जाने कहां गया वो मौसम


स्टोरी हाइलाइट्स

जाने कहां गया वो मौसम, जब धरती मुस्काती थीचहक चहक चिड़िया, ऑंगन में मीठे गीत सुनाती थी

जाने कहां गया वो मौसम   जाने कहां गया वो मौसम, जब धरती मुस्काती थी चहक चहक चिड़िया, ऑंगन में मीठे गीत सुनाती थी जाने कहां गया वो मौसम, जब धरती मुस्काती थी कड़वा है अब मीठा पानी, जो अमृत कहलाता था सूना है वो घाट जहां पर, हर राही रूक जाता था बिन मैली नदियां इठलाती, जब सागर तक जाती थी जाने कहां गया वो मौसम, जब धरती मुस्काती थी जहर घुला है अब वायु में, हुई बहारें गुम देखो आधी हो गई सासें सबकी, खूब तमाशा तुम देखो एक समय था यही हवाएं, खुशबु सी बिखराती थी जाने कहां गया वो मौसम, जब धरती मुस्काती थी धुआं उगलती चिमनी है, और पेड़ बिचारे मरते हैं बेघर पंछी याद आज भी, उस मौसम को करते हैं जब हंसती थी हर डाल पेड़ की, हर पत्ती इतराती थी जाने कहां गया वो मौसम जब, धरती मुस्काती थी दौड़ तरक्की की अंधी है, इसमें बस पछतावा है गगन चूमती मीनारें तो, केवल एक छलावा है आज नहीं आती, पहले तो बात समझ ये आती थी जाने कहां गया वो मौसम, जब धरती मुस्काती थी वक्त अभी भी है जगने का, मानव आखें खोल जरा ममता की मूरत है धरती, फिर से मां तो बोल जरा भूल गया मानव, ये धरती माता भी कहलाती थी जाने कहां गया वो मौसम, जब धरती मुस्काती थी !   (चन्द्रकांत दीक्षित) वरिष्ठ वैज्ञानिक