। दुदैव से रमन कश्यप देश के चौथे ऐसे पत्रकार हैं, जिन्होंने साल 2021 में कर्तव्य निर्वहन करते हुए अपनी जान गंवाई है। देश में लगातार उन्मादी, हिंसक और असहिष्णु होती राजनीति तथा समाज ने पत्रकारिता को और जोखिम भरा बना दिया है। इसका अर्थ यह नहीं कि पत्रकारिता में भी सब चंगा ही है,काली भेड़ें यहां भी हैं। लेकिन हालात चुनौती भरे उनके लिए ज्यादा हैं ‍जो अभी भी अपने प्रोफेशन के बुनियादी उसूलों को जिंदा रखने और नहीं बिकने में भरोसा कायम रखे हुए हैं। पत्रकार रमन की मौत भी वास्तव में एक ‘हत्या’ है। जांबाजी की। निर्भीकता और तूफान में खड़े रह सकने की जिद की।